गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

पश्चिमी देशों के अभिभावकों को 'टाइगर मॉम' की सीख


आजकल एक किताब बहुत चर्चा  में है...Amy Chua  की  लिखी  'Battle Hymn of The Tiger Mom',  'एमी चुआ' अमेरिका में  Yale Law School, में  law professor हैं. वे चीनी हैं पर उनका पालन-पोषण अमेरिका में ही हुआ है और उन्होंने एक अमेरिकन से शादी की है. इस पुस्तक में  'एमी चुआ'  ने अपनी दोनों बेटियों का  किस तरह कड़े अनुशान के तहत पालन-पोषण किया है...इसका पूरा वर्णन  है. वे सख्त अनुशासन को ही सही मानती हैं. और उनका मानना है कि पश्चिमी देशो में बच्चों को पालने का तरीका सही नहीं है. और यही वजह है कि भारत..चीन के बच्चे ज्यादा मेधावी होते हैं और अपनी लगन और अभिभावकों के मार्गदर्शन से किसी भी क्षेत्र में ऊँची पायदान पर पहुँचने का माद्दा रखते हैं.

'एमी चुआ' ने विस्तार से चीन और पश्चिमी देशो के बच्चों के पालन-पोषण के तरीके की तुलना की है. और चीन के तरीके को ज्यादा बेहतर  बताया है....

उनका कहना है कि उन्होंने अपनी बेटियों सोफिया और लुइज़ा के 
लिए कुछ नियम बनाए थे 

दोस्तों के घर पर रात में नहीं रुकना है
स्कूल में नाटकों में भाग नहीं लेना है
नाटक में भाग नहीं लेने देने के लिए शिकायत नहीं करनी है. 
टी.वी. नहीं देखना है...कंप्यूटर गेम्स नहीं खेलने हैं.
खुद से अपने लिए कोई एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज़ का नहीं चुनाव नहीं करना है (अभिभावक ही ये निश्चित करेंगे)
A ग्रेड से कम बिलकुल नहीं आना चाहिए.
पियानो या वायलिन छोड़कर दूसरा म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट नहीं बजाना है

उनका कहना है कि पश्चिमी देशों के अभिभावक अगर बहुत सख्त हुए तो अपने बच्चों को आधा या एक घंटा रोज, प्रैक्टिस  करने के लिए कहेंगे लेकिन चीनी अभिभावक तीन घंटे से कम में बिलकुल नहीं मानेंगे. 
पश्चिमी देशों के लोग..बच्चों पर अच्छे नंबर के लिए दबाव नहीं डालते परन्तु चीनी अभिभावक के बच्चे अगर अच्छे नंबर नहीं लाए तो उन्हें बहुत डांट पड़ती है और इसका सारा दोष अभिभावकों को दिया  जाता है कि उन्होंने ध्यान नहीं दिया.

चीनी अभिभावकों का मानना है कि जबतक किसी भी विधा में पारंगत ना हो  जाएँ  उसे करने में मजा नहीं आता. और बच्चे कभी भी अपने मन से अभ्यास करने के लिए नहीं मानते. माता-पिता को ही जोर डालना पड़ता है. शुरुआत में हर बच्चा विरोध करता है और पश्चिमी देश के अभिभावक उनका विरोध मान लेते हैं और उनपर जोर नहीं डालते जबकि चीनी अभिभावक उन पर बार-बार अभ्यास करने के लिए जोर डालते हैं. और जब बच्चा गणित..पियानो..बैले में अच्छा करने लगता है तो उसे तारीफ़ मिलती है जिस से उसे संतोष मिलता है, उसका आत्मविश्वास बढ़ता है  और फिर उसे उस काम में मजा आने लगता है. 

चीनी अभिभावक अपने बच्चों को गुस्से में कुछ भी कह देते हैं..जबकि पश्चिमी देश के लोग बच्चों को कुछ कहने से पहले ये ख्याल रखते हैं कि उनके आत्मसम्मान को कोई चोट ना लगे. 
एमी ने अपने बचपन की घटना लिखी है कि उनके पिता ने माँ के साथ बहस करने पर एमी को 'कूड़ा-करकट' कहा. पर इस से एमी के दिल को कोई चोट नहीं लगी बल्कि उन्हें अहसास हुआ कि उन्होंने गलत किया है.
और एक बार अपनी बेटियों  को भी उन्हीने गुस्से में 'कूड़ा-करकट' कह दिया...बेटी पर भी इसका विपरीत असर नहीं हुआ.

