रविवार, 7 जुलाई 2013

ख़ामोश इल्तिज़ा

(मन हो तो ये कहानी पढ़ लें या फिर निलेश मिश्रा जी की गहरी भावभरी आवाज़ में सुन लें )

तन्वी बालकनी में खड़ी सामने फैले स्याह अँधेरे को घूंट घूंट पीने की कोशिश कर रही थी ,सोचती कुछ ऐसा जादू हो कि वो स्याह अँधेरे में गुम हो जाए और फिर कोई उसे देख न पाए. तभी मोबाईल पर मैसेज टोन बजावो चेक करने नहीं गयीपता था सचिन का मैसेज होगा, "पढ़ लिया न मेरा मैसेज ,अब जरा मुस्करा दो . सचिन का पहला मैसेज पढने के बाद ही बालकनी में आयी थी. और पता था वो दूसरा मैसेज यही भेजेगा . सचिन उसके ऑफिस में हाल में ही आया है ,पर अक्सर टूर पर रहता है. पूरे देश में घूमता रहता और जहां भी जाता है वहां से उसे मैसेज जरूर करता है, कुछ ख़ास नहीं बस उसकी खिडकी से जो भी नज़ारा उसे दिखता है ,वो लिख भेजता है .कभी लिखता , ‘बर्फीली चोटियों पर चाँद की किरणें ऐसे पड़ रही हैं कि सबकुछ नीले रंग में नहा उठा  है ,काश तुम देख पाती कभी राजस्थान के सैंड ड्यून्स का वर्णन करता , कभी काले घुमड़ते बादलों का ,कभी दहकते गुलमोहर का तो कभी पछाड़ खाती समुद्र की लहरों का . एक बार ताजमहल देखने गया तो सिर्फ इतना मैसेज लिखा...वाह ताज !!  ताजमहल को देखा और तुम याद आयी वो किसी मैसेज का जबाब नहीं देती .और सचिन ये बात जानता था .एक बार मैसेज में ही लिखा था , ‘मेरा फोन तो उठाओगी नहीं पर जानता हूँ मैसेज जरूर पढ़ोगी और पढ़ कर मुस्कुराओगी भी ‘.

सचिन बहुत ही जिंदादिल और हंसमुख लड़का था . जितने दिन भी ऑफिस में रहता रौनक आ जाती ऑफिस में. लडकियां तो उसके आस-पास ही मंडराती रहतीं. लड़के भी उसके अच्छे दोस्त थे. अक्सर शाम उन सबका  किसी पार्टी का प्लान बन जाता. वो हमेशा की तरह बस अपने काम से काम रखती और फिर ऑफिस के बाद सीधा घर . शुरू में सबने उसे भी शामिल करने की कोशिश की थी. पर हर बार उसकी ना सुन कर उसे अपने हाल पर छोड़ दिया था .सचिन ने भी हर संभव कोशिश की ,साथ चाय कॉफ़ी लंच का आग्रह ,उसे घर छोड़ देने की पेशकश पर हर बार वो सिर्फ हल्का सा मुस्कुरा कर सर हिला कर ना कर देती . एक बार सचिन ने उसे कह ही दिया , “आपको पता है, आपने अपने चारो तरफ एक  दीवार उठा रखी है, पर यह दीवार दूसरों  को बाहर रखने से ज्यादा आपको अन्दर बंद रखेगी...बहुत घुटन होगी...एक छोटी सी खिड़की तो खोलिए ,थोड़ी ताज़ी हवा आने दीजिये
आपकी बातें मेरी बिलकुल समझ में नहीं आ रहीं...ये काम निबटा लूँ ज़रा कब से पेंडिंग पड़ा है और तन्वी ने कंप्यूटर स्क्रीन पर नज़रें गड़ा दीं.
कोई बात नहीं ,हम भी छेनी हथौड़ा लेकर इस दीवार को गिरा कर ही रहेंगे .उसकी तरफ एक मुस्कुराहट उछालता सचिन चला गया वहाँ से .

वो बेतरह डर गयी , अगर सचिन ज्यादा से ज्यादा टूर पर नहीं होता तब शायद वो रिजाइन ही कर देती. अब किसी के करीब जाने या किसी को अपने करीब आने देने की हिम्मत नहीं बची थी उसमे. दो दो बार धोखा खा कर उसका दिल छलनी हो चुका था.

