tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post6716947146386246644..comments2023-10-31T06:34:42.476-07:00Comments on अपनी, उनकी, सबकी बातें: ईश्वर से बड़ा लेखक कौन ??rashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comBlogger35125tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-81374366116270680032012-02-01T00:28:30.438-08:002012-02-01T00:28:30.438-08:00आपकी कहानी लिखने की शैली भी कमाल की है ... कई बार ...आपकी कहानी लिखने की शैली भी कमाल की है ... कई बार पता नहीं चलता असल का किस्सा है या कहानी ... आपकी बात से सहमत हूँ की केवल नारी को किसी भी काम के लिए दोष देना उचित नहीं है ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-37533344707979033382012-01-31T20:44:17.006-08:002012-01-31T20:44:17.006-08:00रचना जी,
कहीं कोई अंतर नहीं है....एक वाक्य पहले ही...रचना जी,<br />कहीं कोई अंतर नहीं है....एक वाक्य पहले ही मेरे ध्यान में आया था पर मैने नहीं लिखा क्यूंकि मैं खुद अपने लेखन के बारे में कुछ नहीं कहना चाहती कि मैने कुछ बहुत गंभीर लिख मारा है...जिसे साहित्य का दर्जा दिया जा सकता है..पर जब आप हिंदी और अंग्रेजी साहित्य की बात कर रही हैं तो कह रही हूँ..<br />"साहित्य समाज का दर्पण होता है"<br />जैसा समाज होगा...साहित्य में (कहानी/नॉवेल/कविता ) में वही नज़र आएगा.<br /><br />इस कहानी में छोटे शहर से महानगर में आई एक स्त्री का उल्लेख है...जो महानगर में कई वजहों से काफी अकेलापन महसूस करती है. एक लड़के से दोस्ती होती है जिसके सहारे धीरे-धीरे वह निराशा के गर्त से बाहर निकलती है...और उसका आत्मविश्वास वापस लौटता है.<br />(अब आप कहेंगी ..उसे किसी सहारे की जरूरत क्यूँ पड़ी??....वो अकेले खुद के दम पर निराशा के गर्त से बाहर क्यूँ नहीं निकली...वो अपने पति की उपेक्षा के कारण डिप्रेशन में गयी ही क्यूँ..तो इतना कह दूँ...हर औरत superwoman नहीं होती...एक सामान्य से human being में ऐसी भावनाएं होती हैं...और सामान्य लोगो को भी सामान्य तरीके से जीने का उतना ही हक़ होता है...उन्हें भी समझा जाना चाहिए...उन्हें superwoman बनने की हिदायत नहीं दी जा सकती )<br /><br />और यह सब यह समकालीन नहीं है?????<br />क्या आजकल ऐसा नहीं होता??<br />अपने कह दिया बेहद पुराना विषय है...ताज्जुब है....बल्कि आजकल ही ऐसा हो रहा है....घुघूती जी के तीनो कमेन्ट देख लीजिये...उन्होंने भी बहुत करीब से महानगरों में महिलाओं के अकेलेपन का अवलोकन किया है....इसलिए ये कह देना कि ये सब पुराने विषय हैं...अजीब सा लगता है. <br /><br />अकेलेपन का अहसास....कभी पुराना हो सकता है??...बल्कि पुराने जमाने में ही यह नहीं था...आजकल इसे लोग ज्यादा भुगत रहे हैं.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-5239592604427599142012-01-31T20:10:56.425-08:002012-01-31T20:10:56.425-08:00शीर्षक सहज में ही सब कुछ कह गया ...! विचारणीय ..!शीर्षक सहज में ही सब कुछ कह गया ...! विचारणीय ..!केवल रामhttps://www.blogger.com/profile/04943896768036367102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-85053101508990772362012-01-31T19:20:08.619-08:002012-01-31T19:20:08.619-08:00hindi sahitya me kehani ki vidha aur inlish sahity...hindi sahitya me kehani ki vidha aur inlish sahitya mae kehani ki vidha dono kae vishyo me samkaaleen kehaniyon me itna antar kyun haen ???रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-25617426410758223012012-01-31T12:55:07.698-08:002012-01-31T12:55:07.698-08:00डॉ श्याम गुप्त या कोई भी क्या कहते सोचते हैं, क्या...