शनिवार, 29 दिसंबर 2012

बस ये आक्रोश....ये संवेदनशीलता जाया न होने पाए

हमारा देश आक्रोश, अविश्वास, बेबसी   की आंच से सुलग  रहा है। व्यवस्था के प्रति ये क्रोध हर तबके के लोगों में है पर युवाओं में ज्यादा मुखर है। सही भी है,  देश की पतवार उनके हाथों में हैं शायद उनके हाथ ही सही दिशा में ले जाएँ। 

आज निर्भया हम सबसे दूर चली गयी है पर हमारे  ह्रदय में उसने हमेशा के लिए साहस, प्रेरणा की लौ जला  दी है, जो कभी बुझने वाली नहीं।निर्भया ने जिस हिम्मत से उन छः  नर-पिशाचों का सामना किया , भले ही उसके शरीर के चिथड़े कर दिए गए पर उसने आत्मसमर्पण नहीं किया . उसके इसी साहस ने सबकी आत्मा को झिंझोड़ दिया है। ज़रा सी बात पर हम लोग निराश हो जाते हैं, हिम्मत हार जाते हैं और यहाँ एक लड़की, अपने शरीर पर भीषण अत्याचार सहती रही पर हार नहीं मानी,अंत तक लडती रही। 
हर युवा की संवेदनशीलता को इस घटना ने गहरे तक छुआ  है।

आज इस काले शनिवार के दिन ही दो संवेदनशील युवाओं की प्रतिक्रियायें मिली एक तो मेरी पिछली पोस्ट पर  summary  (इनका नाम  नहीं पता, ब्लॉग आइ डी यही है ) की प्रतिक्रिया जो आक्रोश से भरी हुई है।
summary के शब्द हम सबके मन की भावनाएं व्यक्त करते हैं।

चलो , न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी .....कम से कम हमारी इटैलियन मेम (सोनिया गांधी ) तो यही सोच रही होंगी . मैडम शीला दिक्षित बहुत हिम्मत वाली महिला हैं . मिलने नहीं गयीं लड़की से पर आज सुबह उनकी फोटो  अखबार में कैंडल जलाते हुए . इस वर्ष कई मंत्रियों ने अपने बोल्ड विचार व्यक्त किये विभिन्न विषयों पे। पिछले  2 हफ़्तों में कई बुद्धिजीवियों ने स्त्रियों के मानक बताये .
क्या करना चाहिए , क्या नहीं ... बाहर जाना चाहिए तो कैसे .. कपडे पहनने चाहिए तो कैसे ... कुछ ने कहा ... लड्कियूं को फिल्म नहीं देखनी चाहिए ... जीन्स पहनने से वे लड़कों को उकसाती हैं .
रात 6 बजे के बाद घर से बहार नहीं निकलना चाहिए ... 1 महिला वैज्ञानिक ने तो यहाँ तक बोला कि  'दामिनी'/निर्भया ' ने उन लोगों को उकसाया . वो रात को 10 बजे पिक्चर देखने क्यूँ निकली ?
अच्छी बात है ... तो फिर ये लोक्तंत्र का बाजा क्यूँ ? चुनाव क्यूँ ? खाड़ी देशों के तरह .. महिलायों को घर में बिठा कर रखो ... 5 क्लास के बाद नज़रबंद कर दो ... जो मार काट के गद्दी पे बैठ जाये वो PM . क्यूँ कल्पना चावला सुनीता विल्लिअम्स का example देते हो ...वे दोनों यहाँ से निकल गयीं तो कुछ कर दिखाया ..वर्ना यहाँ ..double standard politics mentality का शिकार बन चुकी होतीं ....क्यूँ कहते हो ..उन्हें भारत की मूल नागरिक ? इस हिसाब से तो उन्होंने भारत की नाक कटा दी .. जीन्स पहन के ......अमेरिकी क्यूँ लड़कियों को j जींस पहने देख उत्तेजित नहीं होते ..वे नामर्द हैं क्या ? सारे मर्द यहाँ भारत वर्ष में पैदा हुए ... दु:शाशन से लेकर गोपाल कांडा तक ......
we don't want insensible , incapable and careless government . Its pity that when whole nation was expecting some quick , strict action from gov that time gov acted as a silent spectator without having any strategy to deal with the situation. RIP my little sister. we are sorry .