 एमी  चुआ ने अपनी छोटी बेटी के विषय में लिखा है कि लुइज़ा पियानो पर एक धुन सही  तरीके से नहीं बजा पा रही थी. और उसने छोड़ दिया..एमी ने उसे जबरदस्ती बजाने के लिए कहा...लुइज़ा का रोना-धोना..रूठना-मचलना...गुस्सा करना कुछ नहीं सुना..उसका डॉल  हाउस फेंकने की धमकी दी...और आखिर में उसका खाना-पीना..बाथरूम जाना भी बंद कर दिया....कुछ घंटो के बाद लुइज़ा ने वो धुन बिलकुल सही तरीके से बजायी...और सब कुछ भूल कर खुश हो कर चिल्लाई..."मॉम कितना आसान था यह "  और जब उसने स्कूल के स्टेज पर वह धुन बजायी  तो उसे पुरस्कार भी मिला..सबने तारीफ़ भी की और आश्चर्य किया की इतनी छोटी लड़की ने इतनी अच्छी धुन कैसे बजायी. एमी चुआ का कहना है कि पैरेंट्स बच्चों पर जबरदस्ती नहीं करके उनका ही अहित करते हैं.

पुस्तक में तमाम ऐसी बातें हैं...जो हम अपने देश में हम देखते सुनते आए हैं...पर अब हम सब भी इन्हें गलत  मानते हैं...बच्चों की इच्छा..उनकी आज़ादी को ही सर्वोपरि  मानते हैं..और उनपर सख्ती के खिलाफ है. पर एक सच यह भी है कि हमारे यहाँ भी नृत्य-संगीत-पढाई में जिन्होंने उंचाई हासिल की है...उनका बचपन भी ऐसी ही कठिनाइयों से गुजरा है. गायक 'अमीर खाँ' ने कहा था 'उनके अब्बा कड़कती ठंढ में भी सुबह चार बजे रियाज़ करने के लिए उठा देते थे'. हर संगीतसाधक के पास ऐसे ही अनुभव हैं. हेमा मालिनी ने भी एक इंटरव्यू में कहा कि जब शाम को सारे बच्चे पार्क में खेलते तो वे नृत्य का अभ्यास करती थीं..वे कभी भी और बच्चों की तरह बेफिक्र होकर खेल नहीं पायीं और उन्हें इसका आज भी अफ़सोस है.

एमी चुआ की इस पुस्तक को एक सनकी माँ का क्रिया-कलाप सोचकर खारिज नहीं किया जा रहा बल्कि इस पुस्तक की समीक्षा अमेरिका के अखबारों में छप रही है. इस पर बहस की जा रही है.   Wall Street Journal   में इस पुस्तक पर छपे आलेख के पक्ष और विपक्ष में काफी प्रतिक्रियाएँ आयीं. Wall Street Journal   ने एक  poll करवाया जिसमे दो तिहाई लोगो का मत था कि '  “Demanding Eastern” parenting model is better than the “Permissive Western” model.
American Enterprise Institute के  Charles Murray का कहना है.." "बड़ी संख्या में प्रतिभाशाली बच्चे एमी चुआ के इस तरीके से लाभान्वित होंगे. वे अच्छे बच्चे हैं...पर वे अपनी प्रतिभा को गंभीरता से नहीं लेते और ईश्वर का दिया हुआ वरदान यूँ ही गँवा देते हैं. "

The Daily Telegraph: का कहना है कि एमी चुआ के तरीके बहुत ही क्रूर लगते हैं पर बच्चे टी.वी. देखकर जो समय बर्बाद करते हैं क्या वह ठीक है??
Times  और Psychology Today   ने भी एमी चुआ के तरीके को सही ठहराया है ...