डॉ श्याम गुप्त या कोई भी क्या कहते सोचते हैं, क्या गलत या सही मानते हैं इससे यथार्थ में कोई अन्तर नहीं आता। यथार्थ यह है कि हर व्यक्ति, और व्यक्ति में स्त्रियाँ भी सम्मिलित होती हैं, की आवश्यकता है कि कोई उनके साथ हो, उनकी सुने, अपनी कहे, उन्हें महत्व दे और उनसे महत्व पाए। हाथ पकड़ जीवन की राहों में साथ चले। साथ का अर्थ केवल संतान जन्मना ही नहीं होता।<br />ये अति व्यस्त लोग भी अपने दफ्तरों में मुस्कराते हैं, गप्प मारते हैं, साथ खाते पीते हैं, यहाँ वहाँ की बातें करते हैं। हाँ, बस घर आते ही थक अवश्य जाते हें और यह नहीं समझ पाते कि पत्नी को कपड़े , छत व भोजन से अधिक कुछ क्यों चाहिए।<br />नीलिमा तो रुक गई किन्तु कोई तो पीढ़ी ऐसी आएगी जो रुकेगी नहीं।<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-66949622696424379572012-01-31T09:50:17.583-08:002012-01-31T09:50:17.583-08:00भारतीय संस्कारों को परिभाषित करती पोस्ट है आभार|भारतीय संस्कारों को परिभाषित करती पोस्ट है आभार|sangitahttps://www.blogger.com/profile/15885937167669396107noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-24102329058935570372012-01-31T09:05:26.879-08:002012-01-31T09:05:26.879-08:00रचना जी,
पोस्ट रश्मि की है, इसलिये मेरा कुछ कहने क...रचना जी,<br />पोस्ट रश्मि की है, इसलिये मेरा कुछ कहने का हक़ तो नहीं है, लेकिन कुछ बातें खटक जाती हैं, सो लिख देती हूं. जैसे, कहानी आपने पढी नहीं, लिहाजा आपका कमेंट ही बेमानी हो गया :(वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-74882666378564587722012-01-31T07:01:49.657-08:002012-01-31T07:01:49.657-08:00संभवतः कहानी पर टिप्पणी नहीं की थी मैंने।
पढ़ा ही ...संभवतः कहानी पर टिप्पणी नहीं की थी मैंने।<br />पढ़ा ही बहुत बाद में था, लेकिन मेकिंग के बारे में जानना रुचिकर लगा।Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-43018769464241023612012-01-31T05:45:02.364-08:002012-01-31T05:45:02.364-08:00रचना जी,
आपके अपने दृष्टिकोण हैं पर कहानी में वही ...रचना जी,<br />आपके अपने दृष्टिकोण हैं पर कहानी में वही सब कुछ होता है जो समाज में घटित होता रहता है.<br />अगर इस तरह की घटनाएं नहीं होतीं तो ऐसी कहानियाँ लिखी भी नहीं जातीं.<br />करीब-करीब सबने कहा है कि कहानी बिलकुल वास्तविकता के करीब है....सच सी लगती है...इसका अर्थ ही है कि समाज में लोगो ने भी इस तरह के वाकये देखे हैं.<br /><br />आपने लिखा है,<br />समय हैं की हम समकालीन विषयों पर बहस करे <br /><br />जरूर बहस करें...पर कहानी एक अलग विधा है....आधुनिक समाज की कहानियाँ भी लिखी जाती हैं..और आपके हिसाब से इस 'पुराने सोच' वाली भी क्यूंकि समाज में हर तरह के लोग हैं..और उनके जीवन की झलक देने वाले हर तरह के लेखक भी हैं. आपको जरूर ये विषय पुराना लगेगा....पर हमारे समाज का एक सच ही है यह.<br /><br />और आपने कहानी पढ़ी नहीं...इसलिए आपको पता नहीं है कि इस कहानी में 'विवाहेतर सम्बन्ध' जैसी कोई बात थी ही नहीं.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-60286948106298677002012-01-31T04:24:23.127-08:002012-01-31T04:24:23.127-08:00ईश्वर ही तो सब से बडा लेखक है जो हम जैसे पात्रों स...ईश्वर ही तो सब से बडा लेखक है जो हम जैसे पात्रों से भी लिखा देता है। अच्छी पृष्ठभूमि।चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-25652756594297129742012-01-31T01:13:46.065-08:002012-01-31T01:13:46.065-08:00विवाह से इतर सम्बन्ध रखने से बेहतर होता हैं विवाह ...विवाह से इतर सम्बन्ध रखने से बेहतर होता हैं विवाह को समाप्त करके नये सिरे अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहना ।<br />लोग { महिला और पुरुष } दोनों झूठ बोलते हैं अगर वो कहते हैं की गलती से हुआ । सबसे बड़ी बात हैं आप चरित्र किसे कहते हैं , क्या चरित्र का मतलब केवल किसी के साथ सहवास करने तक ही सिमित हैं ।<br />एक पोस्ट पर पहले भी काफी बहस हुई थी { अजीत जी की पोस्ट } और उसके बाद वाणी जी की पोस्ट पर भी वही विषय था ।