tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post6081613766504919820..comments2023-10-31T06:34:42.476-07:00Comments on अपनी, उनकी, सबकी बातें: '.गे' का रोल करना क्या कोई अपराध है??rashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comBlogger56125tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-67536514504787544362010-12-18T05:24:23.878-08:002010-12-18T05:24:23.878-08:00रश्मि जी
बहुत अच्छा विषय है... कलाकार तो सिर्फ़ एक...रश्मि जी<br />बहुत अच्छा विषय है... कलाकार तो सिर्फ़ एक किरदार अदा करता है...जैसे कोई नायक या खलनायक बनता है... ये किरदार निभाने से कोई नायक या खलनायक नहीं बन जाता... अगर ऐसा होता तो कोई भी रावण या कंस का किरदार नहीं निभाता सभी राम और कृष्ण बनना ही पसंद करते...<br />ठीक इसी तरह लड़के ने 'गे' का किरदार निभाया है... इस भूमिका के लिए उसके साथ ज़्यादती करने को किसी भी सूरत में जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है...फ़िरदौस ख़ानhttps://www.blogger.com/profile/09716330130297518352noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-38419971132765092382010-12-18T04:50:50.289-08:002010-12-18T04:50:50.289-08:00एक और इसी विषय पर अलग नजरिये से दर्ज पोस्ट:
http:...एक और इसी विषय पर अलग नजरिये से दर्ज पोस्ट:<br /><br />http://udantashtari.blogspot.com/2009/08/blog-post_13.html<br /><br /><br />:)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-57131377839770479872010-12-18T04:48:53.805-08:002010-12-18T04:48:53.805-08:00ये कैसी मानसिकता हुई कि जब कोई आतंकवादी का रोल करत...ये कैसी मानसिकता हुई कि जब कोई आतंकवादी का रोल करता है/ या अपराधी का रोल करता है तो ठीक...मगर गे का रोल करे तो बाप घर से निकाल दे-अदाकारी तो अदाकारी है.<br /><br /><br />बाकी तो सामाजिक मान्यताओं की बात है. शायद समय के साथ बदले. <br /><br /><br />वैसे मैं तो इनके सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय उत्सव में नाच भी आया हूँ :)<br /><br />http://udantashtari.blogspot.com/2008/11/blog-post_07.htmlUdan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-229490748701360022010-12-16T20:40:32.591-08:002010-12-16T20:40:32.591-08:00ज्यादा नहीं कह सकता। यह विषय मुझे अटपटा सा लगता है...ज्यादा नहीं कह सकता। यह विषय मुझे अटपटा सा लगता है।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-76241718714144028882010-12-16T18:01:31.006-08:002010-12-16T18:01:31.006-08:00अभिनय तो अभिनय होता है उसे उसी रूप में लेना चाहिए ...अभिनय तो अभिनय होता है उसे उसी रूप में लेना चाहिए .संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-80020771606578497242010-12-16T02:17:09.849-08:002010-12-16T02:17:09.849-08:00रश्मि जी
सर्वप्रथम आपको बहुत बधाई आपने एक ऐसे वि...रश्मि जी <br />सर्वप्रथम आपको बहुत बधाई आपने एक ऐसे विषय पर कलम चलायी जिसके बारे में बात करना सभ्य समाज द्वारा मान्य नहीं है..दूसरे आपने बहुत निष्पक्षता से अपने विचार रखे..उसके लिए आपको साधुवाद..जो मुद्दा आपने इस पोस्ट के माध्यम से उठाया है.. वह है दोहरे मापदंडों का मुद्दा...समाज के भय से अपने ही बेटे को लानत मलानत करना कोई समझदारी नहीं ...'गे' होने को सपोर्ट करना एक अलग मुद्दा है और वह व्यक्तिगत विचारों पर निर्भर करता है... इस पोस्ट में सिर्फ यही मुद्दा है कि ओढ़े हुए मूल्यों के पीछे नैसर्गिक रचनात्मकता को क्यूँ दरकिनार किया जाता है... सभी के ठप्पे लगने क्यूँ जरूरी होते हैं किसी एक व्यक्ति के क्रियाकलापों पर... परिवार कि इकाई क्यूँ ऐसे समय संबल नहीं बन पाती एक इंडिविजुअल के लिए... क्या अर्थ रह गया फिर परिवार का... जब उस युवक को मानसिक और भावनात्मक संरक्षण नहीं मिला अपने ही माता पिता द्वारा ....