*** 

सिड तन्वी की बिल्डिंग में रहता था और उसके ही स्कूल में था . कब साथ खेलते पढ़ते उनके बीच प्रेम का अंकुर फूटा, अहसास भी नहीं हुआ. पर धीरे धीरे वो अंकुर एक पौधे का रूप ले चुका था और उसमे फूल खिल आये थे, जिसकी खुशबु पूरी बिल्डिंग में फ़ैल गयी थी . सबको पता चल गया था , बात तन्वी के माता-पिता तक भी पहुंची .लेकिन तन्वी की शादी को लेकर उसके माता- पिता ने बड़े बड़े ख्वाब बुन रखे . लम्बे बालों वाला, कलाई में ब्रेसलेट पहने ,हाथों पर टैटू बनवाये ,म्युज़िक को ही अपनी ज़िन्दगी समझने वाला सिड कहीं से भी उन सपनों पर खरा नहीं उतरता था .तन्वी ने हिम्मत दिखाई , ‘सिड के साथ भाग जाने को भी तैयार थी .पर सिड ने ही कदम खींच लिए .उलटा उसे समझाने लगा , ‘हम कहाँ रहेंगे ,कैसे घर चालायेंगे ,मेरे कैरियर  का क्या होगा?’ तन्वी ने कहा भी, ‘वो नौकरी कर लेगी, सिड आराम से अपना कैरियर बना सकता हैलेकिन सिड उलटा उसे समझाने लगा , “तुम कितना कमा लोगी कि हम अलग रह कर घर भी चला सकें और मैं अपने शौक भी पूरे कर सकूँ. एक गिटार की कीमत पता है?? और उसकी क्लासेज़ की फीस ?? मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है तन्वी...कितनी मिन्नतें करनी पड़ती हैं ,तब जाकर पापा पैसे देते हैं. अगर तुम्हारे पैरेंट्स नहीं मान रहे तो फिर हमें एक दुसरे को गुडबाय कह देना चाहिए

सिड की ये बातें सुनकर तन्वी ने फिर कुछ नहीं कहा, ‘उसे भीख में प्रेम नहीं चाहिए था ‘ .पर इस घटना ने पता नहीं उसके पैरेंट्स पर क्या असर डाला कि वे तन्वी की शादी के लिए जल्दबाजी मचाने लगे. चुपचाप रिश्तेदारों से मिलकर एक लड़का ढूंढा गया और मुम्बई से बहुत दूर वह इस शहर में ब्याह दी गयी. तन्वी के एतराज जताने पर माँ से सुनने को मिला, “पहले ही बहुत गुल खिला चुकी हो...इसके पहले कि हमारे मुहं पर कालिख पुते, अपना घर –बार संभालो “.

तन्वी को भी अपने पैरेंट्स पर बहुत गुस्सा आया और उसने भी सोच लिया..ठीक है वह ,अब अपना घर बार ही संभालेगी ,पलट कर उन्हें नहीं देखेगी उसने पूरे तन-मन से अपने पति को अपनाया . पर उसकी किस्मत ने यहाँ भी धोखा दिया. उसके पति को एक साथी नहीं एक केयर टेकर चाहिए थी. उनकी ज़िन्दगी शादी से पहले जैसी चल रही थी, उसमे शादी के बाद भी कोई बदलाव नहीं आया . वही ऑफिस के बाद दोस्तों के साथ समय बिताना . शनिवार की रात जमकर शराब पीना और फिर सारा सन्डे सो कर निकालना . अगर तन्वी कुछ कहती तो गालियाँ मिलतीं . एक बार तन्वी ने तेज आवाज़ में एतराज जताया तो पति ने हाथ भी उठा दिया . इसके बाद तन्वी सहम सी गयी , अपने माता-पिता से शिकायत की तो उन्होंने कहा , “वक़्त के साथ सब ठीक हो जाएगा थोड़ा बर्दाश्त करो पर वक़्त के साथ ठीक कुछ भी नहीं हुआ बल्कि पति और भी ढीठ हो गया . तन्वी के पति को खुद के एक छोटे शहर से होने का बहुत कॉम्प्लेक्स था .वे अक्सर तन्वी को बड़े शहर वाली , बॉम्बे वाली कहकर ताना दे जाते. फिर भी तन्वी इस शादी को कामयाब बनाने की कोशिश में जुटी रही. पर जब उसका मिसकैरेज हुआ और उसके बाद भी पति ने एक दिन भी छुट्टी नहीं ली, उसे हॉस्पिटल में छोड़ वैसे ही ऑफिस चला गया तब तन्वी बुरी तरह टूट गयी. उसे इस शादी से कोई उम्मीद नहीं बची.