<br />ये सब विषय बेहद पुराने हैं { माफ़ करना रश्मि मै ने कहानी नहीं पढी } इस लिये इन पर लिखी कहानी भी बेहद पुराना विषय हैं { मेरा सोचना } समकालीन विषय हैं की अगर विवाह इतर सम्बन्ध बनते ही हैं तो परिवार के नाम पर कब तक इन संबंधो को हमारा समाज "गलती " कह कर स्वीकार करता रहेगा । परिवार की अगर इतनी फ़िक्र हो तो लोग ये सब ना करे ।<br /><br />समय हैं की हम समकालीन विषयों पर बहस करे की अगर विवाह से इतर देह सम्बन्ध हैं तो उनको रोका कैसे जाए । क्या सजा दी जाए उनलोगों को जो समाज में ये सब करके भी अच्छे कहलाते हैं और वही डिवोर्स लेकर अपनी जिंदगी दुबारा शुरू करने वाले को समाज परिवार विरोधी का तमगा देता हैं<br /><br />औरत का चरित्र ये महज समाज की सोच हैं औरत और पुरुष बराबर हैं म उनकी जरूरते भी बराबर हैं इस लिये उनके लिये संविधान और कानून के नियम भी बराबर हैं ।<br /><br />हिंदी साहित्य में कहानी की विधा में परिवर्तन की जरुरत हैं और नयी सोच लाने की जरुरत हैंरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-58848665417808812012012-01-30T22:47:51.612-08:002012-01-30T22:47:51.612-08:00"वो महिला बहुत अकेलापन महसूस करती होगी...नए ..."वो महिला बहुत अकेलापन महसूस करती होगी...नए शहर में...कोई दोस्त नहीं....हिंदी-अंग्रेजी बोलने में कठिनाई..पति व्यस्त रहता होगा.... इसीलिए उसने उस लड़के से दोस्ती की होगी. और इसके लिए उस महिला को बिलकुल गलत नहीं कहा जा सकता. थोड़ी सराहना....थोड़ी केयरिंग... अपनी कहने..दुसरो की सुनने की इच्छा सबके भीतर होती है. ...."<br /><br />---यह वाक्य एक गलती को सही ठहराने जैसा है .... निश्चय ही गलती है उस महिला की ...पति की व्यस्तता, शहर में नया होना कोई इतनी बडी बात नहीं है कि किसी विपरीत लिन्गी से दोस्ती की जाय ...यह निश्चय ही अनाचरण की कोटि में आता है .... महिलायें (कमजोर चरित्र बाली) तो सदा ही यही करती हैं स्वयं आगे बढती हैं पकडे जाने पर दोष पुरुष पर मढ कर अलग हो जाती हैं...डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-77883865188177519742012-01-30T22:32:20.632-08:002012-01-30T22:32:20.632-08:00इसमें कोई संदेह ही नहीं है कि स्त्री बरबस ही अपने ...इसमें कोई संदेह ही नहीं है कि स्त्री बरबस ही अपने नारीत्व पर कभी आँच आने देगी ! अपने मन अपनी भावनाओं पर सही नियंत्रण रखना और अपनी ज़रूरतों पर अंकुश लगाना भारतीय संस्कारी नारी को भली भाँति आता है ! लेकिन क्या कभी उसके जीवनसाथी ने उसका मन टटोलने की, उसके दिल की बात जानने की या कभी उसकी छोटी-छोटी चाहतों को, नारी सुलभ इच्छाओं को समझने की, उन्हें पूरा करने के लिये वक्त निकालने की या फिर थोड़ा सा भी क्वालिटी टाइम अपनी पत्नी के साथ बिताने की अहमियत को समझा है ? या नारी सिर्फ घर की केयरटेकर ही बन कर रह गयी है ? जिन दम्पत्तियों ने इन बातों के महत्त्व को समझ लिया है वहाँ शायद इस तरह की घटनाएँ नहीं होतीं ! जीवन में तमाम भौतिक सुख सुविधाओं के साथ मानसिक संतुष्टि भी बहुत ज़रूरी होती है !Sadhana Vaidhttps://www.blogger.com/profile/09242428126153386601noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-33787291157297255262012-01-30T11:17:55.277-08:002012-01-30T11:17:55.277-08:00आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर क...आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के <a href="http://charchamanch.blogspot.com/2012/01/774_31.html" rel="nofollow">चर्चा मंच</a> पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......Atul Shrivastavahttps://www.blogger.com/profile/02230138510255260638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-55988885884610348022012-01-29T19:05:05.947-08:002012-01-29T19:05:05.947-08:00मुझे तो राजेश उत्साही का कमेन्ट ठीक लगा !