<br /><br />बहुत सामयिक मुद्दा उठाया है आपने .. मेरी बधाई और शुभकामनाएं स्वीकार करेंमुदिताhttps://www.blogger.com/profile/14625528186795380789noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-4080631035960782712010-12-16T00:38:09.851-08:002010-12-16T00:38:09.851-08:00विचारोत्तेजक आलेख के लिए बधाईयाँविचारोत्तेजक आलेख के लिए बधाईयाँDr Varsha Singhhttps://www.blogger.com/profile/02967891150285828074noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-57033050829348652202010-12-15T02:17:36.898-08:002010-12-15T02:17:36.898-08:00छोटी जगह की संस्कृति और महानगरों की संस्कृति में ...छोटी जगह की संस्कृति और महानगरों की संस्कृति में बहुत अंतर है. यहाँ घर वाले ही नहीं पड़ोसी और दोस्त भी इंसान की निजी जिन्दगी में दखल रखते हैं. अभी पिछली पीढ़ी इतनी बोल्ड नहीं हो पाई है<br />फिर भी बच्चों को जिस क्षेत्र में हम भेज रहे हैं उसकी संभावनाओं से हमें अवगत होना चाहिए. युवराज के पिता ने गलत किया या सही ये दृष्टिकोण उनका अपना है इसलिए हम इस पर टिप्पणी नहीं कर सकते हैं. वह खुद में बहुत आहत हुए होंगे. तभी उन्होंने ऐसे कदम उठाया होगा. कल जब गुस्सा ख़त्म हो जायेगा तो सब ठीक हो जायेगा.रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-10680580477368145792010-12-14T09:45:15.386-08:002010-12-14T09:45:15.386-08:00मुझे बरसो पहले कहीं पढा पाकिस्तान का एक किस्सा याद...मुझे बरसो पहले कहीं पढा पाकिस्तान का एक किस्सा याद आ गया कि एक नाटक मे एक पति पत्नी ने पति पत्नी का रोल किया और उसमे तलाक का एक दृश्य था । नाटक के बाद समाज के लोगो ने कहा कि आपने तो पत्नी को तलाक दे दिया अब आप साथ मे कैसे रह सकते है ? इस पर बहुत बवाल मचा । <br />तो हमारा समाज अभी भी अभिनय और वास्तविकता मे फर्क नही करता है ।<br /> इसी बात को हम कहानी और इतिहास पर भी लागू कर सकते हैं । हमारा यह समाज कहानियों को सत्य मे घटित मानता है और उस आधार पर लडता झगडता है । <br />ऐसे लोगों के साथ यही सलूक किया जाये कि उनका बहिष्कार किया जाये । उस बेटे को चाहिये कि वह अपने माँ बाप से कहे कि मै तुम्हे अपनी ज़िन्दगी से खारिज करता हूँ ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-70488461885533683662010-12-14T07:53:23.743-08:002010-12-14T07:53:23.743-08:00रश्मि जी आपके आलेख की विषय वस्तु युवराज के प्रति उ...रश्मि जी आपके आलेख की विषय वस्तु युवराज के प्रति उसके मातापिता के असहिष्णु व्यवहार पर आधारित है कि उन्होंने उसे बेदखल कर उचित किया या अपने बेटे के साथ अन्याय किया ! इस सन्दर्भ में मेरे विचार से दोनों ही पक्ष दया और सहानुभूति के पात्र हैं ! बेटे ने अपनी पहली ही फिल्म में ऐसी भूमिका निभाई जो पूरे समाज के सामने माता-पिता के लिये शर्मिंदगी का कारण बन गयी ! भारतीय परिदृश्य में, विशेष कर छोटे शहरों में, मनुष्य अभी भी एक सामजिक प्राणी पहले है ! और संभव है युवराज के माता-पिता के लिये भी यह विषय अन्य कई लोगों की तरह घृणास्पद हो ! फिर अपने बेटे को ऐसा रोल करते देख वे कैसे गौरवान्वित होते ! और कहीं न कहीं युवराज के साथ भी अन्याय हुआ है क्योंकि उसने केवल अभिनय ही तो किया था कोई अपराध तो नहीं !Sadhana Vaidhttps://www.blogger.com/profile/09242428126153386601noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-24152885198997050132010-12-14T06:03:53.353-08:002010-12-14T06:03:53.353-08:00koi bhi charitra nibhana galat nahi, balki kamaal ...koi bhi charitra nibhana galat nahi, balki kamaal hai use sahi dhang se utaar denaरश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-51736681413321814532010-12-14T04:03:37.262-08:002010-12-14T04:03:37.262-08:00प्राचीन मानसिकता को टूटने में समय तो लगेगा ही।
