tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post1429128778874459628..comments2023-10-31T06:34:42.476-07:00Comments on अपनी, उनकी, सबकी बातें: परकटे नन्हे परिंदेrashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comBlogger28125tag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-71343831078476215832011-11-13T00:37:20.619-08:002011-11-13T00:37:20.619-08:00विचारणीय आलेख सोचने को मजबूर करता है।विचारणीय आलेख सोचने को मजबूर करता है।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-29594747276970780512011-11-10T08:54:28.830-08:002011-11-10T08:54:28.830-08:00गंभीर चिंतन प्रस्तुत करता पोस्ट।गंभीर चिंतन प्रस्तुत करता पोस्ट।Atul Shrivastavahttps://www.blogger.com/profile/02230138510255260638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-9034985935920631422011-11-10T08:44:27.104-08:002011-11-10T08:44:27.104-08:00पर उस समय से बाल श्रमिकों की संख्या में १५% की वृ...पर उस समय से बाल श्रमिकों की संख्या में १५% की वृद्धि ही हुई है. बाल श्रम के विरुद्ध कानून बना कर कुछ नहीं किया जा सकता...जब तक गाँवों को विकसित नहीं किया जाएगा...वहाँ भरण-पोषण और पढ़ने -लिखने की सुविधा नहीं मुहैया करवाई जायेगी...ये बाल मजदूरी का कलंक हमारे समाज के माथे पर विद्यमान रहेगा.<br />पूरी तरह सहमत...<br />और ये स्थिति हर तरफ़ देखने को मिलती है रश्मि जी...सबसे ज़रूरी सामाजिक चेतना है.शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद''https://www.blogger.com/profile/09169582610976061788noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-34983606051720935702011-11-10T00:28:31.285-08:002011-11-10T00:28:31.285-08:00शिक्षा ही इस समस्या के मूल में है और ये मूलभूत अधि...शिक्षा ही इस समस्या के मूल में है और ये मूलभूत अधिकार देश में हर स्तर तक जा कर करना होगा ... क़ानून बना देने से कुछ नहीं होने वाला ... सरकार की सोच इस दिशा में कुछ कर सकती है ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-84361827654854629482011-11-09T03:00:23.392-08:002011-11-09T03:00:23.392-08:00पच्चीस साल पहले बने 'बालश्रम' विरुद्ध कान...पच्चीस साल पहले बने 'बालश्रम' विरुद्ध कानून का आज यह हश्र है तो 'अन्ना जी आपके 'जनलोकपाल' बिल का क्या होगा जनाबे आली ...!!!{:=/GGShaikhhttps://www.blogger.com/profile/02232826611976465613noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-45866099420764113682011-11-08T22:07:15.129-08:002011-11-08T22:07:15.129-08:00Whether it is in villages or cities, people who pr...Whether it is in villages or cities, people who produce the output don't get their due. Its only middlemen and capitalists who take lion's share. Government's agri-loan policy is also has adverse cascading effects on the financial condition of Indian farmers, whereas in cities, labourers are being exploited at the hands of factory/establishment owners. As far as schooling system is concerned, you can find signboards of Municipal schools hanging in some dilapidated building with no school existing there at all.Tinder Posthttps://www.blogger.com/profile/11765901362145179564noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-55660961852245859002011-11-08T19:00:21.668-08:002011-11-08T19:00:21.668-08:00जिस देश में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है वहां बच्चो...