tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post2842786907219898532..comments2023-10-31T06:34:42.476-07:00Comments on अपनी, उनकी, सबकी बातें: टर्निंग थर्टी : एक अलग सी फिल्म, एक Chick Flickrashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comBlogger34125tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-90048229219608304662011-01-30T04:39:16.695-08:002011-01-30T04:39:16.695-08:00फिल्म देखने के बाद पढता हूँ...वैसे भी आपने डिस्क्ल...फिल्म देखने के बाद पढता हूँ...वैसे भी आपने डिस्क्लेमर डाल रखा ही है :)abhihttps://www.blogger.com/profile/12954157755191063152noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-78767707200346561082011-01-28T08:45:12.191-08:002011-01-28T08:45:12.191-08:00एई बच्चा ! थर्टी या थर्टी प्लस के लिए फिल्म की समी...एई बच्चा ! थर्टी या थर्टी प्लस के लिए फिल्म की समीक्षा के साथ साथ इतना लिख दिया.<br />फिफ्टी प्लस के लिए क्या लिख रही हो?<br />अच्छा और ईमानदार लिखती हो.आज दो आर्टिकल पढे.<br />उस शख्स के बारे में भी जो अनजान लोगों के अंतिम सफर को मानवता के नाम पर दाग लगने से बचा रहा है.उन्हें प्रणाम. हर व्यक्ति गांधी या गौतम नही हो सकता किन्तु अच्छा इंसान बनने की कोशिश तो कर ही सकता है. वे सच्चे धार्मिक व्यक्ति है.गीता और धर्म को जी रहे हैं.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-85162866431817298182011-01-25T04:40:14.175-08:002011-01-25T04:40:14.175-08:00बहुत आकर्षक एवं दमदार समीक्षा है ! फिल्म मैंने देख...बहुत आकर्षक एवं दमदार समीक्षा है ! फिल्म मैंने देखी तो नहीं ! इसमें अतिरंजना भी हो सकती है ! माध्यम वर्ग में, जो कदाचित भारत की आबादी का सबसे विशाल हिस्सा है, ऐसे उदाहरण विरले ही दिखाई देते हैं जहां लडकियां इतनी बोल्डनेस दिखाने की क्षमता रखती हैं ! पता नहीं क्यों अति आधुनिकता का यह रूप मुझे नहीं भाता ! "तू नहीं और सही, और नहीं और सही" वाली मानसिकता को मेरा शायद दकियानूसी मन स्वीकार नहीं कर पाता ! आपकी समीक्षा ने दर्शकों का अच्छा मार्गदर्शन किया है ! शानदार समीक्षा के लिये बधाई एवं शुभकामनाएं !Sadhana Vaidhttps://www.blogger.com/profile/09242428126153386601noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-3714618549316065442011-01-25T00:08:14.275-08:002011-01-25T00:08:14.275-08:00यह पोस्ट (और यह फिल्म, जो देखी नहीं) यह अहसास करात...यह पोस्ट (और यह फिल्म, जो देखी नहीं) यह अहसास कराती है पूरी गम्भीरता से कि मेरा अपना परिवेश देखना कितना सतही है। :( <br />I have not lived in/seen such an environment!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-29733054563424283902011-01-24T19:27:13.596-08:002011-01-24T19:27:13.596-08:00.
बढती उम्र को gracefully accept करना चाहिए।
..<br /><br />बढती उम्र को gracefully accept करना चाहिए। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-3135551147645336692011-01-23T06:14:21.740-08:002011-01-23T06:14:21.740-08:00सुन्दर समीक्षा. अब फिल्म नहीं देखेंगे.सुन्दर समीक्षा. अब फिल्म नहीं देखेंगे.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-59443546352248973972011-01-23T02:11:18.033-08:002011-01-23T02:11:18.033-08:00रश्मि जी इतनी गहन विवेचना .....?