दो तीन महीने तो वो डिप्रेशन में ही रही. फिर उसके बाद खुद को ही धीरे धीरे समेट कर ज़िन्दगी पटरी पर लाने की कोशिश करने लगी. रोज अखबार में नौकरी वाले कॉलम देखती,लाल निशान लगाती और बिना पति को बताये इंटरव्यू दे आती. पर कहीं उसे नौकरी पसंद नहीं आती कहीं क्वालिफिकेशन के अभाव में वो रिजेक्ट कर दी जाती. कहीं दोनों पसंद आते तो सैलरी इतनी कम होती कि इतना मर खप कर नौकरी करना उसे नहीं जमता. फिर उसे इस कंपनी में मनलायक नौकरी मिली.

पति से पूछा नहीं बस उन्हें बताया . सुनने को मिला, “हमारे खानदान की औरतें नौकरी नहीं करतीं

उसने पलट कर तुरंत ही कहा और हमारे खानदान के पुरुष शराब पीकर औरतों को नहीं पीटते
शायद नयी जॉब ने ही उसे इतना कहने की हिम्मत दे दी थी . पर पति का इगो बहुत हर्ट हुआ और वे रोज सुबह शाम ताने कस कर बदला लेने लगे , तैयार होते देख व्यंग्य करते ,”इतना सजा धजा किसके लिए जा रहा है ,बॉस  बहुत हैंडसम है क्या ?”
रोज देर से आने वाले पति अब जल्दी आने लगे थे . जिस दिन उसे देर हो जाती सुनने को मिलता, “ ऑफिस के बाद कॉफ़ी-शॉफी पीने चली गयी होंगी , नौकरी बचाए रखने को ये सब करना पड़ता है...रोज देखता हूँ मैं, यह सब  “

अपने होंठ सिल कर वो सारे काम किये जाती. अपने माँ-बाप के मन का हाल जानती थी . उन्हें अगर पता चल जाता कि उसके पति को उसका जॉब करना पसंद नहीं तो शायद जबरदस्ती छुड़वा देते. इसलिए बिना पति के किसी ताने  का जबाब दिए वह सारे काम करती और ज्यादा से ज्यादा उनसे दूर रहती. बस ऑफिस का काम ही उसके लिए जीने का सहारा था. उसने बहुत मन लगाकर काम सीखा. ऑफिस के पौलिटिक्स, गॉसिप से भी दूर रहती, मेहनत से काम करती. इस वजह से ऑफिस में उसकी बहुत इज्जत भी थी .

कभी कभी तलाक लेने के विषय में सोचती भी पर फिर खुद को ही समझा देती, “क्या फर्क पड़ जाएगा तलाक लेने से ,आज भी एक छत के नीचे अजनबी की तरह ही रह रहे हैं, आगे भी अजनबी ही रहेंगे पर एक दिन वो घर की चाबी ले जाना भूल गयी थी. ऑफिस में ऑडिट चल रहा था, उसे घर आने में देर हो गयी. कई बार घंटी बजायी पर उसके पति ने दरवाजा नहीं खोला. पूरी रात उसने सीढियों पर बैठ कर बिताई . और वहीँ बैठे बैठे एक निर्णय ले लिया. सुबह दूध वाले, पेपर वाले न देख लें इस डर से पति ने दरवाजा खोल दिया . वह अपने कमरे में जाकर सो गयी . उस दिन ऑफिस से छुट्टी ले ली. और सारा दिन घर ढूँढने में बिताया . शाम को सामान बाँधा पति के आने का इंतज़ार किया पति का रिएक्शन था ,“ हाँ ,ठीक है..जाइए जाइए..मैं भी डिवोर्स दे दूंगा..दूसरी शादी करूंगा

आप शौक से दूसरी तीसरी जीतनी मर्जी हो शादी कीजिये मुझे आपके डिवोर्स पेपर का इंतज़ार रहेगा “  कह वह बाहर निकल आयी.

उसके बाद से ही उसकी ज़िन्दगी एक शांत झील की तरह हो गयी है. सीमित दायरे में कैद...न उसमें कोई तरंग उठती है न किनारे  टूटने का कोई डर होता है. ऑफिस से आना देर रात किताबें पढना , गज़लें सुनना .इतना सुकून शायद उसकी ज़िन्दगी में कभी रहा भी नहीं. पर जब से सचिन ने ऑफिस ज्वाइन किया है वो लगातार इस शांत झील में कंकड़ फेंकता जा रहा  है. थोड़ी देर को तरंगें उठती हैं पर फिर झील की सतह वैसे ही शांत हो जाती है. पर अब झील के तल में इतने कंकड़ जमा हो गए थे कि उनकी चुभन , झील को तकलीफ दे रही थी .