कई अखबारों ने इसकी आलोचना भी की है. New York Times और Washington post ने लिखा है कि पंद्रह साल की लड़की के अचीवमेंट्स को देख कर कोई निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी. कई अखबारों ने इसकी आलोचना की है और उन बच्चियों से सहानुभूति जताई है. इसके प्रत्युत्तर में एमी चुआ की बेटी 'सोफिया 'ने Washington post   में एक खुला पत्र लिखा जिसमे लिखा है..."I love the relationship I have with my mother; she's one of my best friends, and I respect her. And when I grow up, I'll probably be a Tiger Mom too. If I died tomorrow, I would die feeling I’ve lived my whole life at 110 percent. And for that, Tiger Mom, thank you.”

भारत में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में भी 'एमी चुआ को आमंत्रित  किया  गया था...मधु त्रेहन ने उनसे बातचीत की थी...जब एमी चुआ ने दर्शकों से पूछा कि हाथ उठाएँ कितने लोगो ने अपने माता-पिता के हाथों मार खाई है तो ज्यादातर लोगो ने हाथ उठा दिए. एमी चुआ के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी. निश्चय ही अपने तरीके का  प्रचलन देख कर अवश्य उन्हें बहुत ख़ुशी हुई होगी. .परन्तु  दोनों ही तरीके अति सख्ती और बिलकुल स्वच्छंद  छोड़ देना...पर अमल करना बेहद आसान है. मुश्किल तब आती है जब दोनों में सामंजस्य स्थापित करने की बात आती है. कितनी ढील दी जाए और कहाँ पर सख्ती बरती जाए...ऐसी पैरेंटिंग बिलकुल तलवार की धार  पर चलने के सामान है. 

पर यह विडंबना ही है कि एक तरफ अपने बच्चों पर इतनी सख्ती किए जाने की बात खुलेआम स्वीकार करने पर बड़े बड़े अखबारों में उसपर बहस होती है ..लोग उसके पक्ष और विपक्ष में प्रतिक्रियाएँ व्यक्त करते हैं. और दूसरी तरफ नार्वे में बसे एक भारतीय दंपत्ति के बच्चे इसलिए उनसे दूर कर दिए जाते हैं कि वे एक साल की  बच्ची को अपने हाथ से खिलाकर force feeding  कर रहे हैं...और तीन साल के बच्चे को अपने साथ सुलाकर उनके स्वाभाविक विकास में बाधा पहुंचा रहे हैं.

31 टिप्‍पणियां:

  1. सख्ती तो कल मैंने भी अपने बेटे पर की, बाद में थोड़ा अफसोस भी हुआ....लेकिन इसके अलावा मेरे पास चारा भी नहीं था। बच्चों के ज्यादा मनबढ़ हो जाने पर एकाध लाफा जरूरी हो जाता है । Harsh Punishment के पक्ष में बिल्कुल नहीं हूं।

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  2. एमी का तरीका कुछ अति का लगा ... बचपन के बहाव को अगर थोडा अनुशासन दे दिया जाए तो बेहतर पर बच्चो को रिमोट से चलाना वाजिब नहीं है ...

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  3. पूरी तरह सहमत होना मुश्किल है . ज़रुरत से ज्यादा अनुशासन बच्चों पर विपरीत प्रभाव भी छोड़ सकता है .
    एक सामंजस्य बनाना ज़रूरी होता है . बच्चे का मानसिक विकास नियंत्रित स्वतंत्रता के साथ ज्यादा अच्छा होता है .

