tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post1897020222437606798..comments2023-10-31T06:34:42.476-07:00Comments on अपनी, उनकी, सबकी बातें: संस्मरण रुपी रेल का इंजनrashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comBlogger40125tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-66561927941678304272017-05-26T21:23:21.943-07:002017-05-26T21:23:21.943-07:00अब तो सीमा भी मिल गई और पिछले चार पांच सालों में ह...अब तो सीमा भी मिल गई और पिछले चार पांच सालों में हम कई बार मिल चुके हैं ।rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-54714282193973272312011-06-06T01:28:47.423-07:002011-06-06T01:28:47.423-07:00देखिये कितना कुछ पता चला पढ़कर...
आप हमारे इलाके ...देखिये कितना कुछ पता चला पढ़कर...<br /><br />आप हमारे इलाके में इतने इतने जगहों पर रह चुकी हैं, सुखद आश्चर्य हुआ जानकार...भोला टाकीज वाले हमारे रिश्तेदार ही हैं...<br /><br />आपके यादों की रेल में बैठ सफ़र करने में उतना ही आनंद आया जितना आपको यह chalaane में आया होगा...<br /><br />बहुत बहुत रोचक...वाह !!!!रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-82834610651379572712011-05-31T20:52:35.078-07:002011-05-31T20:52:35.078-07:00रोचक है यह फिल्म चर्चा।रोचक है यह फिल्म चर्चा।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-59488755403020624772011-05-30T11:42:42.779-07:002011-05-30T11:42:42.779-07:00रश्मि जी आपके लिखने का अंदाज़ बहुत मनोरंजक भी है ...रश्मि जी आपके लिखने का अंदाज़ बहुत मनोरंजक भी है ज़ज्बाती भी है प्रवाह बहुत अच्छा है. ये रेल को बंद मत होने दो. बहुत सुंदर.रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-3940055728046560522011-05-30T10:44:36.768-07:002011-05-30T10:44:36.768-07:00बहुत सुन्दर संस्मरण,बधाई
- विवेक जैन vivj2000.blog...बहुत सुन्दर संस्मरण,बधाई<br />-<a href="http://vivj2000.blogspot.com/" rel="nofollow"><b> विवेक जैन </b><i>vivj2000.blogspot.com</i></a>Vivek Jainhttps://www.blogger.com/profile/06451362299284545765noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-92155487872113703052011-05-30T03:22:02.499-07:002011-05-30T03:22:02.499-07:00Beautiful Sansmaran Rashmi ji , Enjoyed reading .T...Beautiful Sansmaran Rashmi ji , Enjoyed reading .Thanks .ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-13367368315103665392011-05-30T02:24:28.388-07:002011-05-30T02:24:28.388-07:00रश्मि जी,
नमस्कार
बहुत सुंदर लगे इंजन रुपी रेल के...रश्मि जी,<br />नमस्कार<br /> बहुत सुंदर लगे इंजन रुपी रेल के संस्मरणसंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-45598389366406752062011-05-28T07:45:40.385-07:002011-05-28T07:45:40.385-07:00@ गुनाहों का देवता