***

सचिन भला लड़का था, तन्वी को उसका अटेंशन पाकर अच्छा लगता था.पर प्यार और शादी में दो बार धोखा खा चुकी तन्वी, सचिन को करीब आने देने से डर रही थी. उसे यह भी लगता, सचिन को उसके पास्ट के बारे में मालूम नहीं है, इसीलिए वह उसकी तरफ आकर्षित है. जैसे ही सचिन को सच्चाई पता चलेगी ,वह उस से खुद ब खुद दूर हो जाएगा ,इसीलिए वह सचिन से दूर दूर ही रहती पर सचिन के बार बार आते sms ने उसे उलझन में डाल दिया था. और उसने सचिन से मिलकर उसे सबकुछ साफ़ साफ़ बता देने का फैसला किया. उसे विश्वास था सचिन को उसके बारे में कुछ भी पता नहीं अगर वो अपना सारा पास्ट उसे बता देगी तो वो बात समझ जाएगा और फिर उस से दूर हो जाएगा . कुल जमा अपनी चौबीस साल की ज़िन्दगी में तन्वी ने इतना कुछ देख लिया था कि उसे अब अपनी ज़िन्दगी में और उथल-पुथल गवारा नहीं थे.

उसने सचिन को मैसेज किया , “कब वापस आ रहे हो टूर से ?”

वाsssऊ... कांट बीलीव, तुम पूछ रही हो...बस अभी एयरपोर्ट की तरफ निकलता हूँ , सुबह तक कोई न कोई फ्लाईट मिल ही जायेगी और फिर डेढ़ घंटे में आपके सामने हाज़िर
मजाक छोडो ..सच बताओ...तन्वी ने फिर से मैसेज किया .
आई शपथ...सच कह रहा हूँ
ठीक है मैं कल ऑफिस में पता कर लूंगी...
और इस बार सचिन ने मैसेज की जगह कॉल ही किया. थोड़ी देर फोन घूरती रही तन्वी फिर उठा कर जैसे ही हलोकहा, सचिन का चिंता भरा स्वर सुनायी दिया, “क्या बात है तन्वी...कुछ परेशानी है...मैं मजाक नहीं कर रहा ,सच में कल आ सकता हूँ “ 
दिल भर आया तन्वी का थोडा रुक कर बोली , कि कहीं आवाज़ का कम्पन पता न चल जाए . कोई परेशानी नहीं बाबा....बस ऐसे ही कुछ बात करनी है
आज तो मेरे सितारे खुल गए ...तुम्हे मुझसे बात करनी है ?? जो सामने देख कर भी मुहं घुमा लेती है आज उसे मुझसे बात करनी है...ओह!! सचमुच यकीन हुआ, खुदा है इस जहां में वरना मेरी दुआ कैसे क़ुबूल हो जाती...
अब ये डायलॉगबाज़ी बंद करो...तुम्हारे आने के बाद कॉफ़ी पर मिलते हैं..चलो गुडनाईट
अरे !! इतनी जल्दी क्या गुडनाईट...अभी तो बात की शुरुआत है..फिर मुलाक़ात होगी और फिर...
मैं सोने जा रही हूँ..गुडनाईट
मैं परसों आ रहा हूँ तन्वी...सीधा ऑफिस ही आउंगा उसके बाद मिलते हैं...गुडनाईट एन यू प्लीज़ टेक केयर...बाय इस बार सचिन का स्वर गंभीर था .
यू टू...बाय तन्वी ने फोन रख दिया पर अब आँखों में नींद कहाँ थी. पहली बार सचिन से इस  तरह खुलकर बात हुई थी और दोनों ही अपनेआप तुम पर आ गए थे . शायद उसके लगातार आते मैसेज ने आप वाली अजनबियत हटा दी थी .देर रात तक ताने बाने बुनती रही कि कैसे बात की शुरुआत करेगी क्या क्या बताएगी, सचिन का क्या रिएक्शन होगा.

