मंगलवार, 19 जुलाई 2011

वो धूसर सी मटमैली शाम...

मुंबई, शोर का शहर......जिंदगी भागती सी ही नज़र आती है...पर इसी मुंबई में एक जगह ऐसी भी है....जहाँ जिंदगी थम गयी सी लगती है. पर ये स्थान भी मुंबई का ही एक हिस्सा है , यकीन करना मुश्किल .

यहाँ  कोई आवाज़ ही नहीं.....लोग किसी स्टेच्यु की तरह अपनी स्थान पर ही टिके हुए थे....पास वाली की उपस्थिति से अनजान...अपने ही खयालो में मुब्तिला .....सामने आकश में छाए बादल और ठांठे मारते समुद्र के पानी का रंग भी धूसर सा उदास लग रहा था....जैसे अंदर बैठे लोगो की मनःस्थिति को परिलक्षित कर रहा हो. बारिश के मौसम ने समुद्र  तट पर दूर तक कीचड़ का दलदल फैला दिया  था...जिसे पार कर खुले समुद्र की लहरों तक पहुंचना नामुमकिन सा लग रहा था....ICU यूनिट के बाहर शांत-निश्चल बैठे लोगों को भी अपने परिजनों की स्थिति किसी दलदल में फंसी सी ही लग रही थी..जिस से उनके सही सलामत   उबर आने के लिए सबो के लब पर प्रार्थना थी और डॉक्टर  के दल पर अटूट विश्वास.

पर आज चैतन्य मन से इन सबकी स्थिति का अवलोकन भी मैं इसलिए कर पा रही थी क्यूंकि ICU में भर्ती मेरे भतीजे के स्वास्थ्य में सुधार था...वह खतरे से बाहर था और डॉक्टर ने सिर्फ ऑब्जरवेशन के लिए ICU में रखा हुआ था...वर्ना दो रात पहले मुझे भी अपनी ही खबर नहीं थी....टाईफायड भी इतना खतरनाक  रूप ले सकता है...किसने सोचा था...भतीजे,सनी की पुणे की नई-नई नौकरी लगी...३ जुलाई से सनी को बुखार आने लगा...वो मेरे पास,मुंबई आ गया...यहाँ डॉक्टर ने सारे टेस्ट  करवा कर बताया टाईफायड है..दवा शुरू हो गई....७ जुलाई  को सनी को काफी आराम लगा...बुखार भी कम था...खाना भी अच्छी तरह खाया...टी.वी. देखा...पर अगले  दिन से उसके मोशन में रक्त आने लगा....डॉक्टर ने कहा,टाईफायड में ऐसा होता है...घबराने की बात नहीं...पर कमजोरी की वजह से एडमिट करने की सलाह दी...लेकिन  रात के बारह बजे से उसे जो रक्तस्त्राव शुरू हुआ...कि डॉक्टर -नर्स...हम सब , अपने पंजों पर ही खड़े रहे...डॉक्टर ने कुछ लाइफ-सेविंग ड्रग्स आजमाईं पर  कोई असर नहीं...अब इस हेवी ब्लड लॉस की  वजह से  खून चढ़ाया जाने लगा...और डॉक्टर ने कह दिया...इसे किसी बड़े अस्पताल में शिफ्ट करना होगा.

पतिदेव ने कहा...इसके घरवालों को खबर कर दो...पर खबर करूँ तो किसे??...पिता को ये किशोरावस्था में ही खो चुका था....अकेली माँ....इसके मामा के यहाँ गयीं हुईं थीं...और घर पर सिर्फ मेरे बूढे मौसी-मौसा...मोबाइल पर दोनों के नंबर बारी-बारी से देखती पर कॉल बटन प्रेस करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती...नर्सिंग होम के कॉरिडोर में एक मद्धम सी बत्ती जल रही थी...थोड़ी दूर पर एक  नर्स उंघती सी बैठी थी....सारे पेशेंट सो रहे थे...पति और बेटा भी चुप से बैठे थे...थोड़ी -थोड़ी देर में डॉक्टर अपने कमरे से बाहर आते...'सनी' को चेक करते...कभी नर्स को किसी इंजेक्शन देने के लिए कहते ...कभी पतिदेव को कोई परचा थमाते..."ये इंजेक्शन लेकर आइये"...पतिदेव...बेटे के साथ भागते हुए बाहर की  तरफ बढ़ जाते ...और मेरे नंगे पैर के नीचे की ठंढी जमीन थोड़ी और ठंढी हो मेरा खून सर्द किए जाती..और मैने मोबाईल नीचे रख दिया...उनलोगों को मैं क्या बताउंगी...और वे कितना समझ पायेंगे...सोच लिया,अब सुबह ही खबर की  जायेगी. 