यही वह उपन्यास है जिसने उपन्यास...@ गुनाहों का देवता<br />यही वह उपन्यास है जिसने उपन्यास पढ़ने की लत लगवाया, जो आज तक नहीं छूटी है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-20915069610394371942011-05-28T05:29:06.984-07:002011-05-28T05:29:06.984-07:00अभी भी मुझे याद है जया भादुड़ी को स्लेट पर 'क ...अभी भी मुझे याद है जया भादुड़ी को स्लेट पर 'क ख ''लिखते देख मेरे छोटे भाई ने कैसे चिल्ला कर कहा था 'अरे!! इतनी बड़ी हो गयी है और इसे लिखना भी नहीं आता?' सब लोग मुड कर देखने लगे थे और मैं शर्म से पानी पानी हो गयी थी. <br />*<br />आपके इस संस्मरण में यह बहुत रोचक हिस्सा है। सच बताइए आप अपने छोटे भाई की बहन थीं,इसलिए शर्मिन्दा हुईं या आपने खुद को ही जया भादुड़ी समझ लिया था। <br />*<br />बहरहाल आपकी फिल्मी कहानी बहुत रोचक है। अपनी कहानी भी कुछ ऐसी ही है। पर आपकी कहानी में जो सबसे रोचक बात है वह यह कि उस समय एक युवा होती लड़की के दिमाग में फिल्मों को लेकर किस तरह की बातें चलतीं थीं।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-71746798442589035342011-05-28T02:56:53.673-07:002011-05-28T02:56:53.673-07:00धनबाद से कोई बीस किलोमीटर एक सोते हुए उप शहर में थ...धनबाद से कोई बीस किलोमीटर एक सोते हुए उप शहर में थे हम.. वहां एक हाल था.. श्री लेखा टाकिज... वह केवल श्वेत श्याम फिल्मे ही लगती थी.. वहां का टिकट दर था पंद्रह पैसा.. पैतालीस पैसा... पचहत्तर पैसा.... वर्षो देखी फिल्मे छुप छुप कर... एक बार पकड़ा गया... बाबूजी ने पिटाई भी की... लेकिन आदत नहीं छूटी..बाबूजी के साथ पहली फिल्म देखी थी नदिया के पार... फिर गंगा धाम.... और अभी बाबूजी को अपने साथ ले गया था थ्री ईडियट्स देखने... फिल्म देख कर निकलते हुए बाबूजी ने कहा, 'ठीक ही किया तुमने की साइंस छोड़ के अंग्रेजी में आनर्स किया'.... अच्छा लगा यह सुनकर... कभी मैं भी लिखूंगा एक संस्मरण इस पर.... <br /><br />बढ़िया संस्मरण.. सरस.. सहज...अरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-70068029305720654322011-05-28T02:55:41.067-07:002011-05-28T02:55:41.067-07:00@अंशुमाला जी,
उस फिल्म का नाम 'सुमन ' था. ...@अंशुमाला जी,<br />उस फिल्म का नाम 'सुमन ' था. और वो पुणे फिल्म इंस्टीच्यूट के स्टुडेंट्स ने ही बनाई थी.(डायरेक्शन की पढ़ाई करनेवालों ने )<br /> आम दर्शकों के लिए नहीं बनी थी वह. जया भादुड़ी ने एक बेफिक्र किशोर लड़की की भूमिका निभाई थी....जिसे दूसरों की(उस लड़के की ) नज़रों से अपनी किशोरावस्था का आभास होता है. सुना है....उन्होंने बहुत ही अच्छे एक्सप्रेशन दिए थे.<br />यही फिल्म देख कर हृषिदा ने उन्हें 'गुड्डी' की भूमिका के लिए चुना था.<br /><br />और आप बिलकुल प्रकाशित करिए,अपनी पोस्ट....निस्संदेह वो और भी अच्छी और अलग सी होगी.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-27443676329387609342011-05-28T02:53:35.167-07:002011-05-28T02:53:35.167-07:00होस्टल , फ़िल्में , हीरो हिरोइन --सभी बड़े सुखद संस...होस्टल , फ़िल्में , हीरो हिरोइन --सभी बड़े सुखद संस्मरण लगते हैं । सुन्दर प्रस्तुति ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-3500700211201530052011-05-28T02:27:50.216-07:002011-05-28T02:27:50.216-07:00जया जी तो मुझे भी काफी पसंद है पहले भी और आज भी उन...