सचिन दोपहर बाद ऑफिस में आया . बाल बिखरे हुए थे . चेहरे पर थोड़ी परेशानी की लकीरें दिख रही थीं अब वे सचमुच थीं या तन्वी की कल्पना कहना मुश्किल था. दूर से ही उसकी तरफ बड़ी गहरी नज़रों से देखते हुए बहुत ही अपनेपन से मुस्कुरा दिया .लेकिन उसकी डेस्क के पास नहीं आया ,शायद उसकी असहजता भांप रहा था . छः बजे के करीब उसके पास आकर धीरे से बोला, “कहीं इरादा बदल तो नहीं दिया ?”
उसने भी मुस्करा कर सर हिला कर कह दिया .
फिर कहाँ चले कॉफ़ी के लिए
वो बीन्स एंड बियोंड ‘ है न ..ऑफिस से ज्यादा दूर भी नहीं.
दूर के लिए कोई बात नहीं, कार लेकर आया हूँ...अब इतनी मुश्किल से मौक़ा मिला है ,जितनी देर का साथ मिल जाए ,घर भी  छोड़ दूंगा ..इसी बहाने घर भी देख लूंगा...फिर तो जब मन हुआ डोरबेल बजायी जा सकती है शरारत से मुस्कराया सचिन .
तन्वी ने त्योरियां चढ़ाईं तो हंस दिया  ,”मजाक था बाबा ..समझा करो .अब सब समेटो मैं बाहर इंतज़ार कर रहा हूँ .
सचिन के जाने के बाद तन्वी सोचती रह गयी, पहली बार ऐसे भरपूर नज़र डाली थी सचिन के चेहरे पर सचमुच दिलकश है मुस्कान उसकी..इसीलिए लडकियां मरी जाती हैं..फिर कंधे उचका दिए..उसे क्या , आज तो उसे सब बता देगी फिर सच जानकार सचिन खुद ही उस से सौ फीट की दूरी रखेगा

सचिन कार में वेट कर रहा था .जगजीत सिंह की नज़्म बज रही थी, “बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी...”तन्वी कहने वाली थी ,’मेरी फेवरेट नज़्म है यह ‘ फिर खुद को ही झिड़क दिया, “वह दोस्ती बढाने नहीं, ख़त्म करने आयी थी. फिर एक ठंढी सांस भी ली, “अब बात दूर तलक क्या जायेगी...हमेशा हमेशा के लिए ख़त्म हो जायेगी .सचिन ड्राइव करते हुए चुप सा था. शायद उसके भी मन में चल रहा था, क्या कहने वाली है वह रास्ते में बस ट्रैफिक मौसम की बाते होती रहीं. जब बीन्स एंड बियोंडनिकल गया तो तन्वी ने उसकी तरफ देखा .सचिन ने सड़क पर नज़रें जमाये हुए ही कहा, ‘यहाँ बहुत भीड़ होती है...आगे चलते हैं न सुकून से दो पल बैठेंगे