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  4. कितनी ढील दी जाए और कहाँ पर सख्ती बरती जाए...ये सोचना होगा और उसका सही इस्तेमाल ही आगे आने वाली पीढी का निर्माण कर सकता है।

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  5. जोड़ासाँको की हवेली (रबिन्द्रनाथ ठाकुर का पैतृक आवास) में एक बड़ी सी किताब है. उसमें हर अभिभावक (एक बड़ा विशाल संयुक्त परिवार था उस हवेली में) अपने बच्चों के बारे में लिखा करते थे कि वे बड़े होकर क्या बनेंगे. रबिन्द्र नाथ के बारे में उनके अभिभावकों ने सिर्फ इतना लिखा है कि इस बालक से हमें कोइ उम्मीद नहीं, इसलिए इसके बारे में हम कुछ नहीं लिख रहे.
    और वो कहते हैं न द रेस्ट इस हिस्ट्री!! बच्चे पालने और जानवरों को पालने का तरीका एक सा नहीं हो सकता. और बच्चों को पालने के तरीके भी देश, काल और परिस्थिति पर निर्भर करते हैं. मुझे तो यही लगता है कि बेंजामिन स्पॉक की बेबी एण्ड चाइल्डकेयर पढकर बच्चे नहीं पाले जा सकते!!

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  6. आज जितने भी बुद्धिजीवी बचे हैं, वे सख्‍त अनुशासन की ही उपज है। अब तो केवल केरियर ओरियेण्‍टेट लोग बचे हैं, जो केवल पैसा कमाना जानते हैं। लेकिन अमेरिका में प्रत्‍येक बच्‍चे को 911 नम्‍बर रटा दिया जाता है कि यदि माता-पिता जरासी भी ज्‍यादती करे तो वे पुलिस को बुला सकते हैं। ऐसे में माता-पिता को जैल तक हो सकती है। इसी कारण माता-पिता डरे हुए रहते हैं। अब तो नार्वे की घटना भी सामने ही है।

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  7. सबसे कठिन प्रश्न है जो आपने खड़ा किया………

    "परन्तु दोनों ही तरीके अति सख्ती और बिलकुल स्वच्छंद छोड़ देना...पर अमल करना बेहद आसान है. मुश्किल तब आती है जब दोनों में सामंजस्य स्थापित करने की बात आती है. कितनी ढील दी जाए और कहाँ पर सख्ती बरती जाए...ऐसी पैरेंटिंग बिलकुल तलवार की धार पर चलने के सामान है."

    वास्तविकता तो यह है कि इस मध्यम सुरक्षित मार्ग को कोई भी माता-पिता निश्चित नहीं कर पाते। किसी भी तकनिक को सफलता के बाद ही व्याख्यायित किया जाता है। सारा दारोमदार सफलता पर निर्भर करता है। सफलता मिलते ही माँ-बाप कह सकते है मेरा तरीका ही श्रेष्ठ था।

    मानवीय व्यवहार कभी भी पूर्ण मशीनीकृत प्रतिक्रियात्मक नहीं होता। अनुशासन करने वाला मांबाप का मन-मस्तिष्क भिन्न होता है तो उसे निबाहने वाला बच्चों का मन-मस्तिष्क भी भिन्न होता है, यहाँ तक की प्रत्येक मन-मस्तिष्क का सोचने और बातों को लेने(स्वी्कार या अंगीकार) का तरीका भिन्न होता है।
    एक बच्चा कह सकता है कि अनुशासन नें ही मेरी सफलता सुनिश्चित की वहीं दूसरा मान सकता है कि अनु्शासन नें मेरी प्रतिभा को कुंद कर दिया।

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  8. दीदी, मेरे साथ तो वैसी सख्ती कभी माँ-पापा ने की नहीं, लेकिन मेरे ही कुछ दोस्त हैं जिनपर उनके माता पिता हमेशा सख्ती करते थे, और वहीँ एक और दोस्त है मती, जिसपर उसके माता-पिता ने कभी सख्ती नहीं की...उसे इतनी आजादी थी की हम जब उसके घर जाते या कभी उससे मिलते तो जलन होती थी हमें, लेकिन इतनी आज़ादी में अक्सर बच्चे बिगड़ भी सकते हैं,'मती' शुरू से ही समझदार था, तो उसने उस आज़ादी का कभी दुरूपयोग नहीं किया...

    वैसे मैं ये नहीं कहना चाहता की आज़ादी मिलनी चाहिए बच्चों को, बस सख्ती जरूरत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए...

    बहुत ही बढ़िया आलेख लिखा है दीदी आपने और विषय तो ये शानदार है...किताब का नाम नहीं सुना था मैंने,बताने के लिए थैंक्स..पता नहीं पढ़ पाऊंगा या नहीं..