--...प्राचीन मानसिकता को टूटने में समय तो लगेगा ही।<br /><br />---------<br /><a href="http://za.samwaad.com/" rel="nofollow">दिल्ली के दिलवाले ब्लॉगर।</a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-5798504998696246002010-12-14T02:28:46.043-08:002010-12-14T02:28:46.043-08:00abbal to film dekhni hogi ki Yuvraaj ne jis film m...abbal to film dekhni hogi ki Yuvraaj ne jis film me kaam kiya uska uddeshya kya tha.. sandesh kya tha. Aur kahne me hichak nahin ki is vishay par abhi tak meri koi paripakv soch nahin ban paayi.. haan abhi tak man yahi kahta hai ki ye unnatural sexual relations na sirf culture balki science ke according bhi kai beemariyon ko janmane wale hain isliye ghrina yogya hain aur yadi koi unke samarthan me khada hota hai to wo bhi utna hi doshi hai.. dekhte hain shayad samay ke sath is soch me 'sudhar' aaye.. :)दीपक 'मशाल'https://www.blogger.com/profile/00942644736827727003noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-32561892597449324992010-12-13T22:38:42.711-08:002010-12-13T22:38:42.711-08:00गे जैसी विकरिती को बढावा देना भी अनुचित है मै त्प ...गे जैसी विकरिती को बढावा देना भी अनुचित है मै त्प इता के पक्ष को सही मानती हूँ। जो बात हम अपने घर मे अच्छी नही समझते वो दूसरे घर के लिये अच्छी कैसे कह सकते हैं। बहुत कुछ आजकल भी हमे अपने घरों मे बदला नही है चाहे दुनिया मे कुछ भी बदल गया हो। धन्यवाद।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-61027191454972409272010-12-13T11:14:29.716-08:002010-12-13T11:14:29.716-08:00अच्छी पोस्ट है रश्मि. देर से आई, तो पोस्ट पढने के ...अच्छी पोस्ट है रश्मि. देर से आई, तो पोस्ट पढने के बाद सारे कमेंट भी पढे. पोस्ट में दो विषय समाहित हो गये हैं, जैसा कि अनेक साथियों ने लिखा ही है.<br />तो ये दोनों विषय दो भिन्न-भिन्न पोस्ट के मोहताज हैं. उम्मीद है, तुम लिखोगी.<br />फ़िल्म में तो लोग शिखंडी का रोल भी करते हैं, तो क्या उन्हें भी उनके परिजन निकाल देंगे? अभिनय तो अभिनय है. वास्तविक गे के साथ कैसा व्यवहार हो, कैसा नहीं, जब उन पर आधारित पोस्ट लिखोगी तब बताउंगी :):)वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-44078448773688297262010-12-13T01:00:24.702-08:002010-12-13T01:00:24.702-08:00विचार भिन्नता हो सकती है किन्तु इस विषय पर घर से ब...विचार भिन्नता हो सकती है किन्तु इस विषय पर घर से बेदखली का पिता का निर्णय तो ?Sushil Bakliwalhttps://www.blogger.com/profile/08655314038738415438noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-50162032506428701082010-12-13T00:21:53.371-08:002010-12-13T00:21:53.371-08:00मेरे कमेंट की एक पंक्ति में एक शब्द छूट गया है...उ...मेरे कमेंट की एक पंक्ति में एक शब्द छूट गया है...उसे ऐसा पढ़ा जाए...<br /><br />यहां सड़कों पर queer parade निकाली जाती है...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-23995068216749184012010-12-12T23:59:22.096-08:002010-12-12T23:59:22.096-08:00फ़र्क तो आ रहा है मगर उतनी तेज़ी से नही ……………॥नही तो...फ़र्क तो आ रहा है मगर उतनी तेज़ी से नही ……………॥नही तो पहले लोग इस बारे मे बात भी नही करते थे मगर आज हमारे बच्चे भी हमारे सामने बात कर लेते है इस बारे मे तो फ़र्क आ रहा है मगर वक्त लगेगा सब स्वीकारने मे।