tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post2791054918449154477..comments2023-10-31T06:34:42.476-07:00Comments on अपनी, उनकी, सबकी बातें: आँखों ,जुबां और कानों पर पड़े तालों को खोलने की....एक गुजारिश.rashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comBlogger45125tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-78041274467069384782010-10-27T13:14:07.178-07:002010-10-27T13:14:07.178-07:00रश्मि जी ,
यही संप्रेषित करने की इच्छा थी हमारी !...रश्मि जी , <br />यही संप्रेषित करने की इच्छा थी हमारी ! <br />गाँव में कभी कभी बड़ों के अदब-लिहाज के चलते भले न मार पीट हो , पर एक दूसरे तरह की घुटन भी रहती है ! एक पक्ष आपने भी सही ही लक्षित किया है !Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-48141104231676682612010-10-26T09:28:44.385-07:002010-10-26T09:28:44.385-07:00जाने कब सुधरेंगे तथाकथित सभ्य लोग। अंकुर जैसी नई प...जाने कब सुधरेंगे तथाकथित सभ्य लोग। अंकुर जैसी नई पीढ़ी के बच्चे आशा जगाते हैं।रवि धवनhttps://www.blogger.com/profile/04969011339464008866noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-16049589411506361832010-10-24T05:06:00.910-07:002010-10-24T05:06:00.910-07:00बहुत देर से आई हूं, कारण तुम जानते हो, इसलिये सफ़ा...बहुत देर से आई हूं, कारण तुम जानते हो, इसलिये सफ़ाई नहीं दूंगी. <br />अधिकांशत: ऐसा होता है रश्मि, कि यदि किसी घर से झगड़े की आवाज़ें आ रही हों , तो पड़ोसी संकोचवश खिड़की बन्द कर लेते हैं, कि उनका घरेलू मामला है. यदि कोई बीचबचाव करना चाहता है, तो उसे ऐसी ही सलाह दी जाते है जैसी लाइट बन्द करने वाली महिला ने दी.<br />संयुक्त परिवारों का विघटन बहुत बड़ा कारण है इस हिंसा का.वरना संयुक्त परिवारों में पुरुष इतना हिंसक व्यवहार नही कर पाते. कम से कम परिवार वालों का खयाल तो करते ही हैं. और यदि कुछ करें भी तो बीच-बचाव के लिये भी लोग उपलब्ध रहते हैं. सार्थक पोस्ट.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-78731070554671689672010-10-23T01:01:15.751-07:002010-10-23T01:01:15.751-07:00@विश्वनाथ जी,
आपने इतने उदाहरणों से यह देख ही लिया...@विश्वनाथ जी,<br />आपने इतने उदाहरणों से यह देख ही लिया होगा कि शिक्षित होने से घरेलू हिंसा का कोई ताल्लुक नहीं है. ब्रैंडेड कपड़ों में सजे, फैन्सी कारों में घूमने वाले लोग भी अंदर से जानवर होते हैं.<br /><br />आपके बेटे की संवेदनशीलता जानकर बहुत ही अच्छा लगा....जैसा कि मैने मुक्ति की टिप्पणी के जबाब में कहा,...इस उम्र में हर बच्चा बहुत ही संवेदनशील,जागरूक और कुछ कर गुजरने का जज्बा लिए होता है ...पर धीरे धीरे वक़्त के थपेड़े उसे संवेदनहीन बना देते हैं.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-68808684293200708612010-10-23T00:53:16.068-07:002010-10-23T00:53:16.068-07:00@अमरेन्द्र जी,