अच्छी जगह चुनी थी सचिन ने, बड़े बड़े आरामदायक चेयर्स थे . हलकी सी रौशनी थी और लोग भी बहुत ज्यादा नहीं. वो भी पैर फैलाकर रिलैक्स होकर बैठी थी . बस बात कैसे शुरू करे यही सोच रही थी . 
सचिन ने मेन्यु कार्ड पर नज़र घुमाते हुए पूछा , “क्या लोगी...
बस कॉफ़ी...
चिली टोस्ट ट्राई करो बड़ी अच्छी होती है यहाँ की" कहते उसने चिली टोस्ट और और कॉफ़ी ऑर्डर कर दिया था .तन्वी ने बात जारी रखने को कहा, ‘अक्सर आते हो यहाँ ?”
अब कहाँ वक़्त मिलता है..महीनों बाद आया हूँ, कॉलेज के दिनों में अक्सर आता था
गर्ल फ्रेंड्स के साथ ?” उसने छेड़ा
हाँ, गर्लफ्रेंड्स के साथ...जलन हो रही है ? “ सचिन ने भी हंस कर उसी सुर में जबाब दिया .
मुझे क्यूँ जलन होगी ? “,उसने तेजी से कहा .
हाँ, तुम्हे क्यूँ जलन होगी...ऐसा है ही क्या हमारे बीच सचिन कुछ गंभीर हो गया था .
तन्वी को सूझा नहीं क्या जबाब दे ..अच्छा हुआ उसी वक़्त कॉफ़ी आ गयी.
टोस्ट कुतरते कॉफ़ी के घूँट भरते दोनों ही चुप थे सचिन शायद इंतज़ार कर रहा था ,वो अपनी बात शुरू करे
आखिर तन्वी ने बात शुरू की , “सचिन तुम्हारे एस.एम.एस आते हैं..मैं रिप्लाई नहीं करती...मुझे अच्छा नहीं लगता
मुझे भी ये अच्छा नहीं लगता ...सचिन ने कप रखते हुए उसकी आँखों में सीधा देख मुस्कराते हुए कहा. 
वो थोड़ी असहज हो गयी लेकिन फिर संभाल लिया खुद को , “ देखो इसकी एक वजह है ...मैं सिंगल नहीं हूँ
ओह! आई सी...
नहीं मेरा मतलब सिंगल तो हूँ..पर वैसी सिंगल नहीं ...एक्चुअली आयम अ डीवोर्सी
सो ??”..सचिन ने कंधे उचका दिए
तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ता ???” उसे अचरज हुआ
क्या फर्क पड़ना चाहिए ...और ये बात मुझे पता है “ सचिन ने कंधे उचका दिए .
क्याsss ??..वो जैसे आसमान से गिरी . तुम्हे कैसे पता ??”
मैडम हमलोग इन्डियन हैं और हमारा फेवरेट टाईमपास है गॉसिप...याद नहीं पर किसी ने बहुत पहले ही बताया था
और तुम्हे लगा ये तो अवेलेबल है ,इसपर चांस मारा जा सकता है ?“ ये जानकार कि सचिन को ये बात पहले से पता है तन्वी को बहुत गुस्सा आ रहा था
व्हाssट ??..सचिन इतने जोर से चौंका कि थोड़ी कॉफ़ी उसके पैंट पर छलक ही गयी .
हाँ !! तुमने यही सोचा ये तो डीवोर्सी है...अकेली रहती है....इसके साथ टाईमपास किया जा सकता है ...रात बिरात मैसेज भेजा जा सकता है ऑफिस में उसके पीठ पीछे लोग उसकी बातें करते हैं ये जान उसे बहुत गुस्सा आ रहा था और वो इसका बदला सचिन से ले रही थी.
तन्वी..आयम सॉरी... आयम रियली रियली सॉरी...मैं तुम्हें कैसे यकीन दिलाऊं मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा...और मुझे भी नहीं पता तुम मुझे इतना अवॉयड करती थी फिर भी मुझे तुमसे बात करना ,अच्छा लगता था. पता नहीं तुम्हे देख कर क्यूँ लगता कि तुम एक शांत झील सी हो, एक सीमित दायरे में कैद जबकि तुम्हे एक चंचल नदी बनकर बहना चाहिए. मैसेज इसलिए भेजता कि कहीं भी कुछ अच्छा  देखता तो मुझे तुम्हारा ख्याल आ जाता. मन होता ,वो जगह तुम्हारे साथ देखूं, बस इतनी सी बात है तन्वी और कुछ नहीं
यही होता है... डीवोर्सी के साथ अवेलेबल का टैग अपने आप लग जाता है....इसीलिए मैं सबसे इतनी दूरी बना कर रखती हूँ और देखो तुम्हें भी मालूम था फिर भी तुम मेरे करीब आने की कोशिश करते रहे, मुझसे दोस्ती बढाते रहे तन्वी की आँखें छलछला आयीं .
सचिन कुछ कहने जा रहा था पर उसकी भीगी आँखें देख चुप हो गया , कुर्सी से पीठ टिका दी ...एक गहरी सांस ली...फिर पूछा , “तो तुम क्या चाहती हो...मैं तुमसे दूर रहूँ ??”
हाँ ..आँखों में जलते हुए आंसू लिए हुए जैसे बच्चों की तरह एक जिद से कहा .
ठीक है डन.... अब नो मैसेजेस...नो बातचीत.. दूर रहूँगा, तुमसे ..इतनी बड़ी बात कह दी...बहुत हर्ट किया है मुझे...ऐसा कैसे सोच लिया तुमने...सचिन ने हैरानी से सर हिलाया
क्यूंकि यही सच है ...वो कड़वी होती जा रही थी .
फिर सचिन ने वेटर के बिल लाने का भी इंतज़ार नहीं किया काउंटर पर जाकर बिल चुकाया . वो भी साथ ही उठ आयी.
 बाहर निकल कर तन्वी ने कहा ,”मैं ऑटो ले लूंगी..
ओके.. कहता सचिन आगे बढ़ कर ऑटो रोकने लगा . ऑटो में बैठते हुए , सचिन की तरफ देखने की हिम्मत नहीं हुई तन्वी की ..बाय भी नहीं कहा...उसकी आँखें तो गंगा जमुना बनी हुई थीं.
घर आकर भी देर तक रोती रही . पर समझ नहीं पा रही थी ,वो तो सचिन को खुद से दूर रहने के लिए कहने गयी थी. सचिन ने उसकी बात मान भी ली ,फिर भी क्यूँ उसके आंसू यूँ उमड़े चले आ रहे थे .
***

