tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post2041726526114755076..comments2023-10-31T06:34:42.476-07:00Comments on अपनी, उनकी, सबकी बातें: एक मुख़्तसर सी मुलाकात....'कैलाश सेंगर' के साथrashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comBlogger28125tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-61605082606641377542010-04-12T07:50:02.004-07:002010-04-12T07:50:02.004-07:00Kailash ji ke sath mulakat ka achchha varnan.....h...Kailash ji ke sath mulakat ka achchha varnan.....hardik shubhakamnayen.<br />Poonamपूनम श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/09864127183201263925noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-43153668672808492262010-04-12T00:20:54.313-07:002010-04-12T00:20:54.313-07:00पढ़ कर इतना तो निश्चित ही समझ में आ जाता है कि अच्...पढ़ कर इतना तो निश्चित ही समझ में आ जाता है कि अच्छे लेख या कहानी <br />का क़द्र आप बहुत करती है , और यह वही कर सकता है जो खुद भी अच्छा हो ,<br />ऐसे महान हस्तियों को आपने सही सम्मान दिया , एक बात मुझे रोचक लगी <br />" पुराने लोग " हा हा हा हा अब तो पुराने में ही गिनती होगी ना , लेकिन <br />इस बात का भी उल्लेख रश्मि जी के अतिरिक्त कोई दूसरा कर दे शायद नहीं .<br />आपकी विद्वता , आपकी प्रस्तुति का मै स्वयं कायल हूँ .arun pandeyhttps://www.blogger.com/profile/17139040947477372339noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-87221021495537899202010-04-10T11:13:13.694-07:002010-04-10T11:13:13.694-07:00इस मुलाकात का वर्णन पढ़ कर अच्छा लगा । और इतनी सा...इस मुलाकात का वर्णन पढ़ कर अच्छा लगा । और इतनी सारी बातें मन में उमड रही हैं कि यहाँ लिख नहीं पाउंगा ।आपका यह लेख पता है किन किन लोगों को अच्छा लगा होगा .. <br />*सबसे पहले रेडियो में कविता कहानी पढ़ने वाले मित्रगण .. 9 मिनट , 12 मिनट ,13 मिनट .. ज़रा जल्दी पढ़िये , ज़रा धीरे पढ़िये , रिपीट कीजिये , यह लाइने हटा दीजिये । हम लोग तो अब इतने एक्सपर्ट हो गये है कि घर से ही प्रेक्टिस करके जाते हैं एक बार मे ओके । <br />* कैलाश जी को जानने वाले ,या वे भी जिन्होने उनका नाम सुना होगा । पता नहीं यह वक़्त लोगों के साथ कैसा सलूक करता है ।<br />* और वे लोग जिनकी आदतें भी कुछ कुछ ऐसी ही रही हैं । होस्टेल जाते हुए बक्से में सब कुछ बन्द करके जाना और जाने क्या क्या इकठ्ठा करते रहना । दुष्यंत जी की एक लाइन याद आ रही है .." आज सन्दूक से वे खत तो निकालो यारों >><br />फिलहाल इतना ही ...शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-56002340070600413062010-04-10T08:12:55.497-07:002010-04-10T08:12:55.497-07:00कफी समय तक धर्मयुग का साथ रहा। मेरी बिटिया छोटी थी...कफी समय तक धर्मयुग का साथ रहा। मेरी बिटिया छोटी थी और उसे धर्मुग कहती थी।<br />फिर <b>धर्मुग</b> बन्द हो गया! :(Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-66418918581051010032010-04-10T04:00:45.703-07:002010-04-10T04:00:45.703-07:00कैलाश सेंगर जी के साथ : एक मुख़्तसर मुलाकात..धर्मय...कैलाश सेंगर जी के साथ : एक मुख़्तसर मुलाकात..धर्मयुग से जुड़ी भूली बिसरी यादें ... <br />सब कुछ पढ़ना बहुत सुखद लगा ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-60438761648332389852010-04-10T03:11:45.020-07:002010-04-10T03:11:45.020-07:00वाकई धर्मयुग याद आ गया यह कहानी मैंने भी पढ़ी थी &q...वाकई धर्मयुग याद आ गया यह कहानी मैंने भी पढ़ी थी "इसी जनम में दुबारा अपना परिचय देना अच्छा नहीं लगता " इसी पंक्ति से याद आई वह ..शुक्रिया इस खूबसूरत पोस्ट को पढवाने का ..रंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-12791904022341302842010-04-10T02:27:05.644-07:002010-04-10T02:27:05.644-07:00बहुत ही रोमांचक लिखा आपने ...बस एक ही सांस में सार...बहुत ही रोमांचक लिखा आपने ...बस एक ही सांस में सारा पढ़ गयी .....इतनी बड़ी पोस्ट में टंकण की भी कोई गलती नहीं ....क्या बात है आप तो माहिर हो गयी .....बहुत ही प्रभावशाली लेखन .....!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-28814110150207435722010-04-09T05:24:27.352-07:002010-04-09T05:24:27.352-07:00@वंदना
हम बड़े दिल वाले हैं...चलो माफ़ किया...क्या...@वंदना<br />हम बड़े दिल वाले हैं...चलो माफ़ किया...क्या याद करोगी तुम भी...मैडम मेरी कहानी ९ मिनट ४६ सेकेण्ड में पूरी हो गयी,इस बार...लेकिन एक कन्फेशन है..हर बार नहीं होती :(rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-87111494919347071882010-04-09T05:20:33.641-07:002010-04-09T05:20:33.641-07:00सॉरी...........उठक-बैठक लगाऊं क्या?