जिस देश में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है वहां बच्चों को बचपन से स्वावलंबी बनने के विकल्प को धता बता कर लम्बी चौड़ी बातें कर उन्हें फिर एक अन्धकारमय भविष्य की और ढकेल देना बहुत एक बड़ी गलती है -हमने अनेक बाल पुनर्वास योजनाओं की लफ्फाजी और सच देखा है ...और मनुष्य के बच्चे एक उम्र के बाद शरीर से भले अविकसित से हों दिमाग उनका तेज हो जाता है -तो उन्हें कड़े शारीरिक श्रम के बजाय हलके श्रम और दिमागी प्रमुखता लिए कामों में लगाने में मुझे तो कोई बुराई नहीं लगती .....Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-40044016757792707252011-11-08T18:51:55.826-08:002011-11-08T18:51:55.826-08:00इन बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित करना बहुत मुश्क...इन बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित करना बहुत मुश्किल है ...<br />घर के काम में सहायता करने वाले बच्चों को पढ़ाने की बहुत कोशिश की , मगर उसे पढने से ज्यादा खाना बनाना अच्छा लगता था, इतनी भुखमरी , तंगी और दबाव में रह चुके इन बच्चों को मोटिवेट करना बहुत मुश्किल कार्य है .. खाना मांगने आने वाले बच्चों के साथ बहुत माथापच्ची करती हूँ, मगर वे सुनने को तैयार नहीं ...छोटे- छोटे बच्चे जिस सुर में भीख मांगते हैं और उसकी ट्रेनिंग माता पिता द्वारा दी जाती है , देख कर कितना खून जला चुकी अपना!!<br /><br />इनको श्रम से दूर कर हम कही भीख मांगने के लिए तो विवश नहीं कर रहे , यह भी सोचना होगा !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-78589836452414744682011-11-08T18:43:34.440-08:002011-11-08T18:43:34.440-08:00is samasyaa ka nidaan filhaal nahiis samasyaa ka nidaan filhaal nahiरश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-53079756561747076052011-11-08T09:34:22.105-08:002011-11-08T09:34:22.105-08:00सबसे ज्यादा अफ़सोस इस बात है की योजनायें बरसों से ...सबसे ज्यादा अफ़सोस इस बात है की योजनायें बरसों से बन रही हैं पर हालात जस के तस हैं ..... बचपन के ये हाल हमारे विकास के सारे दावों की पोल खोलता है ..... जो बहुत दुखद भी है ..... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-84376536787042230992011-11-08T09:28:46.969-08:002011-11-08T09:28:46.969-08:00राज्य सरकार ने प्रखंड स्तर पर श्रम प्रवर्तन पदाधिक...राज्य सरकार ने प्रखंड स्तर पर श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी नियुक्त किये हैं जिनका मुख्य कार्य है बाल श्रमिकों को बचाना और बंधुआ मजदूरों के हितों की रक्षा करना. साथ ही न्यूनतम मजदूरी लागू करना.. और मैंने बहुत करीब से इन तीनों कार्य क्षेत्रों की धज्जियां उड़ाते देखी हैं!!हमारे यहाँ क़ानून की कमी नहीं हैं, बड़े सख्त कानून हैं.. लेकिन प्रवर्तन यानी एनफोर्समेंट ही पंगु है तो हम सिर्फ अफ़सोस ही करते रहेंगे!!<br />बहुत ही अच्छा कवरेज दिया है आपने!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-24253824481826691092011-11-08T08:35:49.174-08:002011-11-08T08:35:49.174-08:00अधिकतर घरों में किसी न किसी रूप में बच्चों से काम ...अधिकतर घरों में किसी न किसी रूप में बच्चों से काम करवाया जाता है और उस पर तुर्रा यही है कि हमने तरस खा कर नौकरी दी है !<br /><br />पैसे बचाने के लिए सब जायज माना जाता है....<br /><br />बीमार होते ही निकाल बाहर किया जाता है कि जब ठीक हो जाओ तब काम पर आ जाना !<br /><br />दूसरे पक्ष की गरीबी जो न कराये व कम है !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-70427921718837692092011-11-08T06:05:59.890-08:002011-11-08T06:05:59.890-08:00आधार जब तक अस्थायी रहेगा, अस्थिरता बनी रहेगी।