जया जी तो मुझे भी काफी पसंद है पहले भी और आज भी उनकी एक फिल्म के नाम के बारे में मै भी काफी समय से जानना चाह रही थी जिसमे वो एक कम उम्र लड़की की भूमिका निभा रही थी ( बाल कलाकार नहीं ) जिनके प्रति शहर से आया उनके परिचित का पुत्र मोहित हो जाता है | उस समय पता था की ये शायद तब की फिल्म है जब वो फिल्मो में सक्रीय होने से पहले पुणे में पढ़ रही थी | और खुशदीप जी से सहमत हूँ मुझे भी इन्ही की फिल्मे ज्यादा पसंद थी | <br />वाह क्या मजेदार संजोग है मैंने अभी अभी फिल्म पर ही एक पोस्ट लिखी है पर आप की पोस्ट जीतनी अच्छी और संस्मरण की तरह नहीं है अच्छा हुआ प्रकाशित करने से पहले आप की पोस्ट पर नजर पड़ गई चलिए उसे अगले हफ्ते प्रकाशित करती हूँ |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-76496184728554296852011-05-28T02:22:08.114-07:002011-05-28T02:22:08.114-07:00@मनोज जी,
पर आपने हमारे मुहल्ले के संजय टॉकिज का ज...@मनोज जी,<br />पर आपने हमारे मुहल्ले के संजय टॉकिज का जिक्र नहीं किया, शायद आपने आंधी देखी ही नहीं।<br /><br />सच है....मैने फिल्म आंधी नहीं देखी थी बल्कि आजतक बड़े परदे पर नहीं देखी.हमें सिर्फ चुनिन्दा फिल्मे ही दिखाईं जाती थीं.<br /> <br />पैरेंट्स अपने बच्चों को नासमझ ही समझते हैं :) (जैसा आज हम समझते हैं )...जबकि उन्हें पता ही नहीं..मैने 'आठवीं-नवीं' में ही 'देवदास' और 'गुनाहों का देवता' पढ़ ली थी. धर्मयुग की कहानियाँ तो शायद लिखना-पढना सीखते ही पढना शुरू कर दिया था.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-26719087376046995632011-05-28T02:16:23.994-07:002011-05-28T02:16:23.994-07:00@मनोज जी,
आज तो ‘गुरु गूड़ चेला चिन्नी’ का जमाना ह...@मनोज जी,<br /><b>आज तो ‘गुरु गूड़ चेला चिन्नी’ का जमाना है।</b><br /><br />कई बार ऐसा नहीं होता....कि कोई ,जिस विधा का पारंगत हो..वही राह दूसरों को दिखाए.<br /> दुसरो में कुछ अलग गुण देखकर अलग राह भी बतायी जाती है...अब उस राह पर चलकर नाम हासिल करनेवाले पर निर्भर है कि वह राह दिखाने वाले को याद रखे या नहीं..:)<br /><br />इस से राह दिखाने वाले का क्या जाता है....अपनी बतायी राह पर किसी को सफलता हासिल करते देख हुई ख़ुशी और संतोष तो कोई उस से नहीं छीन सकता,ना :)rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-25125681423954461022011-05-28T02:07:04.684-07:002011-05-28T02:07:04.684-07:00रोचक है आपकी यह यात्रा।
फिल्में संभवतः हम सभी के अ...रोचक है आपकी यह यात्रा।<br />फिल्में संभवतः हम सभी के अन्दर काफी रची बसी हैं।<br />कभी खुद तो नहीं गया सिनेमा हॉल ( चौबीस साल में दो बार को कभी नहीं कह सकते हैं?) पर माँ-मौसियाँ ऐसे ही किस्से बताती हैं अपने भी।<br />डिब्बे जुड़ते रहें, यात्रा बढे।<br />शुभकामनाएँAvinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-17198816218017793852011-05-27T22:21:06.158-07:002011-05-27T22:21:06.158-07:00बहुत रोचक है रेल के इन डब्बों की सवारी ...सोचती हू...बहुत रोचक है रेल के इन डब्बों की सवारी ...सोचती हूँ जिन हालातों में पहले मम्मी -पापा की मिन्नतें करके भी फ़िल्में देख लेते थे ...लकड़ी की बेंचें , बीडी सिगरेट के धुएं के बीच, बार बार बंद होती लाईट और जेनरेटर के इंतज़ार में पसीना होते- होते ...अब संभव ही नहीं !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-86169131237933909682011-05-27T21:02:29.379-07:002011-05-27T21:02:29.379-07:00वो दौर ऐसा था जब अमिताभ बच्चन एक तरफ एंग्री यंग मै...