आपने बिलकुल सही कहा...गाँव का नाम ल...@अमरेन्द्र जी,<br />आपने बिलकुल सही कहा...गाँव का नाम लेते ही ,सबकी आँखों के सामने लहलहाते खेत, फलों से लदे पेड़...रंग-बिरंगे परिधानों में कुएं से पानी भरती स्त्रियाँ...लोकगीत गाते,हल जोतते किसान..ऐसी ही तस्वीर आती है .जबकि सच्चाई कुछ और है.<br /><br />गाँवों में सामाजिकता है...पर उनकी परिभाषा अलग है...छप्पर शायद साथ मिलकर उठाते हों...पर किसी स्त्री के करुण रूदन सुनने के लिए उनके भी कानों पर ताले पड़ जाते हैं. पिछली पोस्ट में मैने गाँव में देखे ही एक दृश्य का जिक्र किया था जिसमे सरेआम एक पति अपनी पत्नी को पीट रहा था और लोग इसे पति का अधिकार समझ कर चुप थे. औरतों का शोषण वहाँ भी कम नहीं.वहाँ तो सास धमकी देती है, कि "आने दो बेटे को आज तुम्हे पिटवाती हूँ "<br /><br />पर फिर भी मुझे लगता है छोटे शहरों के पढ़े-लिखे संयुक्त परिवारों में घरेलू हिंसा जैसी चीज़ नहीं होगी. (अब पूरी सच्चाई मुझे नहीं पता)rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-29069544768407549432010-10-23T00:39:32.645-07:002010-10-23T00:39:32.645-07:00@अशोक जी,
जब आपके जैसा जागरूक इंसान और संवेदनशील क...@अशोक जी,<br />जब आपके जैसा जागरूक इंसान और संवेदनशील कवि किंकर्तव्यविमूढ़ता महसूस करे तो कैसे चलेगा??<br /><br />@अंशुमाला जी,<br />आपका आकलन एकदम सही है, सब लोगों ने घरेलू हिंसा को स्वीकार कर लिया है...इसे बड़ी बात मानते ही नहीं....और अब पुलिस की भूमिका भी बदल रही है...इस से लोग अनभिज्ञ हैं. पुलिस का नाम लेते ही डर जाते हैं, कि पुलिस स्टेशन के चक्कर लगाने पड़ेंगे...नाम बताना पड़ेगा....जबकि मोटरसाइकिल पर घूमते मार्शल( मुंबई में ),विवाद की जगह पर तुरंत पहुँच जाते हैं.(हाँ,उनका फोन नंबर लग जाना चाहिए)<br /><br />@काजल जी,<br />बस यही फितरत बदलनी चाहिए....पता नहीं क्यूँ...अक्सर ,पुरुष खुद को श्रेष्ट तो समझते हैं..पर उसके अनुरूप व्यवहार नहीं करते.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-63036161109869245312010-10-22T18:02:22.162-07:002010-10-22T18:02:22.162-07:00बिहारी बाबू को सोच रहा हूँ मुन्नवर राना साहेब की प...बिहारी बाबू को सोच रहा हूँ मुन्नवर राना साहेब की पंक्तियों से:<br /><br />तुम्हारे शहर में मय्यत को भी कांधा नहीं देते<br />हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिलकर उठाते हैं<br /><br />......कितना सच सा लगता है और ऐसे में अंकुर..एक उदाहरण बन सामने है.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-41756408856918478772010-10-22T18:00:50.092-07:002010-10-22T18:00:50.092-07:00अंकुर पर नाज है...बहुत ही खुशी हुई...अनेक आशीष.अंकुर पर नाज है...बहुत ही खुशी हुई...अनेक आशीष.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-87839411249264751312010-10-22T11:27:00.378-07:002010-10-22T11:27:00.378-07:00भीतर तक हिला दिया आपकी पोस्ट ने ......
औरत को लेकर...भीतर तक हिला दिया आपकी पोस्ट ने ......<br />औरत को लेकर जहां कहीं भी ऐसी घटनाएं सुनती हूँ बहुत वक़्त लगता है मानसिक संतुलन ठीक करने में .....<br />और अभी भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ .....<br />बहुत सु यादें भी जुडी हैं इसके साथ .....<br />बस आह .... ..है ...!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-53834129538239545052010-10-22T09:35:16.868-07:002010-10-22T09:35:16.868-07:00रश्मि जी !