आप तो पूरी समीक्ष...रश्मि जी इतनी गहन विवेचना .....?<br />आप तो पूरी समीक्षक बन गईं .....<br />समीक्षक क्या उससे भी बेहतर लिखा .....<br />और ये जो दुसरे ब्लोगों से कवितायेँ संचय की हैं .न ...<br />आपकी पोस्ट और आपकी प्रतिभा को चार चाँद लगा रहीं हैं .....<br />आप उन महिलाओं में से हैं जो समय के साथ चलतीं हैं ....हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-77690285273342609482011-01-22T22:38:12.571-08:002011-01-22T22:38:12.571-08:00रश्मिजी
बहुत उम्दा फिल्म समीक्षा |फिल्म की कहानी क...रश्मिजी<br />बहुत उम्दा फिल्म समीक्षा |फिल्म की कहानी को रोजमर की बातो के सन्दर्भ में लिखना और तुलनात्मक लेखन बहुत ही अच्छा लगा साथही ताजी ताजी कविताओ का उल्लेख सोने पर सुहागा |आपकी समीक्षात्मक शैली इतनी प्रभावपूर्ण है की अब फिल्म देखने की भी जरुरत नहीं लगती |<br />"फंस गये रे ओबामा "और तेरे बिन लादेन "जरुर देखिएगा |शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-5018715853769393342011-01-22T10:01:35.921-08:002011-01-22T10:01:35.921-08:00राजेश जी,
बहुत बहुत शुक्रिया....लेखिका का नाम और उ...राजेश जी,<br />बहुत बहुत शुक्रिया....लेखिका का नाम और उपन्यास की जानकारी देने के लिए.<br /> उसे लिखे जाने के प्रकरण की भी विस्तार से जानकारी दी.<br />मैं ढूंढ ही रही थी कि कहीं से नाम पता चले तो वाणी को उत्तर दूँ या फिर कोई सुधि पाठक ही नाम बता दें.आपने बता दिया...धन्यवाद.<br /><br />कविताएँ कम ही पढ़ती हूँ...पर जो याद रह जाती हैं...उनका उल्लेख करना अच्छा लगता है...पहले भी अपनी पोस्ट में , ब्लॉग से ही उद्धृत की हैं,कविता की पंक्तियाँ.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-33464625760260567282011-01-22T09:21:23.111-08:002011-01-22T09:21:23.111-08:00रश्मि जी किसी भी फिल्म को एक नजरिए के साथ देखना औ...रश्मि जी किसी भी फिल्म को एक नजरिए के साथ देखना और विश्लेषण करने का आपका तरीका बहुत प्रभावशाली है। इस पोस्ट में ब्लाग में प्रकाशित कविताओं को याद करना भी एक नया प्रयोग है। <br />*<br />@वाणी गीत जी ने किताब का जिक्र किया है और नाम भी पूछा है। शायद जवाब आप भी देतीं। पर मुझसे रहा नहीं जा रहा। उन्होंने जिस उपन्यास का जिक्र किया है,वह वास्तव में लेखिका की अपनी जिन्दगी की कहानी है। लेखिका है प्रेमचंद के नाती प्रबोधकुमार के घर में काम करने वाली महिला बेबी हालदार। और किताब का नाम है आलो आंधारी यानी अंधेरे में रोशनी।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-55801407306264061912011-01-22T04:51:45.444-08:002011-01-22T04:51:45.444-08:00हम भले ही महानगर में रहने आ गये हैं, परंतु सोच शाय...हम भले ही महानगर में रहने आ गये हैं, परंतु सोच शायद महानगरों वाली नहीं हो पाई, इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि विचार ज्यादा खुले नहीं हैं और इस तरह की जीवनशैली पसंद भी नहीं है, इस तरह के जीवनशैली वाले लोग तो हमें आज भी अजायबघर वाले ही लगते हैं।<br /><br />पर फ़िर भी फ़िल्मों में शायद इनको समझना आसान होता है, क्योंकि निजी जिंदगी मॆं तो अगर ऐसा कोई बंदा आसपास भी होगा तो मैं दूरी बनाना ही पसंद करूँगा।<br /><br />आपका लेखन बहुत ही अच्छा लगा।विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-50954749643983787382011-01-21T08:41:28.129-08:002011-01-21T08:41:28.129-08:00बहुत ही सुंदर समीक्षात्मक प्रस्तुति..... फिल्म के ...बहुत ही सुंदर समीक्षात्मक प्रस्तुति..... फिल्म के बारे में जिज्ञासा बढ़ गयी है अतः अब देखनी पड़ेगी. सुंदर प्रस्तुति.उपेन्द्र नाथhttps://www.blogger.com/profile/07603216151835286501noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-80661298614670800102011-01-21T02:31:23.411-08:002011-01-21T02:31:23.411-08:00अरे यार तुम्हारी वाली बात ………कब सोलह आया और कब थर्...अरे यार तुम्हारी वाली बात ………कब सोलह आया और कब थर्टी पता ही नही चला……………ज़िन्दगी मे ये सब चलता है आज क्योंकि अब लडकिया कहीं भी कमजोर नही है फिर उसके लिये चाहे उन्हे कितनी ही मुश्किलो का सामना क्यो ना करना पडे…………बहुत अच्छा लिखा है फ़िल्म देखी नही तो पता नही।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-69140361236130711682011-01-21T02:11:55.138-08:002011-01-21T02:11:55.138-08:00फिनिशिंग सिक्सटी पे आधारित कंसेप्ट है शायद :)फिनिशिंग सिक्सटी पे आधारित कंसेप्ट है शायद :)उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-88466101357027457792011-01-21T00:27:44.157-08:002011-01-21T00:27:44.157-08:00रश्मि जी आमतौर पर क्रिटिक्स की साढ़े तीन स्टार रेट...रश्मि जी आमतौर पर क्रिटिक्स की साढ़े तीन स्टार रेटिंग के बाद ही फिल्म देखता हूँ लेकिन इस फिल्म को आपकी समीक्षा के बाद देखूंगा.. बहुत सजीव चित्रण है आपका, फिल्म और उनके पात्रों का.. साथ में जो लिंक्स दिए हैं वे भी अच्छे हैं.. मेरी कविता का लिंक देने के लिए बहुत बहुत आभार... ऐसे चरित्र हमारे आसपास घुमते रहते हैं.. हमारे परिवेश में होते हैं.. मध्यवर्ग और उच्च मध्य वर्ग में उम्र के विभिन्न पडावो का एहसास हो होता है लेकिन ये एहसास पत्थर के नीचे के दूब की तरह अँधेरे में बंद रह जाते हैं ग्रामीण परिवेश में.. और सारी उम्र निकल जाती हैं यो ही... कभी इस ओर भी लिखियेगा..अरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-4904560678614689692011-01-21T00:19:41.918-08:002011-01-21T00:19:41.918-08:00बहुत अच्छा लगा ये लेख, तुम्हारी कलम से पूरी फ़िल्म...बहुत अच्छा लगा ये लेख, तुम्हारी कलम से पूरी फ़िल्म देख डाली है. इसमें उठा एक मुद्दे से मैं भी सहमत हूँ. वैसे अपने से अधिक आमदनी वाली पत्नी न स्वीकार पाने में पुरुष दंभ आहत होता है क्योंकि कमतर किसी भी दृष्टि से वे पसंद नहीं करते और अगर ऐसे हालात हों भी तो इसके परिणाम सुखद तो बिल्कुल नहीं होते. बल्कि इससे परिवार बिखर तक जाते हैं.रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-47724730526670716072011-01-20T21:47:50.999-08:002011-01-20T21:47:50.999-08:00अच्छा लगा !अच्छा लगा !रवीन्द्र प्रभातhttps://www.blogger.com/profile/11471859655099784046noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-43891863472575817322011-01-20T21:43:02.801-08:002011-01-20T21:43:02.801-08:00तुम्हारा डिस्क्लेमर मेरे काम का नहीं था ...इसलिए उ...तुम्हारा डिस्क्लेमर मेरे काम का नहीं था ...इसलिए उसे अनदेखा कर दिया..<br /> <br />फिल्म की कहानी मुझे तो रोचक लगी ...केंद्रीय पात्र महिला होने के कारण ...