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  9. अभिभावक की सख्‍ती उतनी ही वाजिब है, जितनी बच्‍चे की मनमानी और स्‍वच्‍छंदता.

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  10. बच्‍चे अक्‍सर इसलिए भी पसंद किए जाते हैं, क्‍योंकि वे बड़ों की बात नहीं मानते.

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  11. ह्म्मम्म्म्मम्म्म्म... बात सही है . पर सख्ती की सीमा होनी चाहिए . लुइज़ा ने धुन निकल लिया , पर उलटा असर भी संभव है . पोजिटिव रिजल्ट का यह मतलब नहीं कि सबकुछ सही कह दें . किसी भी बात की अति सही नहीं होती

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  12. एमी चुआ के तरीकों को ना तो पूरी तरह से नकारा जा सकता है ना ही स्वीकार किया जा सकता है ! बच्चों को अनुशासित करते समय सख्ती और नरमी दोनों में ही संतुलन बनाये रखने की ज़रूरत होती है ! हर परिवार में माता-पिता और बच्चों के बीच एक बहुत ही अन्तरंग रिलेशनशिप होती है जिस पर माता पिता के सख्त या नरम व्यवहार से कोई फर्क नहीं पड़ता और इस रिश्ते का आधार होता है एक दूसरे पर भरोसा और विश्वास ! बच्चे अपने अभिभावकों के प्यार पर अगाध विश्वास करते हैं, उनके संरक्षण में स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हैं और भावनात्मक रूप से उन पर आश्रित होते हैं ! इस रिश्ते को जनरालाइज़ नहीं किया जा सकता ! यह हर परिवार में माता-पिता और बच्चों में अति विशिष्ट और विलक्षण होता है !

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  13. दाल में नमक नहीं होना और नमक बहुत होना दोनों ही सही नहीं हैं।
    और अनुशासन और सख्ती में लकीर भर ही सही फर्क तो हैं ही।

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  14. सख्‍ती और जोर जबरदस्‍ती से बच्‍चों पर बुरा असर होता है, यह मेरा अपना अनुभव है........
    हां अनुशासन जरूरी है पर अनुशासन के नाम पर तानाशाही बच्‍चों को बिगाड सकती है।

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  15. स्कूल के दिनों में मेंरे एक सहपाठी के पिता उस पर बहुत नज़र रखते थे...यहां तक कि ट्यूशन भी जाता तो पिता उसके साथ जाते थे...पिता की सख्ती का उस पर साफ़ असर नज़र आता था...सख्ती रंग लाई और उसका सेलेक्शन पुणे के प्रतिष्ठित मेडिकल कालेज में हो गया...पिता से दूर होते ही उसे हास्टल में ऐसी हवा लगी कि उसने बचपन की सारी कसर एक दो साल में ही पूरी कर दी...दारू से लेकर सारी बुरी आदतें उसने सीख ली...बाद में पता चला कि मेडिकल कालेज से भी उसे निकाल दिया गया...मैं आज तक नहीं समझ पाया कि इस मामले में कसूरवार किसे कहूं...​
    ​​
    ​जय हिंद...

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  16. ओह ! वालस्ट्रीट वाली स्टोरी मुझे बहुत पसंद आई थी. वन ऑफ़ माय फेवरेट. मैंने अपने बॉस को सजेस्ट किया था कि मदर्स डे पर ये किताब अपनी माँ को दें (उनकी माताश्री चाइनीज हैं). तब मैंने वो स्टोरी शेयर किया था और अभी भी फॉरवर्ड करता रहता हूँ. एक लाइन ख़ास कर मुझे बहुत पसंद आई थी. वो ये कि "नथिंग इस फन अन्लेस यू आर गुड ऐट ईट".

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  17. चुआ जी से मैं असहमत हूँ, अनुशासन बच्चों को बिगड़ने नहीं देता है, पर बहुत अच्छा करने के लिये स्वप्रेरणा ही आवश्यक है, हमें क्या सर्कस के शेर तैयार करने हैं?

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  18. सख्ती भी ज़रूरी है , पर अति न हो.......