सचिन ने अपना वायदा निभाया भी. उसकी तरफ कभी देखता भी नहीं , ऑफिस में भी थोडा बुझा बुझा सा रहता, लोगो ने भी नोटिस किया तो उसने टाल दिया..अरे, इतना टूर रहता है,यार ...आज यहाँ, कल वहाँ थक जाता हूँ पर अब तन्वी की नज़रें हर वक़्त सचिन पर रहतीं. वो कब टूर पर जा रहा है, कब वापस आ रहा है, सारी  खबर रहती उसे. मोबाइल कंपनी वालों का भी कोई मेसेज आता तो चौंक जाती , और फिर सचिन के पुराने मैसेज कई कई बार पढ़ती. अपने उस दिन के व्यवहार का गिल्ट उसके मन में घर कर गया था . वो सचिन को कुछ और कहना चाहती थी पर कुछ और ही कह गयी. उसने सारा दोष सचिन पर डाल दिया ,जबकि इतना वो भी जानती थी ,सचिन के मन में ऐसा ख्याल नहीं रहा होगा. पर तन्वी को समझ नहीं आ रहा था, यह जानते हुए भी कि वह एक डीवोर्सी है सचिन उस से प्यार कैसे कर सकता है? जबकि वो हैंडसम है, काबिल है, उसे कितनी ही सिंगल लडकियां मिल जायेंगी. फिर ये भी सोचती ,अगर सचिन सचमुच सिर्फ उसके साथ टाइम पास करना चाहता था तो फिर उसके बात करने से मना करने पर इतना उदास क्यूँ रहने लगा है?और तन्वी ने सोचा, उस से मिलकर ,अपने उस दिन के व्यवहार के लिए माफ़ी तो मांग ही लेनी चाहिए. उसे अपनी बीती ज़िंदगी की सारी बातें बता देगी कि क्यूँ वह इतनी कड़वी हो गयी थी.
और उसने सचिन को मैसेज कर दिया..क्या बहुत नाराज़ हो ?“
मैं तुमसे कभी नाराज़ नहीं हो सकता...इस जनम में तो नहीं सचिन का जबाब पढ़ फिर से उसकी आँखें भर आयीं .
कल, चलें कॉफ़ी पीने ?“
ठीक है एक स्माइली के साथ सचिन का सादा सा जबाब आया ,फिर से कोई मजाक कर के वो रिस्क नहीं लेना चाहता था .

ऑफिस के बाद सचिन उस दिन की तरह ही कार में उसका वेट कर रहा था . पर आज गाड़ी में कोई ग़ज़ल या गाना नहीं बज रहा था हलके से मुस्कुरा कर उसने उसके लिए दरवाजा खोल दिया .
बैठते ही तन्वी ने कहा.. सॉरी मुझे वो सब नहीं कहना चाहिए था...मैं कुछ ज्यादा ही बोल गयी ..
कोई बात नहीं...मैं समझता हूँ ..
सचिन मुझे तुमसे ढेर सारी बातें करनी है...
बोलो..आयम ऑल इयर्स जरा सा मुस्कुरा कर उसकी तरफ देख फिर नज़रें सड़क पर जमा दीं.
छोडो कहीं नहीं जाते हैं ...लॉन्ग ड्राइव पर चलो..यहीं प्राइवेसी है ..मैं सब बताती हूँ
ठीक है..”..इतना बोलने वाले सचिन के दो दो शब्द के जबाब तन्वी को बड़े अजीब लग रहे थे पर वो समझ रही थी..वो बहुत हर्ट है और अब कुछ भी बोलकर मुसीबत में नहीं पड़ना चाहता .

वो चुन चुन कर सुनसान रास्ते पर धीरे धीरे गाड़ी घुमाता रहा और तन्वी परत दर परत अपनी ज़िन्दगी के गुजरे लम्हे उसके सामने खोलती गयी . सचिन ध्यान से सुन रहा था जब कभी उसकी तकलीफ से बहुत आहत होकर उसकी तरफ देखता तो तन्वी सामने नज़रें टिका देती. पति से अलग होकर अकेले रहने की बात तक पहुँचते पहुँचते तन्वी की आवाज़ आंसुओं में डूब चुकी थी . सचिन ने एक किनारे गाड़ी लगाकर, तन्वी का सर अपने कंधे से टिका लिया. आंसुओं से चिपके उसके बाल समेट कर पीछे कर दिए और उसका सर सहलाते हुए बस इतना कहा, “भरोसा कर सकती हो तो इतना भरोसा करो मुझपर, अब इसके बाद एक आंसू नहीं आने दूंगा तुम्हारी आँखों में ..बहुत झेल लिया तुमने, अब और नहीं, मेरे होते अब और नहीं ..तन्वी थोड़ी और पास सिमट आयी , आज तक सब कुछ उसने अकेले झेला था ,सारी लड़ाई अकेले लड़ी थी ,अब तक कोई उसकी तकलीफ को यूँ अपनी तकलीफ समझ दुखी नहीं हुआ था. और तन्वी ने अपनी आँखें मूँद लीं . सब कुछ कह कर उसका मन हल्का हो गया था .साड़ी कडवाहट आंसुओं में धुल चुकी थी और अब उसका मन बीते दिनों के गहरे अँधेरे से निकल कर ,इस निश्छल प्रेम की नर्म रौशनी के स्वागत के लिए तैयार था .