देह की ...मुझे तो राजेश उत्साही का कमेन्ट ठीक लगा !<br /><br />देह की पवित्रता और हमारी संस्कृति ,बहस के योग्य धारणायें हैं ! आपकी सहेलियां आपको चिंतन के स्तर पर ऊर्जावान और लेखन में सक्रिय बनाये रखती हैं इसके लिए उन्हें साधुवाद !<br /><br />बाकी आपकी कहानी का वाचन अब तक मुझ पर उधार है :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-79494782692858307452012-01-29T17:55:58.447-08:002012-01-29T17:55:58.447-08:00बहुत ही उम्दा और शिक्षाप्रद पोस्ट |लेकिन कुशल कथा ...बहुत ही उम्दा और शिक्षाप्रद पोस्ट |लेकिन कुशल कथा लेखकों की तरह निर्णय अपने पाठकों पर छोड़ दिया |जयकृष्ण राय तुषारhttps://www.blogger.com/profile/09427474313259230433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-18362548237035454822012-01-29T08:28:32.761-08:002012-01-29T08:28:32.761-08:00आज आपकी पोस्ट पढ़ने से पहले, कहानी की दोनों किश्तें...आज आपकी पोस्ट पढ़ने से पहले, कहानी की दोनों किश्तें पढीं... बाहर था, तभी शायद नहीं पढ़ पाया. मेकिंग ऑफ द स्टोरी भी अच्छी है.. उसने सारी कहानी पहले से लिख रखी है तभी तो उसकी कहानियों के पात्रों और घटनाओं से हम कहानियां नहीं लिख पाते!<br />हरमन हेस की एक कहानी पढ़ी थी बहुत पहले.. उस कहानी में नीलिमा के देहातीपन को दूर करने और उसका आत्मविश्वास वापस लाने के लिए रोहित वो सब करता है जो वो आपकी कहानी में कर रहा था.. और जब नीलिमा पुआने से नयी हो गयी तो वह अचानक चला गया.. और नीलिमा ने आत्महत्या कर ली.. <br />दिल, देह और मन कब साथ देना छोड़ देता है यह कहना बहुत मुश्किल है.. मैंने भी ऐसी ही एक कहानी करीब से देखी है!!<br />बहुत संजीदा कहानी और उसके बनने की कथा!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-75164218071037852932012-01-29T05:08:39.568-08:002012-01-29T05:08:39.568-08:00अचरज होता है |
एक तरफ हम कहते हैं की "इश्वर ...अचरज होता है |<br /><br />एक तरफ हम कहते हैं की "इश्वर की मर्जी के बिना कुछ भी नहीं होता - ईश्ववर सब सही करते हैं |"<br /><br />दूसरी और हम हमारे बनाए सही गलत के फैसले इश्वर के फैसलों से अधिक सही मानते हैं, और खुद ही दूसरों की भावनाओं को पाप और पुण्य के तराजू में तौलते हैं - खुद ही खुदा बन बैठते हैं |<br />:(Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-59911750582129444422012-01-29T03:53:18.369-08:002012-01-29T03:53:18.369-08:00अच्छा किया रश्मि, इस कहानी के उपजने की कथा लिख के....अच्छा किया रश्मि, इस कहानी के उपजने की कथा लिख के. असल में हमारी त्रासदी ये है कि हम जब भी कोई कहानी या कविता पढते हैं,तो उस कथानक को कवि या कथाकार के व्यक्तिगत जीवन से जोड़ने लगते हैं. जबकि अधिकांशत:होता है ये कि उस घटना का लेखक के व्यक्तिगत जीवन से कोई ताल्लुक नहीं होता. हां हमारे आस-पास के परिवेश से ही कथाओं का जन्म होता है, सो उक्त घटना कहीं न कहीं तो जीवंत होती ही है.<br />तुमने तो जबरन ही मुझे भाव दे दे दिया :) :)<br />इसे मदद कहते हैं क्या? चलो अब दे दिया है तो ले ही लेती हूं :) :)<br />रश्मि, मुझे लगता है कि हम देह और मन पर संयम नहीं बरतते, बल्कि अपनी इन्द्रियों को वश में करते हैं, जिसके चलते मन और देह, दोनों वश में हो जाते हैं.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-22722929234388936232012-01-29T02:36:59.496-08:002012-01-29T02:36:59.496-08:00राजेश जी,