एक संवेदनशील युवा लड़के ने बहुत व्यथित होकर एक कहानी सा लिखा है। 
कहानी अंग्रेजी में है,जिसका हिंदी अनुवाद यहाँ है 
" एक सफ़ेद रंग की कार 'भारत माता चौक' के पास एक मिनट के लिए रुकी . फिर तुरंत आँखों से ओझल हो गयी। कार  से एक मैले-कुचैले चादर में लिपटी एक आकृति सड़क के किनारे धकेल दी गयी थी। उसकी मैली चादर पर नज़र पड़ते ही उसे रास्ते में रहने वाली भिखारिन समझ लोग आगे बढ़ जाते।
एक कीमती साडी में एक औरत अपने बच्चे को गोद में लिए उसके पास से गुजर रही थी। उस आकृति ने उस औरत की साडी पकड़ कर खींचना चाहा  . उस औरत  ने उसे जोर से झिड़क दिया और आगे बढ़ गयी। सौ के करीब लोग उसके पास से गुजरे, उसमे से दस लोगो ने उसकी तरफ देखा भी पर किसी ने नोटिस नहीं लिया।

सड़क के पार से एक जोड़ी मूक आँखें उस आकृति को घूर रही थीं। 'यह कुछ अलग सा क्या है ? " उन मूक आँखों में ये भाव कौंधे , तब तक वो आकृति कितने ही लोगो के पैर , उनकी पेंट  के पायंचे, साडी का किनारा खींच  कर अपनी तरफ उनका ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश कर रही थी। पर लोग उसका हाथ झटक कर आगे बढ़ जाते। एक जोड़ी मूक आँखें उसे घूरती रहीं, फिर धीरे से उसके कान खड़े  हो गए और वह अपनी दुम  हिलाता उठ खड़ा हुआ।उस चादर में लिपटी आकृति की तरफ देख कर भौंकने लगा। फिर भी किसी ने ध्यान नहीं दिया। अब वह अपने छोटे छोटे पैरों से  सड़क को पार कर उस आकृति के पास जाकर भौंकने लगा . हर गुजरते कदमों के साथ उसके भौंकने की आवाज़ बढती जा रही थी। उसकी आवाज़ से कुछ लोगों ने डर  कर अपने कदमों की गति तेज कर दी पर भौंकने की वजह पर ध्यान नहीं दिया। 
अब वह कुत्ता सड़क पर आगे-पीछे भागते हुए भौंकने लगा। कुछ लोगो ने उसे छोटे छोटे पत्थर और पानी की बोतल फेंक कर मारा । उसने एक आदमी का पैंट पकड़ कर खींचा तो उस आदमी ने बगल से एक लाठी उठा कर उसे दे मारा। पर वह कुत्ता फिर भी नहीं हटा, उस आकृति के पास जाकर भौंकने लगा। उस आकृति की पनीली आँखें उस कुत्ते के आँखों से मिलीं और उसका भौंकना पंचम सुर तक पहुँच गया . अब वह हर आने-जाने वाले के कपडे पकड़ कर खींचने लगा। एक छोटी सी भीड़ उस कुत्ते के पास जमा हो गयी और लोग उस कुत्ते को पागल समझ कर उसके  ऊपर पत्थर फेंकने और उसे  लाठी से मारने लगे। फिर भी लोगो का ध्यान उस मैली कुचैली आकृति पर नहीं गया जिसके लिए वह कुत्ता भौंक रहा था .
कुत्ते को पागल समझकर दो भिखारी जैसे लोग उस सड़क की दूसरी तरफ जाने  लगे और उस आकृति को भी अपने साथ चलने के लिए उसकी चादर पकड़ कर खींचा । चादर खींचते ही वह आकृति लुढ़क पड़ी ,लोगो ने देखा वह एक लड़की थी,जिसके  कपडे फटे हुए थे और वह खून से लथपथ थी।
 भीड़ में से किसी ने नंबर डायल किया 101 और पता बताया ,'भारत माता चौक ' 
थोड़ी ही देर में पुलिस वैन आकर लड़की को ले गयी .लड़की ने दो दिन बाद अस्पताल में दम तोड़ दिया। लगातार भौंकने की वजह से पत्थर और लाठियां खा कर कुत्ता पहले ही मर  चुका  था।
 पुलिस को इतनी तत्परता से लड़की को अस्पताल पहुंचाने के लिए राज्य की तरफ से पुरस्कृत किया गया।

18 टिप्‍पणियां:

  1. ये कोई आज का उबाल नहीं है रश्मी जी ...ये कई दिन से दिल में था इसलिए इस घटना के बाद सड़क पर आ गया..इंडिया गेट पर जमा लगभग हर लड़की अपने दर्द के साथ थी..वहां कोई नहीं जानता था कि आगे कहां जाना है..इसी समाज का एक अंग थो जो डेढ़ घंटे तक ठंड में पड़ी लड़की की मदद को आगे नहीं आया था....पुलिस का एक अंग ही था जो लोगो से मदद के लिए कहता रहा पर कोई न आया तुरंत...पुलिस का ही एक अंग था जिसने काले शीशे वाली बस को हर बार जाने दिया.....प्रशासन में काम करने वाले लोग औऱतें सड़क पर थे..पर यही वो लोग भी थे जो चार बार से ज्यादा बार जब्त हो चुकी इस बस का परमिट रद्द नहीं कर सकी थी..यही शीला दीक्षित हैं जो कहती हैं कि पुलिस उनके हाथ में नही है इसलिए वो बेबस हैं..यही शीला दीक्षित हैं जिनके हाथ में दिल्ली ट्रासंपोर्ट है जिसे उस बस का परमिट रद्द करना था....मुश्किल ये है कि यही समाज जो बेबस है पर आगे आने को तैयार नहीं होता जल्दी..। आजकल ऐसे ही एक आंदलोन से जुड़ा हुआ हूं....उसपर पोस्ट लिखनी थी पर दामिनी की मौत ने थोड़ा सा विचलित कर रखा है।

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  2. समरी का आक्रोश और सड़क की हकीकत दोनो याद रहे तो वाकई कुछ भला हो..

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  3. हमारी याददाश्त बहुत कमज़ोर है.. ऐसा मानना है उन सभी शासकों का.. क्योंकि उन्होंने देखा है हमारे आक्रोश को चार-पाँच दिनों में दम तोडते... उन्हें पता है कि जिसे वे हर पाँच साल पर बेवक़ूफ़ बनाते आये हैं, ऐसी भेड़-बकरियों के मिमियाने से क्या डरना.. ज़रूरत है उस मिमियाने को न दबने देना, ताकि ये मिमियाना दहाड़ बने और उन सोये हुए 'मुहाफिजों' की नींद उड़ा दे!!जीते जी न सही, उसकी आत्मा को तो इन्साफ दिला सकें!!

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  4. आकांक्षा है कि समरी का आक्रोश या कहानी में चित्रित आज की परिस्थ्तिओं का निरूपण या सड़क पर दिख रहा गुस्सा, सामाज की सोयी हुई संवेदनाओं को जाग्रत कर सके और शायद लाखों पीड़ित को न्याय दिला कर एक निर्भय वातावरण बना सके जिसमे ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति का कोई स्थान न हो.

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  5. अपने स्वार्थ में डूबा इन्सान बहुत संवेदनहीन हो चुका है।
    वर्तमान परिस्थितियों पर गंभीरता से पुनर्विचार की आवश्यकता है।

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  6. उफ़ ये कहानी नहीं भारत के गली-गली की हकीकत है..

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  7. बस इस गुस्से को अंदर ही अंदर रखना होगा ... भूलना न ऐसी वादाताओं को ...
    समय पे आक्रोश जरूर निलाना चाहिए ...

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  8. पुलिस को इतनी तत्परता से लड़की को अस्पताल पहुंचाने के लिए राज्य की तरफ से पुरस्कृत किया गया। ye tatparta agar wo thori pahle deekha pata...:(

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  9. श्रद्धांजलि. इस बहादुर बच्ची का जाना पता नहीं कितने कठोर दिलों को भी रुला गया होगा. पता नहीं कितनों का पौरुष शर्मिंदा हुआ होगा.... हो सकता है, कि अब उन दरिंदों को फांसी की सजा हो जाये. लेकिन रश्मि, अब अगर उन्हें मौत की सजा मिलती है, तो ये उन पर हत्या के आरोप के बाद मिलेगी, इस बर्बर बलात्कार के लिये नहीं. संविधान में इस अपराध के लिये कोई संशोधन नहीं किया गया है, न ही इस पर कोई प्रस्ताव संसद तक आया है. ऐसी घटनाएं लगातार हो रही थीं, हो रही हैं,होती रहेंगीं. तब तक जब तक कि जनता इन अपराधियों का फ़ैसला खुद न करने लगे.. बीच चौराहे पर जिस दिन किसी एक बलात्कारी को भीड़ पत्थरों से पीट-पीट कर मार डालेगी, उस दिन के बाद से देखना, ऐसे अपराधों में कमी आने लगेगी. ज़रूरत है, एक ऐसी शपथ की, जो इन कांडों को रोकने की दिशा में कुछ सार्थक कर सके.