आधार जब तक अस्थायी रहेगा, अस्थिरता बनी रहेगी।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-23337820749988721562011-11-08T05:45:36.198-08:002011-11-08T05:45:36.198-08:00बाल श्रम कुछ की मजबूरी हो सकती है । लेकिन यह भी सच...बाल श्रम कुछ की मजबूरी हो सकती है । लेकिन यह भी सच लगता है कि जब एक घर में ६ बच्चे होंगे तो संसाधनों की कमी की वज़ह से सब को भर पेट खाना मुहैया नहीं कराया जा सकता । ऐसे में मां बाप उन्हें सौंप देते हैं शहरी बाबुओं को । आखिर पैसा आता हुआ किसे बुरा लगता है । विशेषकर इन लोगों में संवेदनाओं की कमी सी लगती है ।<br />सही कहा , इसे रोकने के लिए गाँव का विकास ज़रूरी है ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-26236062891457076762011-11-08T05:34:44.552-08:002011-11-08T05:34:44.552-08:00और इसकी परिणति ये भी होती है कई बार...जिसे मैंने य...और इसकी परिणति ये भी होती है कई बार...जिसे मैंने या शायद कितनों ने ही देखा होगा। <br />कभी-कभी तो कच्ची उम्र में मिलने वाले कड़वे घूंट से जिंदगी इन्हें इतना कठोर बना देती है कि ये बड़े होकर गलत रास्ते को ही चुन लेते हैं। <br />ये बिल्कुल सही है कि सुधार के लिए जागरूकता ही अहम कड़ी हो सकती है। निश्चित तौर पर कुंभकर्णी सरकार को भी जगाना होगा।रवि धवनhttps://www.blogger.com/profile/04969011339464008866noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-21980670437622057622011-11-08T05:34:29.721-08:002011-11-08T05:34:29.721-08:00मुझे लगता है कि ऐसे पालक शायद ही मिलें जोकि अपने ब...मुझे लगता है कि ऐसे पालक शायद ही मिलें जोकि अपने बच्चों को पढ़ाना ना चाहें बशर्ते उनकी आर्थिक स्थिति ठीक हो !<br /><br />मिड डे मील निसंदेह एक अच्छी योजना है पर यह परिजनों का आर्थिक संबल बनने की पर्याय नहीं है सच कहूं तो योजनाएं भी बुरी हुआ करती हैं कभी :)<br /><br />गरीबों के लिए पढाई का जो विकल्प और तंत्र हमने विकसित किया है उसकी दम पे कितने गुदड़ी के लाल पैदा किये जा सकते हैं और इस सिस्टम में पढकर निकले हुओं का भविष्य क्या है ?<br /><br />बाल श्रम में १५% का इजाफा श्रम मंत्रालय और अधीनस्थ विभागों की कार्यप्रणाली का बेहतरीन उदाहरण है !<br /><br />बहरहाल आपने एक सार्थक मुद्दा उठाया है पिछले बरस भी सिवकासी के बहाने आपने इस मुद्दे पर कलम चलाई थी ! आपकी चिंताएं तारीफ के काबिल हैं ! आपका बहुत बहुत आभार ! हमारी हाज़िरी दर्ज कर लीजियेगा !उम्मतेंhttps://www.blogger.com/profile/11664798385096309812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-43503755490051319322011-11-08T05:22:44.661-08:002011-11-08T05:22:44.661-08:00@अजित जी,
सचमुच यह चिंता का विषय है...कि इतनी सुव...@अजित जी,<br /><br />सचमुच यह चिंता का विषय है...कि इतनी सुविधाएं देने के बाद भी वे लोग पढना नहीं चाहते.<br />उच्च शिक्षा लें, यह कोई जरूरी नहीं...पर प्रारंभिक शिक्षा तो अनिवार्य होनी चाहिए.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-6381514722897389112011-11-08T05:14:18.603-08:002011-11-08T05:14:18.603-08:00@मनोज जी,
गरीबी तो एक सबसे बड़ा कारण है ही.
लेकि...@मनोज जी,<br /><br />गरीबी तो एक सबसे बड़ा कारण है ही.<br /><br />लेकिन कुछ गाँवों में जहाँ भुखमरी की नौबत नहीं है...दो वक़्त का खाना मिल जाता है...वहाँ भी लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते...किसी के घर नौकर बना कर भेज देते हैं ( ये मेरी आँखों देखी बात है..मेरे अपने गाँव की) क्यूंकि शिक्षा के फायदे से वे अनजान हैं.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-13566610097342116232011-11-08T05:06:40.210-08:002011-11-08T05:06:40.210-08:00.@वंदना ,