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-48468215721666132082010-12-12T23:53:06.749-08:002010-12-12T23:53:06.749-08:00बहस तो पूर्ण यौवन पर है और हम तो अब आ पाए। यह सब व...बहस तो पूर्ण यौवन पर है और हम तो अब आ पाए। यह सब व्यक्ति व्यक्ति पर निर्भर करता है। समाज की मान्यताएं तीव्रता से बदल रही हैं तो अब सोचने के तरीके में भी बदलाव आ रहा है। बस अच्छी पोस्ट है।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-7664812544851740242010-12-12T23:09:54.813-08:002010-12-12T23:09:54.813-08:00आज के दौर में इस तरह की बातें लोकप्रियता बटोरने के...आज के दौर में इस तरह की बातें लोकप्रियता बटोरने के लिए भी हो सकती हैं ... क्योंकि एक्टिंग और वास्तविकता का अंतर आगरा जैसे महानगर में कोई जानता न होगा ... ऐसा लगता नही ... और अगर सच में ही गे की एक्टिंग की वजह से घरवाले नाराज़ हैं तो ये बेवजह ही है ... गे होनकोई जुर्म नही है ... इस तरह की बातों को बेवजह ही तूल दी जाती है मीडीया पर ... अगर ऐसी बहुत सी बातों को मीडीया न उठाए तो समाज का ज़्यादा भला होगा ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-36109077560936244452010-12-12T22:49:47.091-08:002010-12-12T22:49:47.091-08:00अब आप इसे दोमुंहापन कहें या कुछ और ? इस प्रकरण मे...अब आप इसे दोमुंहापन कहें या कुछ और ? इस प्रकरण में उल्लिखित परिवार में रंगमंचीय संस्कारों का अभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-55626861511465067062010-12-12T22:46:37.993-08:002010-12-12T22:46:37.993-08:00ऐसा नहीं है कि गेयता (गे'यता') हमारे समाज ...ऐसा नहीं है कि गेयता (गे'यता') हमारे समाज को अप्रिय है ! विरोध सिर्फ ये कि अपने घर में नहीं होनी चाहिए !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-70863677327294317742010-12-12T22:33:33.882-08:002010-12-12T22:33:33.882-08:00अरे बाबा रे.......... अच्छी खासी बहस चल पड़ी है......अरे बाबा रे.......... अच्छी खासी बहस चल पड़ी है.... ऐसे लगता है टीवी स्टूडियो का दृश्य चल रहा है........<br /><br />रश्मि जी, आप बधाई की पात्र है, कि ऐसे सवेदनशील टोपिक पर की-बोर्ड तोडा है..... जहां आकार हमारा तथाकथित प्रगतिशील समाज भी रूढ़ हो जाता है..दीपक बाबाhttps://www.blogger.com/profile/14225710037311600528noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-22963020297849877772010-12-12T21:51:01.397-08:002010-12-12T21:51:01.397-08:00बात दूसरी तरफ बह चली तो मैं आज से कई दशक पहले जाना...बात दूसरी तरफ बह चली तो मैं आज से कई दशक पहले जाना चाहता हूँ जब शायद पहली बार किसी ने ऐसा किया था.. प्रसिद्ध फुटबॉल खिलाड़ी पेले ने करोड़ों का विज्ञापन करने से सिर्फ इसलिए मना कर दिया था कि वह पेय उनके विचार में घटिया था...<br />वर्ना आज तो जो कैल्विन क्लीन के अण्डरगार्मेण्ट्स पहनते हैं,वो अमूल और वीआईपी के कॉमर्शियल करते दिखते हैं!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-72924988510898522552010-12-12T21:05:45.207-08:002010-12-12T21:05:45.207-08:00nahin apradh nahin haen gae kaa rle karna aur gae...nahin apradh nahin haen gae kaa rle karna aur gae hona bhi apradh nahin kanun ki nazar mae ab <br /><br />samaj agar kanun aur samvidhan ko maaney to behtar hoga lekin samaj apne niyam banataa haen aur maantaa haen <br /><br />samaj kae niyam vyakti sae vyakti , jaati sae jaati aur dharma sae dharm thathaa ling sae ling kae liyae farak hotey haen JO GALat HAENरचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com