मेरे विचार में यह बात किसी कल्चर विशेष...रश्मि जी !<br /><br />मेरे विचार में यह बात किसी कल्चर विशेष से जुड़ी हुई नही है बल्कि मानसिकता और आत्म-केन्द्रित होते जा रहे हमारे जीवन की है…… हम किसी घटना को किसी का पर्सनल मामला बता कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं और दूसरों से आशा करते हैं कि वो कुछ पहल करेगा……! बस यही मानसिकता ऐसी घटनाओं को प्रोत्साहन देती है……!ताले असल में सिर्फ़ जुबान पर लगे होते हैं…बस उन्हे खोलने कि जरूरत है…!<br /><br />अन्कुर की सम्वेदनशीलता और उसकी प्रतिक्रिया उसे बधाई का पात्र बनाती है…Ravi Shankarhttps://www.blogger.com/profile/08004933931335889834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-75790434436438483242010-10-22T07:45:21.645-07:002010-10-22T07:45:21.645-07:00किस्सा सुनकर दुख हुआ।
Please ring the bell भी पढा...किस्सा सुनकर दुख हुआ।<br />Please ring the bell भी पढा।<br />मानता हूँ, हम मर्द जात में काफ़ी लोग जानवर से भिन्न नहीं हैं।<br />यह एक पुरानी समाजिक समस्या है।<br />पहले लोग सोचते थे कि जैसे जैसे लोग शिक्षित होंगे, ऐसी धटनाएं बन्द होंगी।<br />Now I am not so sure<br />पढे लिखे लोग भी ऐसा बर्ताव कर रहे हैं।<br /><br />आपका Ring the bell, idea अच्छा लगा।<br />कभी अवसर मिला तो घंटी जरूर बजाऊंगा।<br /><br />अंकुर की बात सुनकर मुझे भी मेरे बेटे की याद आ गई।<br />एक दिन उदास होकर स्कूल से वापस आया और बिना किसी से कुछ कहे अपने कमरे में चला गया और दर्वाजा बन्द कर लिया। हमें बाहर से उसकी फ़ूट फ़ूटकर रोने की आवाज आ रही थी। चिन्तित होकर हम दरवाजे पर जोर जोर से खटखटाकर उससे दर्वाजा खुलवाया और बात जानने की कोशिश की। तब जाकर पता चला कि उसे तो कुछ नहीं हुआ है पर उसके साथ पढने वाली क्लास में एक लडकी के पिता का अचानक निधन हो गया था। उसे अपने क्लास में पढने वाली लडकी का दुख बर्दाश्त नहीं हो रहा था। <br /><br />शुभकामनाएं<br />जी विश्वनाथG Vishwanathhttps://www.blogger.com/profile/13678760877531272232noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-65429204440367051932010-10-22T06:24:27.517-07:002010-10-22T06:24:27.517-07:00अंकुर में यह संवदेनशीलता बनी रहे।अंकुर में यह संवदेनशीलता बनी रहे।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-78050850038386900852010-10-22T05:01:39.179-07:002010-10-22T05:01:39.179-07:00अपने आस पास के अंधेरे समयों के अंतर्विरोधों पर एक ...अपने आस पास के अंधेरे समयों के अंतर्विरोधों पर एक संवेदनशील और बेहद मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. घटाटोप अंधेरों के बीच जलती नन्ही सी लौ नई उम्मीदों की संभावनाओं के रूप में उभरती है और हमारे मनों में एक सुखद भविष्य का सपना रोप जाती है. आभार. <br />सादर <br />डोरोथी.Dorothyhttps://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-5636831313243484082010-10-22T04:54:37.864-07:002010-10-22T04:54:37.864-07:00सामाजिक जागरूकता जरूरी है ! लोगों के बीच तक यह ज्ञ...