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    1. >> हो सकता है, कि अब उन दरिंदों को फांसी की सजा हो जाये. लेकिन रश्मि, अब अगर उन्हें मौत की सजा मिलती है, तो ये उन पर हत्या के आरोप के बाद मिलेगी, इस बर्बर बलात्कार के लिये नहीं
      Oh! that means if tomorrow few people come and gangrape me , and if i survive ( unfortunately) then by no chance they can be hanged . One has to die to make culprit die.( sorry ! one has to die to accuse culprit under IPC 302 ..To be hanged or not to be hanged will be decided later).

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  10. समरी की बातें बिल्कुल सही हैं।हालाँकि महिलाओं के एक बड़े वर्ग के लिए तो अभी भी हमारे देश के हालात खाड़ी देशों की तरह ही बदतर है।पर फिर भी कुछ अच्छा सीखने को मिले तो खाड़ी देशों से भी सीखा जाना चाहिए।वहाँ बलात्करियों की गर्दन भी उड़ा दी जाती हैं।कम से कम इस मामले में यहाँ कोई ढिलाई नहीं बरती जाती।इस दुखद प्रकरण ने कुछ हद तक लोगों की संवेदनाओं और गुस्से को जगाया है।एक प्रदर्शनकारी जिसकी एक टाँग पर पुलिस ने कई लाठियाँ बरसाई थी,जब पत्रकार उससे उसके दर्द का हाल जान रहे थे तो वह कह रहा था कि अभी जिस दर्द का सामना अस्पताल में पडी मेरी वो बेटी कर रही है उसके सामने मेरा ये दर्द तो कुछ भी नहीं।लेकिन इस सबका एक दूसरा पहलू भी है।कहीं न कहीं ये माहौल बन रहा है मानो ये कोई कानून व्यवस्था का ही मसला है और सारी गलती बस सरकार और पुलिस की ही है जबकि ये एक सामाजिक समस्या ज्यादा है।

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  11. मार्मिक !
    सिर्फ पुलिस , कानून को ही कब तक दोष दिया जाए , समाज , जो हमने -आपने-हम सबने बनाया है , उसकी भी उतनी ही भागीदारी है इसमें ! मगर अब जो एक हलचल हुई है , उम्मीद बंधती है !

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  12. ye kahaani aapke bete kinjalk ne likhi hai na?aapke fb ke shared link se padha tha uske blog par....
    aur baaki baaton par to kya kahun :(

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  13. @ Rajan
    well , Rajan .. in a way . yes .It is a social issue but the whole issue is created by government /police/law ( whatever one can term it ) . just think .. how it became a social issue today .... ?
    I meet people who have been into different countries .. like UAE /South africa ... thay all say that India is liberal country .. There are countries where there is no public transport (like South Africa) , no good universities , highly expensive education .... unlike to india .... I agree with that . But I would say that absence of Law doesn't mean liberalization. Here one can do absolutely what one wants ....be it smoking / spitting on road / throw garbage on road .. one can eat on streets by directly buying from hawker .... one can catch any bus of public transport by easily available bus passes/tickets.... one can buy cigarettes / alcohol without having permits/ID cards ....one can put up small mobile shop on road side .... no permission required for that ... ( just give 10-20 rs to traffic / constable of that area ).
    Now people have no fear of laws ....in most of cases there is NO law at all. No wonder if some people of society use girls going on roads to treat as public property ....to quench their sexual thirst. IPC still needs to add / modify the laws. Did any of the government work on that ? In this case of 'Nirbhaya' as Vandana ma'm said police has to use IPC 302 to hang them ( if police really want to )... because there is no law where this case be fitted .
    So it's perfect to say it's govenment's /Law 's issue . Society needs to be created ....else we all are one of the animals on this planet !

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  14. पुलिस को क्या दोष दिया जाए , गलती तो उन लोगों की जो इतने संवेदनहीन थे कि एक नजर उसकी तरफ देख भी न सके |

    सादर

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