जानती हो रश्...सॉरी...........उठक-बैठक लगाऊं क्या? <br />जानती हो रश्मि, मेरे साथ भी हमेशा ऐसा होता है. मेरी कहानियों की लम्बाई हमेशा आठ या नौ मिनट की हो जाती है. बाद में बेचारे एनाउन्सर को फ़िलर लगाना पड़ता है:) कैलाश जी के साथ मुलाकात में तो बड़ा मज़ा आया होगा. और धर्मयुग!! जैसे दुखती रग हो कोई!! पूरे हफ़्ते इन्तज़ार और फिर सबसे पहले हाथ में लेने की कवायद. धर्मयुग के तो बहुत सारे अंक तो मैने भी सहेजे हैं. बहुत सुन्दर पोस्ट.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-33359579416960430832010-04-09T04:00:25.637-07:002010-04-09T04:00:25.637-07:00rashmi
sach kai baar zindagi mein aise lamhat aa...rashmi<br /><br />sach kai baar zindagi mein aise lamhat aate hain aur kitne apne se lagte hain kaha nahi ja sakta..........mere khyal se ye aapke jeevan ka ek sahejne yogya kshan hai.vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-19221928402946275232010-04-09T02:30:44.403-07:002010-04-09T02:30:44.403-07:00मन के साथ
आंखें भी भर
आई हैं पढ़
पूरा किस्सा
स...मन के साथ<br /><br />आंखें भी भर<br /><br />आई हैं पढ़<br /><br />पूरा किस्सा<br />स्वर्णिम हिस्सा<br /><br />जिंदगी का।अविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-47302580721830549642010-04-08T23:16:22.697-07:002010-04-08T23:16:22.697-07:00रश्मिजी,
आपने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया है। कैल...रश्मिजी,<br />आपने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया है। कैलाश मेरे बरसों पुराने या कहें विस्मृत मित्र हैं, हम लोगों ने दामोदर खडसे के साथ कई दिन मस्ती में गुज़ारे हैं। उनकी वाकपटुता से जितनी भी देर कोई साथ रहे वह खुश रहता है। मैंने भी धर्मयुग में कई साल लगातार 'रंग और व्यंग' स्तम्भ में लिखा है और इस कारण देश भर के लेखकों के सम्मान या कहें ईर्षा का पात्र रहा हूं। मेरे पास अभी भी कई सालों के धर्मयुग संकलित हैं जिन्हें मैंने लगातार हिंदुस्तान भर में हुये ट्रांसफर में ढोया है किंतु अभी भी उनका मोह नहीं छूटा। कैलाश की पत्नी के निधन की जानकारी भी मुझे नहीं थी। मैं सचमुच बहुत भावुक हो रहा हूं......आपको धन्यवाद्वीरेन्द्र जैनhttps://www.blogger.com/profile/03394460991280336978noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-9094836534022633922010-04-08T22:55:48.602-07:002010-04-08T22:55:48.602-07:00इतनी बढ़िया और मनपसंद पोस्ट के लिए बहुत बहुत धन्यव...इतनी बढ़िया और मनपसंद पोस्ट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. क्या 'धर्मयुग' का नाम लेकर मुझे भी वही पहुंचा दिया. उन दिनों धर्मयुग और साप्ताहिक हिंदुस्तान दो ही पत्रिकाएं ऐसी थीं जिनमें सब कुछ मिल जाता था. दोनों उस समय में मुझे भी बहुत प्रिय थे.<br />जो कथा या साहित्य मन को छू लेता है, उसका सब कुछ याद रहता है. सुमन सरीन की भी याद दिला दी.रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-68432497350962038032010-04-08T22:33:39.013-07:002010-04-08T22:33:39.013-07:00@वाणी