    पश्चिमी देशों में जो बच्चों पर बिल्कुल दबाव न डालने का माहौल है उसी का नतीजा है कि एक बड़ा प्रतिशत हाईस्कूल भी पास नहीं कर पाता ,

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  19. mere khyal se bacho pe thodi sakhti karna jaruri hai par jo china wale karte hai wo ati hai mai to sehmat nahi hu

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  20. दुनिया में कोई सिद्धांत तभी सफल होता है जब उस सिद्धांत से सफलता मिले |लावारिस बच्चे भी महान होते हैं |बहुत अनुशासन में भी बच्चे खराब होते है |बहुत प्यार से भी बच्चे बिगड़ते हैं और नफरत से भी |फिर भी इस तुलनात्मक अध्ययन की तारीफ करनी होगी |आपको भी बधाई ज्ञानवर्धक जानकारी देने के लिए |

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  21. हर बच्चे का स्वभाव अलग होता है...
    इस बात का ख्याल भी रखा जाये तो अच्छा हो..
    और हाँ..संतुलन तो आवश्यक है.

    शुक्रिया इस आलेख के लिए.

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  22. टाइगर मॉम से दो सौ प्रतिशत असहमति है। रश्मि जी हो सकता है आपने जॉन हॉल्‍ट की escape from childhood पढ़ी हो । न पढ़ी हो तो पढ़ें। इसका हिन्‍दी अनुवाद बचपन से पलायन शीर्षक से उपलब्‍ध है। जॉन बिलकुल इसके उलट कहते हैं।

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  23. माता-पिता सख्ती नहीं दिखाएं तो बच्चों के भविष्य का कबाड़ा हो जाए। उदाहरण आज के पार्क हैं जहां बेरोजगारों के पास काम ही काम है। पढऩे की उम्र में प्रेम की पींगे बढ़ाते हैं क्योंकि माता-पिता ने ढील दे रखी है। हो सकता है मेरी इस टिप्पणी से बहुत से लोग सहमत न हों लेकिन सच यही है। माता-पिता का बच्चों पर ध्यान देना और सख्ती बरतना जरूरी है।

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  24. नहीं रश्मि जी इस बात से सहमत होना वाजिब नहीं है ....
    हाल ही में पिता श्वसुर की मृत्यु पर मेरे देवर की १२ वर्षीय लड़की जो माता-पिता के अनुशासन में जी रही थी अफ्रीका से आई मैंने देखा यहाँ आस-पास के छोटी उम्र के बच्चे भी उससे अधिक प्रतिभावान और स्मार्ट थे .....अगर बच्चों पर जरुरत से ज्यादा सख्ती की जाये तो वो विद्रोही हो सकते हैं या आत्महत्या भी कर सकते हैं ...या घर से भागने की भी सोच सकते हैं , उनमें हीन भावना आ सकती है ...अगर एमी चुआ की बच्चियां सही निकल गईं इसका मतलब यह नहीं की सभी बच्चे इतनी सख्ती बर्दास्त कर पाएं ....ये गलत तरीका है सिखाने का ....उसे प्यार से किसी और ढंग से मना कर भी सिखाया जा सकता है ....

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  25. विसंगतियां तो हर जगह हैं रश्मि. कहीं हद से ज़्यादा सख्ती है, तो कहीं हास्यास्पद होने की हद तक लचीलापन है. न अमरीका सही है न चीन. नार्वे का उदाहरण तो खैर तमाम हदों को ही पार कर गया है.
    एमी चुआ ने जो नियम बनाये, भाग्यवश या किसी और कारणवश उनकी बेटियों ने माने. वरना किसी भारतीय परिवार में ही इस तरह के नियम अमानवीय व्यवहार की श्रेणी में आ जाते. बच्चों को क्या पसन्द है, क्या नहीं, उनका रुझान किस तरफ़ है, अगर अभिभावक इस बात का खयाल नहीं रखेंगे, तो बच्चा कैसे सफल हो पायेगा? न. इतनी पाबन्दियां नहीं. व्यवहार में एक संतुलन बहुत ज़रूरी होता है, जो अधिकांश भारतीय अभिभावक जानते हैं, लिहाजा एमी चुआ भारत के साथ चीन को शामिल न करें.चीन में तो अत्याचार हो रहा है भाई.