एक दुसरे के कन्धों का उपयोग सीधी के रूप में कर ऊपर चढ़ जाना और फिर उसी सीधी को लात मारने वाली मानसिकता खूब उभर कर आयी तुम्हरी समीक्षा में ... <br /><br />16वां कब बीता , कब तीस ...वाकई पता नहीं चला ...आंकड़े गिनने बैठो तो ही पता चलता है की इतनी उम्र बिता चुके वर्ना तो ...:) <br />आजकल एक नया विज्ञापन आ रहा है २6के बाद...मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि तब तक तो हम लड़कपन में ही थे ...<br /><br />चेतन भगत की सीधी सरल अंग्रेजी भाषा के अलावा एक काम वाली बाई (प्रेमचंदजी के किसी रिश्तेदार के घर काम करती थी ...उनके प्रोत्साहन ने उसे लिखने की हिम्मत दी...नाम तो तुम ही बताओगी ) का भी सरल हिंदी में एक उपन्यास काफी लोकप्रिय हुआ है ...दरअसल हर क्षेत्र में सहजता को स्वीकार किया जाने लगा है ..!वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-18761720027120045962011-01-20T20:06:26.617-08:002011-01-20T20:06:26.617-08:00बहुत बढ़िया रश्मि जी, आपने फिल्म के बारे में इतने ...बहुत बढ़िया रश्मि जी, आपने फिल्म के बारे में इतने विस्तार से चर्चा की, लगता है सारी फिल्म परदे पर देख रहा हूँ .आप भी कविताओं के मसाले डालना नहीं भूली.साथ में अपने व्यक्तिगत अनुभवों का तडका भी लगा दिया. आपकी कलम को सलाम.विशालhttps://www.blogger.com/profile/06351646493594437643noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-63533423875421873112011-01-20T17:30:36.972-08:002011-01-20T17:30:36.972-08:00काश डिस्क्लेमर पर ध्यान दिया होता -हम इन्हें यूं ह...काश डिस्क्लेमर पर ध्यान दिया होता -हम इन्हें यूं ही ले लेते हैं -पोस्ट पढ़ाने की एक जुगत के रूप में ! पर अब पछताये क्या होगा ? :)<br />मुझे भी एक ऐसी लडकी का पता है जो तीस की है मगर उधेड़बुन में है :)Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-71143668083323489262011-01-20T10:39:44.638-08:002011-01-20T10:39:44.638-08:00हम्म... वैसे ऐसे लोग भी हैं जिन्हें ज्यादा सैलरी व...हम्म... वैसे ऐसे लोग भी हैं जिन्हें ज्यादा सैलरी वाली पत्नी से बिलकुल भी शिकायत नहीं होगी :) <br /><br />देखता हूँ ये फिल्म.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-9820265642677973312011-01-20T10:08:58.841-08:002011-01-20T10:08:58.841-08:00काफ़ी विस्तृत समीक्षा!! देखता हूँ समय मिलता है तो!!...काफ़ी विस्तृत समीक्षा!! देखता हूँ समय मिलता है तो!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-12808261008542979572011-01-20T09:42:12.162-08:002011-01-20T09:42:12.162-08:00आप के लेख से पुरी फ़िल्म देख ली जी धन्यवादआप के लेख से पुरी फ़िल्म देख ली जी धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-24921475875372501582011-01-20T08:34:23.351-08:002011-01-20T08:34:23.351-08:00kuchh kah nahin paa rahaa main....kuchh kah nahin paa rahaa main....राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ )https://www.blogger.com/profile/07142399482899589367noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-65702237930802342812011-01-20T08:22:56.871-08:002011-01-20T08:22:56.871-08:00बेचैनी तब होती है जब लगता है कि 30 होने पर जीवन का...बेचैनी तब होती है जब लगता है कि 30 होने पर जीवन का महत्वपूर्ण भाग जीवन से निकला जा रहा है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.com