ये पंक्तियाँ खासकर मैने इसीलिए लिखी हैं.....@वंदना ,<br />ये पंक्तियाँ खासकर मैने इसीलिए लिखी हैं...<br />" बच्चों के माता-पिता को ये विश्वास दिलाया जाए कि बच्चा-पढ़ लिख कर आपसे बेहतर जिंदगी जी सकेगा..उनके सामने ऐसा कोई उदाहरण भी हो ..जहाँ उनके बीच का कोई बच्चा पढ़-लिख कर अच्छी जिंदगी बसर कर रहा हो तो ये तस्वीर बदल सकती है."<br />जबतक माता-पिता को ये विश्वास नहीं होगा कि अच्छी शिक्षा से बच्चों के जीवन में परिवर्तन आ सकता है....वे शिक्षा के महत्त्व को नहीं समझेंगे...हाँ,यह बात उन्हें कैसे समझाई जाए...उनमे यह जागरूकता कैसे लाई जाए, यह सोचने का विषय है.<br /><br />मैने मुंबई का उदाहरण इसीलिए दिया है...गाँव से ही आए उनके ही भाई-बन्धु..कैसे इस बात को समझ जाते हैं?...मेरी बिल्डिंग ..आस-पास की बिल्डिंग में काम करने वाली करीब करीब सभी बाइयों के बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं. मेरी बाई का बेटा फेल हो गया..उसका पढ़ने में मन नहीं लगता पर वो कटिबद्ध है कि अपने बेटे को दसवीं पास करवा के रहेगी...वो कहती है,"अगर नहीं पढ़ेगा तो कहीं कोई गलत रास्ता ना चुन ले...पढ़-लिख कर नौकरी कर सकेगा."<br /><br />मेरी उलझन है कि यही बात ग्रामीण इलाकों के लोग क्यूँ नहीं समझ पाते...उन्हें इस बात का विश्वास दिलाना ही पहला कर्तव्य होना चाहिए.rashmi ravijahttps://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-78814514659852116552011-11-08T04:08:03.606-08:002011-11-08T04:08:03.606-08:00रश्मि जी मैने लम्बे समय तक गाँवों में कार्य किया ...रश्मि जी मैने लम्बे समय तक गाँवों में कार्य किया है और आज भी ग्रामीणजनों से सम्पर्क है। मेवाड़ क्षेत्र जनजातीय क्षेत्र है, इसी क्षेत्र के सर्वाधिक बच्चे बाल मजदूरी कर रहे हैं। आज के 15 वर्ष पूर्व तक गाँवों में पर्याप्त स्कूल नहीं थे लेकिन इसके बाद इस क्षेत्र में( मै सम्पूर्ण देश के बारे में नहीं कह रही हूँ) शिक्षा के लिए बहुत कार्य हुआ। शिक्षाकर्मी योजना, लोकजुम्बिश योजना आदि आयी और शिक्षा जगत में क्रान्ति सी हुई। लेकिन इसके उपरान्त भी बाल मजदूरी नहीं थमी। माता-पिता को लगता है कि आठवी पास कराकर या पांचवी पास कराकर क्या होगा, इससे अच्छा है कि अभी से कोई कार्य करने लगे। जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा के प्रति रूचि बहुत ही कम है। वे प्रकृति के साथ ही रहना चाहते हैं। इसलिए सुविधा देने के बाद भी वे पढ़ते नहीं हैं। आज भी इन क्षेत्रों में उच्च शिक्षा का प्रतिशत बहुत ही कम है।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-70923648517885603092011-11-08T04:04:34.451-08:002011-11-08T04:04:34.451-08:00रश्मि जी मैने पोस्ट में दो मुद्दे उठाये हैं
पहला क...रश्मि जी मैने पोस्ट में दो मुद्दे उठाये हैं<br />पहला की नाबालिग से काम लेना कानूनन अपराध हैं और<br />दूसरा नाबालिग को अगर तनखा बालिग के हिसाब से डी जाती हैं तो क्या ये संभव हैं की उसको बच्चा समझा जायेगा .<br />कानून के हिसाब से अगर हम सब केवल और केवल बालिग़ को ही नौकरी देगे तभी इस में बदलाव संभव हैं<br />ये किसी भी के लिये संभव ही नहीं हैं की वो जिस बच्चे को नौकरी पर रखता हैं उसको अपने बच्चे के समान माने . जब क़ोई भी पैसा देता हैं तो काम लेगा ही .<br />सरकार का कोई भी प्रयास कुछ नहीं कर सकता क्युकी जो लोग "गरीब " हैं वो अपने बच्चो को पैसा कमाने की मशीन मानते हैं और खुद कहते हैं की बच्चे ज्यादा होने से कोई नुक्सान नहीं होता . उनके हिसाब से बच्चो पर कोई खर्चा ही नहीं होता हैं . उनका तो एक ५ साल का बच्चा भी रद्दी जमा करके दिन में ३० रूपए कमा लेता हैं<br /><br />सोच कर देखिये<br /><br />शोषण अब किस का हो रहा हैं ??