सामाजिक जागरूकता जरूरी है ! लोगों के बीच तक यह ज्ञान जाना आवश्यक ! आप सपरिवार संवेदनशील हैं , इसलिए घटना को विवेचनपरक ढंग से देख सकीं ! <br /><br />पर जैसा अली जी ने कहा कि परिवार का टूटना महानगरीय सच्चाई है इसलिए अब इसकी उल्टी प्रक्रिया पर नहीं सोचा जा सकता ! सामाजिक दायित्वबोध का भाव जगे यही आवश्यक है ! <br /><br />एक पंक्ति जिसे पोस्ट के लगभग हासिल के तौर पर देखा गया है उसे लक्ष्य करके जरूर कुछ कहना चाहूँगा ---<br />@ ....हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिलकर उठाते हैं.<br />--- यह कवि का गांवों को महिमामंडन करने का ख्याल अधिक है , न कि यथार्थ ! १९०० के बाद से ही ऐसा ही चल रहा है गांवों को कविता से समझने का का हिसाब - किताब ! ' काशीफल कूष्माण्ड कहीं हैं , कहीं लौकियां लटक रही हैं ' ! - वाला बोध कल्पनाजीवी है ! कवि कहते रहे - 'अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है ' !! .......पर जब यथार्थ के धरातल की बहस हो तो किसी कवि के कल्पना-प्रवासी विचार को लेकर नहीं चला जा सकता नहीं तो बहस भी भावुक-लोक में गम हो जाती है ! इस दृष्टि से गांवों की यथार्थवादी तस्वीर हमारे उपन्यासों ने अंकित किया है , जहां गाँव के प्रति 'अहा-अहा' का भाव नहीं बल्कि समस्याओं का चित्रण है ! बहस के वक़्त इन पंक्तियों को ज्यादा ठोस आधार बनाना चाहिए ! १९३६ में प्रकाशित प्रेमचंद के गोदान में गाँव-वासी होरी का भाई हीरा ही होरी के पशु को जहर खिलाता है ! 'मैला आँचल' में गाँव में रहने वाले 'बारहों बरन' को देखा जा सकता है ! 'छप्पर उठाने' के ठीक उलट 'छप्पर जलाना' भी गाँव के खुरपेंची सच में शामिल है ! इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती !<br />गांवों में संयुक्त परिवारों में भी स्त्रियों का शोषण नहीं है , ऐसी बात नहीं !! आभार !!Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-36373290222788201082010-10-22T03:08:41.714-07:002010-10-22T03:08:41.714-07:00अंकुर ने संवेदनशील होने का परिचय देते हुए पुलिस बु...अंकुर ने संवेदनशील होने का परिचय देते हुए पुलिस बुलाई...<br />आपने इस अत्याचार को सबके सामने रखा...<br /><br />अल्लाह करे-कामयाब हो-<br />आँखों,जुबां और कानों पर पड़े तालों को खोलने की....यह कोशिश.शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद''https://www.blogger.com/profile/09169582610976061788noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-41074191821090840532010-10-21T21:04:00.116-07:002010-10-21T21:04:00.116-07:00jagrookta aur prerna dene wali post ..ankur ki sam...jagrookta aur prerna dene wali post ..ankur ki samvedansheelta ko namanसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-69588787030008458952010-10-21T11:51:34.701-07:002010-10-21T11:51:34.701-07:00शाबाश अंकुर,
तुम बधाई के पात्र हो.