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  26. अतिरेक तो हर चीज़ का गलत है, परन्तु बच्चों को अनुशाशन में रखना है तो थोड़ीसख्ती भी आवश्यक है. यद्यपि पशिमी देशों के समाजिक वातवरण में इस तरह की सोच मुश्किल हैं.

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  27. शुक्र है इन्होने अपने रहने की जगह नार्वे जैसे देश को नहीं चुनी......भारतीय तरीको से बेहतर और कोई तरीका नहीं हो सकता, जहाँ प्यार दुलार के साथ सख्ती भी है. एमा जी का भी कार्य सराहनीय है.

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  28. Babur sundar aalekh. Bachhon ko anushashit rakhna hi cyanite. Aajkal Kuch laad phase jyada hi ho rah a hai.

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  29. दोनों ही तरीके अति सख्ती और बिलकुल स्वच्छंद छोड़ देना...पर अमल करना बेहद आसान है. मुश्किल तब आती है जब दोनों में सामंजस्य स्थापित करने की बात आती है. कितनी ढील दी जाए और कहाँ पर सख्ती बरती जाए...ऐसी पैरेंटिंग बिलकुल तलवार की धार पर चलने के सामान है.
    और जिसने यह संतुलन साध लिया वही अच्छा अभिभावक है.
    बहुत अच्छा लिखा है आपने.

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  30. कुछ् असम्बद्ध टिप्पणियाँ:

    1. रील लाइफ़ के विलेन को पिटता देखकर रियल लाइफ़ के विलेन भी तालियाँ बजाते हैं।
    2. उत्पीड़न ग़लत है, यह समझने के लिये प्रताड़ित होना भर काफ़ी नहीं है।
    3. ज़रूरी नहीं कि क़ानूनन स्वीकृति सदा सही हो, सऊदी अरब में महिलाओं के दमन और भेदभाव को आज भी कानूनी स्वीकृति है

    4. सफलता का कोई एक सर्वस्वीकृत पैमाना नहीं है।

    5. देवाअनन्द का बेटा पहली फ़िल्म के न चमकने से अपना करीयर बदल लेता है।

    6. युवा संजय दत्त न ठीक से खड़ा हो सकता था न सम्वाद बोल सकता था परंतु लड़खड़ाते हुए अभिनय करते हुए भी तीन दशक बाद आज एक सफल अभिनेता है


    अब कुछ विषय सम्बन्धित टिप्पणियाँ
    1. टाइगर मॉम के पुस्तक लेखन का एक कारण उनकी दूसरी संतान का विद्रोह था - केवल यह एक तथ्य ही इस सुशिक्षित सफल महिला के मातृत्व सफलता प्रतिशत को 50% गिराने के लिये काफ़ी है। और यही हथियार यदि अपरिपक्व और बेईमान पेरेंट्स द्वारा प्रयोग किया जाये तब क्या होगा उसका अन्दाज़ आसानी से लगाया जा सकता है।

    2. बुकस्मार्ट होना और बात है ... लाखों लकीर के फ़कीर (सफल) आइएस की भीड़ में भी टीएन सेशन जैसा परिवर्तन एकाध ही होता है। पंजाब के आतंकवाद की जिस आग में दिल्ली के सुपरकॉप जाते नहीं और मुम्बई के असफल हो जाते हैं उस आन्धी को भी एक के पी एस गिल थाम लेता है।

    3. संसार में बच्चों को अपनी सम्पत्ति समझने वाले भी हैं और उनके स्वतंत्र व्यक्तित्व का आदर करने वाले भी। तंत्र जितना अधकचरा होगा, उसका शोषण उतना ही अधिक होने की सम्भावना है, इसलिये माँ-बाप के साथ शिक्षा-प्रशासन-व्यवस्था आदि को भी परिपक्व होना पड़ेगा।

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फिल्म The Wife और महिला लेखन पर बंदिश की कोशिशें

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