<br /><br />उनका जिनके यहाँ कम बच्चे हैं और स्तर गरीबी की रेखा से ऊपर हैं या<br /><br /> उनका जिनके यहाँ ज्यादा बच्चे हैं , स्तर गरीबी रेखा से नीचे हैं . जिनको फ्री शिक्षा हैं इत्यादि<br /><br />आज कल एक आम बच्चे को पढ़ने में महीने में करीब ८०००० रुपया तो लग ही जाता हैं . इस प्रकार से एक माध्यम वर्ग का बच्चा १२ तक१००००० रुपया खर्च करता हैं और अगर ट्यूशन इत्यादि हो तो इसका क़ोई हिसाब ही नहीं हैं<br />उसके बाद कॉलेज और फिर नौकरी यानी उनकी बात जो साधरण हैं आम हैं पढाई में . नौकरी में वो कॉलेज के बाद शायाद ६००० पाने लगे . वही एक १४ साल की बच्ची ४००० कमा कर दे रही हैं , क्या आप को अज्ञान लगता हैं ?? नहीं उनको समझ आगयी हैं की ज्यादा से ज्यादा कैसे लेना हैं और इस लिये<br />बच्चो को नौकरी पर रखना तुरंत बंद होना चाहिये .रचनाhttps://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-50571148401006754432011-11-08T03:54:52.432-08:002011-11-08T03:54:52.432-08:00रश्मि, तुमने लिखा है
".उनके बीच जागरूकता की ...रश्मि, तुमने लिखा है <br />".उनके बीच जागरूकता की कमी...और पढ़ने-लिखने की सुविधा का अभाव भी एक वजह है."<br />लेकिन मुझे ऐसा पूरी तरह ठीक नहीं लगता. इन परिवारों में अधिसंख्य परिवार ऐसे हैं, जो जागरूक होना ही नहीं चाहते. बच्चों को पढाने की बात पर उनका सीधा सा जवाब होता है कि "हमें कौन कलक्टरी करानी है इनसे..." ये मैंने खुद भोगा है इसलिये बता रही हूं. मेरे स्कूल से थोड़ी दूर ही एक स्लम एरिया है, जहां जाकर मैने खुद बच्चों को स्कूल भेजने और नि:शुल्क पढाने का आग्रह किया, लेकिन उनका जवाब यही था :( <br />नर्सरी क्लास से उठती आवाज़ों का अनुसरण कर, दो गरीब बच्चे रोज़ मुझे स्कूल गेट पर पूरी ए बी सी डी बोलते मिलते थे, इसी बिना पर मैं उनकी बस्ती में गयी थी :( इन्हीं बच्चों से जब मैने कहा कि वे मेरे पास पढने आ जाया करें, तो उनका जवाब था कि मम्मी गुस्सा होगी :(<br />इन सारे बच्चों के नाम सरकारी स्कूलों में लिखे हैं, जहां से इन्हें यूनिफ़ॉर्म, किताबें सब मिलता है, लेकिन ये केवल मध्यान्ह भोजन के समय वहां जाते हैं :(<br />फिर भी हमें कोशिशें तो जारी रखनी ही चाहिये. कम से कम ये बच्चे मजदूरी तो न ही करें.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-52056948088959193892011-11-08T03:26:59.488-08:002011-11-08T03:26:59.488-08:00बाल मजदूरी और अशिक्षा का मुख्य कारण तो गरीबी ही है...बाल मजदूरी और अशिक्षा का मुख्य कारण तो गरीबी ही है यद्यपि अन्य कारणों को भी नकारा नहीं जा सकता. इस विचारोत्तेजक आलेख के लिये शुभकामनाएँ.रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-4278359583403027712011-11-08T03:14:06.997-08:002011-11-08T03:14:06.997-08:00सरकारी आंकड़ो पर यदि गौर करे तो बाल श्रमिको की संख...सरकारी आंकड़ो पर यदि गौर करे तो बाल श्रमिको की संख्या लगभग 2 करोड़ हैं परन्तु निजी स्रोतों पर गौर करे तो यह लगभग 11 करोड़ से अधिक हैंमनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6334436849193324921.post-37431660443121242382011-11-08T03:12:06.363-08:002011-11-08T03:12:06.363-08:00पेट भर दाना इन्हें नहीं मिलता, तो इनके बच्चे कुपोष...पेट भर दाना इन्हें नहीं मिलता, तो इनके बच्चे कुपोषित हो जाते हैं। दुनिया में 14.6 करोड़ कुपोषित बच्चे हैं। अकेले भारत में 5.7 करोड़ बच्चे कुपोषित हैं। <br /><br />अब पेट पालने के लिए यदि बाल श्रम करना पड़ता है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.com