वो दौर ऐसा था जब अमिताभ बच्चन एक तरफ एंग्री यंग मैन का जलवा पर्दे पर दिखा रहे होते तो साथ ही ऋषिकेश दा की फिल्मों- चुपके-चुपके, जुर्माना, बेमिसाल में भी उच्च कोटि का अभिनय दिखा रहे होते...सत्तर के दशक को मैं हिंदी सिनेमा का उत्कृष्ट काल मानता हूं, जब ऋषिकेश दा, बासु चटर्जी, गुलजार ने एक के बाद एक कई बेजोड़ फिल्में दी थीं...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-61869033773108684482011-05-27T20:12:28.014-07:002011-05-27T20:12:28.014-07:00जया भादुड़ी के हम भी फेन थे लेकिन फिल्म और पिताजी...जया भादुड़ी के हम भी फेन थे लेकिन फिल्म और पिताजी? ना बाबा ना।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-74742216461284137102011-05-27T15:17:46.288-07:002011-05-27T15:17:46.288-07:00जुड़ते रहें नए संस्मरण के डिब्बे ...कई बाते जानने...जुड़ते रहें नए संस्मरण के डिब्बे ...कई बाते जानने को मिल रही हैं...... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-28198005042524367012011-05-27T11:20:49.392-07:002011-05-27T11:20:49.392-07:00जिस मोड़ पर यह रोचक संसमरण समाप्त हुआ है वहां से च...जिस मोड़ पर यह रोचक संसमरण समाप्त हुआ है वहां से चलचित्र की तरह संस्मरण देखने की रुचि बढ़ गई है।<br />अगला पार्ट यथा शीघ्र पेश किया जाए।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-47327573062802954352011-05-27T11:18:31.589-07:002011-05-27T11:18:31.589-07:00समस्ती पुर में आज भी तीन ही सिनेमाघर हैं सिनेमा दे...समस्ती पुर में आज भी तीन ही सिनेमाघर हैं सिनेमा देखने लायक। आपने हमें राम और श्याम और किनारा फ़िल्में देखने की याद ताज़ा कर दी।<br />... और बताइए कि है कहीं और सिनेमा घर जहां सिर्फ़ महिलाओं के लिए शो रिजर्व हो!!!!मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-71950062452332316282011-05-27T11:14:32.255-07:002011-05-27T11:14:32.255-07:00जया की बात की आपने और वह भी मुज़फ़्फ़र पुर में, हम...जया की बात की आपने और वह भी मुज़फ़्फ़र पुर में, हमने भी उन्हें वहीं की थिएटरों में देखा। <br />पर आपने हमारे मुहल्ले के संजय टॉकिज का जिक्र नहीं किया, शायद आपने आंधी देखी ही नहीं।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-27718829619194716192011-05-27T11:09:13.968-07:002011-05-27T11:09:13.968-07:00प्रोजेक्टर और सफ़ेद पर्दे पर हमारे जमाने में उपकार...प्रोजेक्टर और सफ़ेद पर्दे पर हमारे जमाने में उपकार खूब दिखाया जाता था, और हम देखे भी खूब!मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-51451345716503170922011-05-27T11:06:25.669-07:002011-05-27T11:06:25.669-07:00@ (इन सबका जिक्र मैं कई बार कर चुकी हूँ..शायद आप स...@ (इन सबका जिक्र मैं कई बार कर चुकी हूँ..शायद आप सब... सुन कर बोर हो गए होंगे ,<br />बोर नहीं होते, काफ़ी अच्छा लगता है। आज तो ‘गुरु गूड़ चेला चिन्नी’ का जमाना है। इस जमाने में कोई अपने से सीनियर, मार्गदर्शक की याद करता हो, उसके प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हो तो देख-सुन कर मन भर आता है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.com