हर किसी को तुम्...शाबाश अंकुर,<br />तुम बधाई के पात्र हो.<br />हर किसी को तुम्हारे जैसा जागरूक और होशियार होना चाहिए.<br />पुन: शाबाशी.<br />धन्यवाद.<br />WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COMचन्द्र कुमार सोनीhttps://www.blogger.com/profile/13890668378567100301noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-7468229515726147662010-10-21T09:42:23.558-07:002010-10-21T09:42:23.558-07:00इंसान की फितरत बड़ी चीज़ है. वह कहीं भी रहे फितरत ...इंसान की फितरत बड़ी चीज़ है. वह कहीं भी रहे फितरत के मुताबिक ही काम करता है अलबत्ता जहां मौक़ा लगता है बहती गंगा में हाथ धोने से नहीं ही चूकता.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-46612266286655944992010-10-21T06:35:20.243-07:002010-10-21T06:35:20.243-07:00गुड समारिटन! आपका परिवार सकारात्मक चेतना से युक्त ...गुड समारिटन! आपका परिवार सकारात्मक चेतना से युक्त है -शुभकामनाएं !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-39993490341855998862010-10-21T06:24:49.937-07:002010-10-21T06:24:49.937-07:00घरेलू हिंसा को रोकिये, बेल बजाये !घरेलू हिंसा को रोकिये, बेल बजाये !पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-84262254211872616522010-10-21T06:08:57.315-07:002010-10-21T06:08:57.315-07:00मुझे लोगों का व्यवहार इस मामले में बिल्कूल भी समझ ...मुझे लोगों का व्यवहार इस मामले में बिल्कूल भी समझ नहीं आता है | ठीक है आप दूसरो के मामले में नहीं पड़ना चाहते है और किसी से अपने रिश्ते भी नहीं बिगड़ना चाहते है पर कम से कम आप एक फोन तो पुलिस को कर ही सकते है अपना नाम बताये बगैर पर लोग वो भी नहीं करते है | असल में घरेलु हिंसा को सभी ने स्वीकार कर लिया है वो उसको बड़ी बात मानते ही नहीं है |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-70111989102033735342010-10-21T05:28:13.331-07:002010-10-21T05:28:13.331-07:00अगर सभी लोग अंकुर की तरह दयालू और कर्तव्य के प्रति...अगर सभी लोग अंकुर की तरह दयालू और कर्तव्य के प्रति सचेत हों तो बहुत सी ऐसी दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है। शुभकामनायें।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-90986898069386666532010-10-21T04:41:14.193-07:002010-10-21T04:41:14.193-07:00रश्मि जी, मेरे तो रोंगटे खडे हो गये पढते पढते। पता...रश्मि जी, मेरे तो रोंगटे खडे हो गये पढते पढते। पता नहीं कहां जाकर रूकेंगे हम?Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-30978894030250423952010-10-21T04:36:12.963-07:002010-10-21T04:36:12.963-07:00ये सच है रश्मि संयुक्त परिवार के विघटन से पुरुष नि...ये सच है रश्मि संयुक्त परिवार के विघटन से पुरुष निरंकुश हुआ है और अब क्या कहें? अब माता पिता के साथ उनकी पत्नी ही sath na rahana चाहे तो उसके लिए कोई क्या करे? फिर पारिवारिक विघटन में सिर्फ एक दोषी नहीं है. घरेलु हिंसा ने ही परिवारों को नष्ट कर दिया है , इससे सिर्फ पत्नी ही नहीं बच्चे भी आहट होते हैं और उनमें प्रतिशोध की भावना भी पनपने लगती है. वे अपराधों की ओर उन्मुख होने लगते हैं.<br /> बच्चों में संवेदनशीलता है क्योंकि उन लोगों ने अपने घर के वातावरण में ये पाया है और वही उनने ग्रहण किया है.रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-57992219731662627162010-10-21T03:24:38.219-07:002010-10-21T03:24:38.219-07:00बहुत बहुत आशीष बेटे को!
ह्रदय विदारक घटना है!
बेटे...बहुत बहुत आशीष बेटे को!<br />ह्रदय विदारक घटना है!<br />बेटे का उदाहरण अनुकरणीय और प्रशंसनीय है!मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.com