बिलकुल सही याद है तुम्हे....मुझे तो पूरा ना...@वाणी<br />बिलकुल सही याद है तुम्हे....मुझे तो पूरा नाम याद है..उज्जला करकल (उज्ज्वला था या उज्जला,ये sure नहीं हूँ ) ..प्रकाश पादुकोण के हाथों में बड़ी सी ट्रॉफी और पत्रकारों के आग्रह पर उज्जला का माथा चूमते हुए मुखपृष्ठ पर छपे उस चित्र ने बड़ी धूम मचाई थी. उज्जला के खिले मुस्कान और चमकते दांत भी याद हैं..(दीपिका को माँ से ही मिली है ये मोतियों से दांत की सौगात )....इसीलिए उनकी बेटी भी इतनी अपनी सी लगती है...और मेरी फेवरेटrashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-60052952874799465072010-04-08T21:30:59.230-07:002010-04-08T21:30:59.230-07:00धर्मयुग की बात करते ही उसके बीच के पन्ने पर छपने व...धर्मयुग की बात करते ही उसके बीच के पन्ने पर छपने वाली विशिष्ट हस्तियाँ याद आ जाती हैं ...लता मंगेशकर और प्रकाश पादुकोण के जीत कर आने पर उज्ज्वला (नाम सही याद है क्या ..?) के साथ उनकी तस्वीर आज भी आँखों के सामने ज्यों की त्यों है ...मैं कही विषय से भटक तो नहीं गयी ...<br /><br />इसी तरह अस्पष्ट स्मृतियों में कैलाश सेंगर जी का नाम भी सुना हुआ लगा ...इस विशिष्ट मुलाकात को सबसे साझा करने के लिए बहुत आभार ....वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-48043529174801858752010-04-08T19:40:18.115-07:002010-04-08T19:40:18.115-07:00श्री कैलाश सेंगर जी से मुलाक़ात -बढ़िया..कभी मौका लग...श्री कैलाश सेंगर जी से मुलाक़ात -बढ़िया..कभी मौका लगा तो जरुर.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-73439260400655647682010-04-08T10:35:36.429-07:002010-04-08T10:35:36.429-07:00सेंगर जी की कहानी मिली तो जरूर पढ़ेंगे।सेंगर जी की कहानी मिली तो जरूर पढ़ेंगे।Rangnath Singhhttps://www.blogger.com/profile/01610478806395347189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-60889443579324779372010-04-08T09:36:48.032-07:002010-04-08T09:36:48.032-07:00कैलाश सेंगर जी से आपकी मुलाक़ात बहुत बढ़िया रही......कैलाश सेंगर जी से आपकी मुलाक़ात बहुत बढ़िया रही.....उनके बारे में जानकारी दी ..बहुत बहुत शुक्रिया...<br /><br />और हाँ धर्मयुग मेरी भी पसंदीदा पत्रिका रही है..उसका ज़िक्र कर बहुत सी यादें ताज़ा हो गयीं....:):)<br /><br />बढ़िया लेख...बधाईसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-62437475396837848712010-04-08T09:25:50.811-07:002010-04-08T09:25:50.811-07:00मैं आ गया हूँ..... संस्मरणात्मकली यह पोस्ट अच्छी ल...मैं आ गया हूँ..... संस्मरणात्मकली यह पोस्ट अच्छी लगी..... अभी और भी बाकी पोस्ट्स पढनी है..... आज रात में सिर्फ आप ही की पोस्ट पढूंगा...सारी जो छूट गयीं हैं...... बहुत मिस किया ....<br /><br /><br />Regards....डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-23646143127808789252010-04-08T08:42:43.732-07:002010-04-08T08:42:43.732-07:00और हाँ ये बक्से में छुपा कर रखने वाली मेरी आदत.. आ...और हाँ ये बक्से में छुपा कर रखने वाली मेरी आदत.. आपको भी, या आपकी आदत मुझे भी है अलबत्ता बक्से की जगह अटैची ने ले ली है. :)दीपक 'मशाल'https://www.blogger.com/profile/00942644736827727003noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-17612837011567135882010-04-08T08:39:36.720-07:002010-04-08T08:39:36.720-07:00श्री कैलाश सेंगर जी से मुलाक़ात बहुत अच्छी रही शुक्...श्री कैलाश सेंगर जी से मुलाक़ात बहुत अच्छी रही शुक्रिया दी. ना जाने क्यों उनका सुमन जी से विछोह बहुत तकलीफ दे गया और नैनों की कोर में ओस भी. धर्मयुग के बारे में कुछ कहूँगा तो दिन-रात पलों की तरह गुज़र जायेंगे और पता भी ना चलेगा इसलिए उसको अभी रहने दीजिये. :)दीपक 'मशाल'https://www.blogger.com/profile/00942644736827727003noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-23718466901619564162010-04-08T08:18:16.223-07:002010-04-08T08:18:16.223-07:00Hi..