यही तो एक ऐसी उलझन है...जो सुलझती नहीं.....राजेश जी,<br />यही तो एक ऐसी उलझन है...जो सुलझती नहीं...इतनी सारी विसंगतियां देख, लगता है.. .. ईश्वर कहाँ है और इतना बेदर्द क्यूँ है ??...और फिर कभी इतने संयोग घटते हैं कि लगता है...सारे धागे ईश्वर के हाथों में ही है...वो जब चाहे खींच ले..जब चाहे ढील दे दे...<br /><br />मन की पवित्रता तो खैर सबसे महत्वपूर्ण है....पर मन पर वश नहीं रहता...जबकि तन को वश में किया जा सकता है..और तब शायद धीरे-धीरे मन की मनमानी भी ख़त्म हो जाती है.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-32883924098014422932012-01-28T23:36:21.712-08:002012-01-28T23:36:21.712-08:00आपकी बात से शत-प्रतिशत सहमत हूँ। आपकी कहानी का अन्...आपकी बात से शत-प्रतिशत सहमत हूँ। आपकी कहानी का अन्त एकदम स्वाभाविक था। यदि उन दोनों के मध्य कुछ होता तो अवश्य फिल्मी लगता। हमारे देह और मन की आवश्कता अलग अलग हैं, इन्हें एकसाथ नहीं जोड़ा जा सकता। कम से कम महिलाओं के संदर्भ में तो।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-61082192386959678582012-01-28T23:10:05.291-08:002012-01-28T23:10:05.291-08:00लोग अपनी सोच से बहुत कुछ कहते हैं ... समझ में नहीं...लोग अपनी सोच से बहुत कुछ कहते हैं ... समझ में नहीं आता , कटु कल्पना को कटु सत्य बनाना इन्हें खूब आता है !नारी बहुत कुछ सोचती है , हाँ एक मन वह भी तो जीती है - इसे लोग भूल जाते हैंरश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-13633279729915214282012-01-28T23:06:02.239-08:002012-01-28T23:06:02.239-08:00मुझे लग ही रहा था की हो न हो ये कहानी एक सत्य घटना...मुझे लग ही रहा था की हो न हो ये कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है..<br /><br />खैर, आप ऐसे ही लिखते रहिये और हम ऐसे ही पढते रहेंगे :)abhihttps://www.blogger.com/profile/12954157755191063152noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-43224083381672341102012-01-28T22:53:55.259-08:002012-01-28T22:53:55.259-08:00ईश्वर से बड़ा रचनाकार कोई नहीं।ईश्वर से बड़ा रचनाकार कोई नहीं।ब्लॉ.ललित शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-1781302039045710282012-01-28T21:17:15.787-08:002012-01-28T21:17:15.787-08:00रश्मि जी मैं आपकी इस आस्था पर कोई सवाल नहीं उठा र...रश्मि जी मैं आपकी इस आस्था पर कोई सवाल नहीं उठा रहा हूं कि आप ईश्वर में विश्वास करती हैं या नहीं। लेकिन आपकी इस पोस्ट से आप अनजाने में(या जानते हुए) ही इस अवधारणा को स्थापित कर रही हैं कि जीवन में क्या होगा यह सब कुछ ईश्वर ने तय कर रखा है। अगर ऐसा है तो फिर गाहे-बगाहे विभिन्न हालातों पर हमारे स्यापा करने का कोई मतलब ही नहीं है।<br />*<br />देह की पवित्रता निसंदेह हमारी संस्कृति में अभी बहुत मान रखती है। पर क्या आपको नहीं लगता कि उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है मन की पवित्रता। हो सकता है आप देह का संयम बरत लें पर क्या मन को संयमित किया जा सकता है।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.com