(समाप्त )

26 टिप्‍पणियां:

  1. कहीं करता होगा वो मेरा इंतजार जिसकी तमन्‍ना में फिरती हूँ बेकरार.......

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  2. गज़ब,,,,,,ये देख तुम हो...विस्वास बना है मेरा... :) हा हा!

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  3. हलकी फुलकी कम झटके देती हुई सुखांत कहानी विश्वास दिलाती है कि दुनिया में प्रेम बचा है अभी ...:)

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  4. बहुत ही नर्म, नाज़ुक, दिलकश सी कहानी ! इतनी आत्मीय कि मुझे पूरा विश्वास है कई लोग स्वयं को तन्वी और सिड से रिलेट कर सकेंगे ! बधाई रश्मि जी !

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  5. अंत तक आते आते कहानी अपेक्षित मोड पर पहुंच गयी, बहुत सुंदर.

    रामराम.

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  6. कुछ हमारे ही परिवेश से जुड़ा सा ..... अच्छी लगी कहानी

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  7. एक सरल प्रवाहशील नदी सी प्रेम कहानी...

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  8. बहुत संवेदना युक्त कहानी । पढ़कर अच्छा लगा । शायद तन्वी को अब घुट घुट कर नहीं जिन पढ़ेगा ।

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  9. kahani bahut achchhi lagi vaise ham jo likhen vo sukhant hi ho to achchha lagata hai padhane men bhi aur likhane men bhi.

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  10. संवेदनशील ... झोंके की तरह भाहती हुई ... सुखान्त कहानी ...
    अच्छी कहानी ...

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  11. आपकी यह रचना कल मंगलवार (09-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  12. न न करते हुए भी यह लम्बी कहानी शुरू कर दी तो बिना पूरी पढ़े छोड़ न सका !
    बधाई !!

    धोखे की इस दुनियां में ,
    कुछ प्यारे बन्दे रहते हैं !
    ऊपर से साधारण लगते
    कुछ दिलवाले रहते हैं !
    दोनों हाथ सहारा देते, जब भी ज़ख़्मी, देखे गीत !
    अगर न ऐसे कंधे मिलते,कहाँ सिसकते मेरे गीत !

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    1. शुक्रिया सतीश जी ,आपके न न करने पर भी कहानी ने अपने को जबरन पढ़वा लिया :)

      और आपको ये लम्बी कहानी लगी न जबकि मेरे कुछ दोस्त तो मेरी और कहानियों के सामने इसे लघु कथा कहते हैं :)

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  13. बहुत सुन्दर और संवेदनशील कहानी...अंतस को छू गयी..

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  14. तन्वी की जैसी पहले की ज़िन्दगी थी, वैसा वैवाहिक अभिशाप तमाम तन्वियां झेल रही हैं, लेकिन उनमें विरोध का साहस नहीं होता. काश! वास्तविकता में ये तन्वियां अपना विरोध दर्ज़ करा सकें! अपनी शर्तों पर जी सकें...
    एक कथाकार का दायित्व होता है कि वो वास्तविकता को ज्यों का त्यों तो उकेरे, लेकिन वास्तविक जीवन की तरह उसे मझधार में न छोड़ दे. तुम्हारी ये कहानी हमारे देश की तमाम तन्वियों को बहुत सकारात्मक संदेश दे रही है. पता नहीं कितनों के मनों में एक बार फ़िर जीवन को फिर से जीने की लालसा जाग उठे.
    बहुत सुन्दर कहानी है रश्मि. बधाई.

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  15. रश्मि हमेशा की तरह बांधकर रखने वाला तुम्हारा यह हुनर ...इस कहानी में भी खूब उभरकर सामने आया ..और उसपर नीलेश मिश्रा की आवाज़ का जादू ......एक पूरी ज़िन्दगी जैसे आँखों के सामने से गुज़र गयी ...वाह मज़ा आ गया ...

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  16. bahut hi behtareen kahani..aapki kahaniyan padhne ke baad man mein ek naya bhav aa hi jata hai...is kahani ne man ko bheetar tak choo liya..pata nahi sachin jaise log real life mein hote hain ya nahi..par padhkar bahut accha laga..ek khushi mahsus hui..niles mishra ji ne shayad acchhi tarah kaha hoga..par kahani aapki ho to khud padhna aur har drishya ko mahsus karna accha lagta hai..

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  17. बहुत ही सुन्दर... पढने का धैर्य तो नहीं था, पर सुनकर तो आनद ही आ गया.

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  18. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन बुलेटिन में लिंक्स हों - ज़रूरी तो नहीं (5) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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