Dharmyug.. Guzre jamane ki Wo patrika thi jo ...Hi..<br />Dharmyug.. Guzre jamane ki Wo patrika thi jo har sahitya premi ke ghar ki shobha badhaya karti thi.. Aapse jab jab es patrika ka jikr sunte hain to swatah hi apna bachpan yaad ho aata hai.. DHARMYUG humare ghar bhi aata tha.. Aur mere Pita ji aur maata ji ese badhe chav se padhte the.. <br /><br />Par humen aapki tarah na to kahanikar na kahaniyan yaad hain..siwaay Dharmyug ke aakhiri panne par chhape Kartoon 'DABBU JI' ke.. Shayad hamen tab yahi sabse priya raha tha aur esiliye hum to 'DABBU JI' hi rah gaye aur aap apne preeya kahanikaaron, lekhakon ki tarah kahanikar/lekhak banin aur aaj apni pahchaan ek kahanikaar, ek lekhak sa bana payi hain.. Haha.. <br /><br />Chand saal baad Kailash Sengar ji ki tarah.. Aapka bhi interview jab prasarit hoga tab shayad hum apne blog (jise filhaal humare alawa koi nahi padhta..) par jikr kar rahe honge.. Aur log kahenge.. Ye wo Apni, unki, sabki baaton wali Rashmi ji hain..wo Jo Julia si blogging ke prati man se samarpit hain.. <br /><br />Tab aap hi shayad apne pathkon se puchhti nazar aayen.. 'Kya Shachi ko Abhishek ke pas laut aana chahiye tha?' (Aapki kahani.. I am still waiting for you Shachi..)' haha..aur mere se pathak kahen.. Aapko Shachi se Abhishek ko milwana hi chahiye tha.. Kam se kam kahani ke patr to pyaar main doori na paayen..<br /><br />Barhaal Kailash Sengar se aapke sath humari mulakat avismarneeya rahegi.. Hamesha..<br /><br />Sundar aalekh.. Badhai..<br /><br />DEEPAK SHUKLA..Deepak Shuklahttps://www.blogger.com/profile/02437731202200979518noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-55963783802089574342010-04-08T07:54:00.892-07:002010-04-08T07:54:00.892-07:00कैलाश सेंगर जी के साथ : एक मुख़्तसर मुलाकात...पढ़ी...कैलाश सेंगर जी के साथ : एक मुख़्तसर मुलाकात...पढ़ी...मजा आ गया...किसी लेखक की रचना के पात्रों के नाम याद रहने का मतलब रचना में भी दम है.... और लेखक को कितनी ख़ुशी होती है ..इस संवेदना को आम आदमी भला कहाँ समझता है...बहुत अच्छा लगा..बधाई और शुभकामनायें...दीनदयाल शर्मा. <br />http://deendayalsharma.blogspot.comदीनदयाल शर्माhttps://www.blogger.com/profile/07486685825249552436noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-49430544076720056762010-04-08T07:42:37.814-07:002010-04-08T07:42:37.814-07:00@ क्या मुक्ति एक बार तो रश्मि दी कह दिया...कितनी ख...@ क्या मुक्ति एक बार तो रश्मि दी कह दिया...कितनी ख़ुशी हुई मुझे, कॉलेज के बाद ब्लॉग जगत में ही कुछ लोग रश्मि दी कहते हैं (घर में रीना दी कहते हैं सब )...और तुम वापस 'दी' से 'जी' पर आ गयी :( :(..not fairrashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-8710072004443374902010-04-08T07:38:32.002-07:002010-04-08T07:38:32.002-07:00सच में रश्मि जी, कैलाश जी को बहुत खुशी हुई होगी जब...सच में रश्मि जी, कैलाश जी को बहुत खुशी हुई होगी जब उन्होंने आपके मुँह से अपनी कहानी के बारे में सुना होगा. और मुझे इस बात पर आश्चर्य हो रहा है कि कैसे आपने कहानियों को धरोहर की तरह सहेज कर रखा है? धर्मयुग मैंने बहुत छोटे पर देखी थी, तब ये सब पढ़ने लायक नहीं थी. बाद में यह पत्रिका छोटे शहरों में दुर्लभ हो गई थी.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.com