पर वैसी सुबह तो किसी के जीवन में कभी ना आए...डॉक्टर ने सिर्फ दो,चार हॉस्पिटल  के नाम ही बताए...और कहा..तीन-चार घंटे के अंदर इसे वहाँ शिफ्ट कीजिए......पर बड़े हॉस्पिटल में बेड मिलने की सबसे बड़ी परेशानी होती है..कई फोन खटकाये गए....और लीलावती में सनी एडमिट  हो गया....यहाँ भी डॉक्टर के दल ने पहले तो दवा के सहारे ही इलाज़ की कोशिश की...लेकिन कोई फायदा ना होते देख...colonoscopy करनी पड़ी. और पता चला...छोटी आंत में कई ulcers हैं. उसमे से ही कुछ फट गए हैं..जिसकी वजह से इतना रक्तस्त्राव हो रहा है. ulcers का इलाज़ किया गया...और सनी ठीक होने लगा...भाभी  भी पहले तो आठ घन्टे का सफ़र कर बनारस पहुंची...फिर बनारस से पांच घंटे की फ्लाईट से मुंबई...

तीन दिन के जागरण  के बाद....आज मन कुछ शांत था....और अपने आस-पास देखने का होश था. अब लोगो के ग़मगीन चेहरे देख यही सोच रही थी...ईश्वर इनके परिजनों को भी स्वस्थ कर इनके चेहरे से ये गम की छाँव हटा...मुस्कान की धूप खिला दे. पास की ही कुर्सी पर सत्रह -अट्ठारह साल का एक किशोर हाथ में पानी की बोतल लिए बैठा था.उसने पीठ पर से बैग भी नहीं उतारे थे. शायद उसका पहला अनुभव था...सहमा सा...इस वातावरण में खुद को एडजस्ट नहीं कर पा रहा था...जरूर उसके भी परिजन...स्वस्थ हो वार्ड में शिफ्ट होनेवाले होंगे..वर्ना घरवाले किसी जिम्मेदार व्यक्ति को ही भेजते.. सामने उद्विग्न सा एक व्यक्ति कभी बैठता कभी उठ कर टहलने लगता....उसके चेहरे ,हाव-भाव से दुख से ज्यादा परेशानी झलक रही थी.,..शायद प्रेम से ज्यादा कर्तव्य की भावना प्रबल थी. एक कोने में बुर्के में एक महिला...बार-बार बाथरूम जाती और सूजी हुयी लाल-आँखे लिए कोने की तरफ मुहँ करके बैठ जाती...मन होता एक बार उसके कंधे पर हाथ रख...उसका दुख बांटने की कोशिश की जाए...पर फिर उसका कोने में यूँ, मुहँ करके बैठना ही इस बात का संकेत दे जाता  कि वो किसी से बात करने की इच्छुक नहीं है. जरूर  कोई बहुत ही अज़ीज़ होगा...फर्श पर ही दीवार से टेक लगाकर, एक युवक  बैठा था....सफाचट सर....ठुड्डी पर सिर्फ थोड़ी सी दाढ़ी...कानो में छोटी छोटी बालियाँ ....दोनों बाहँ पर बड़े से टैटू...छोटी बाहँ की टी-शर्ट और शॉर्ट्स में किसी फिल्म का विलेन ही लग रहा था. पर चेहरे के भाव उसके इस रूप से बिलकुल मेल नहीं खा रहे थे....माँ बीमार थी...और वो एक छोटा सा घबराया सा बच्चा दिख रहा था....एक स्मार्ट सी लड़की...जींस टॉप पर एक स्टोल डाले एक मोटी सी किताब पढ़ने में तल्लीन थी....उसके सिमट कर सीधे बैठने के तरीके से लग रहा था...उसे ज्यादा चिंता नहीं है....उसका भी कोई अपना...ऑब्जरवेशन के लिए ही होगा...ICU में. तभी उसे मैचिंग स्टोल लेने का भी ध्यान रहा...पर थोड़ी देर में ही स्टोल लेने का कारण पता चल गया....उसने स्टोल खोलकर शॉल की तरह ओढ़ लिया...ए.सी. की ठंढक बढती जा रही थी.
एक दूर किसी शहर से आए सज्जन ऐसे थके हारे से बैठे थे मानो...सबकुछ भाग्य के भरोसे छोड़ दिया है...एक साहब एक कोने में लगातार  फोन पर ऑफिस की समस्याएं सुलझाने में लगे थे...अपनी टाई तक ढीली नहीं की थी...कभी-कभी उनकी आवाज़ तेज़ हो जाती...और बंद शीशे से घिरे उस हॉल में उनकी आवाज़ गूँज जाती तो खुद ही चौंक कर चुप हो जाते. एक तरफ तीन महिलाएं और एक पुरुष पास-पास बैठे थे..चेहरे पर  चिंता की लकीरें...और भीगी आँखे लिए...जैसा कि आए दिन मुंबई के अखबारों में पढ़ने को मिलता है,...पांच दोस्त..(तीन लड़के और दो लडकियाँ) कार लेकर बारिश के मौसम का आनंद  लेने निकल पड़े....और किसकी गलती थी...क्या हुआ...पर कार दुर्घटनाग्रस्त हो गयी....एक बच्चे ने तो वहीँ दम तोड़ दिया...बाकी चार  भी गंभीर रूप से घायल  हो गए...माता-पिता..चिंताग्रस्त सर झुकाए बैठे थे.

गार्ड के पास, एक विदेशी महिला,उसे कुछ समझाने की कोशिश कर रही थी..पर शायद  वो उसकी बता नहीं समझ पा रहा था...जबकि 'लीलावती ' के सारे स्टाफ अंग्रेजी समझ  तो लेते ही थे..कामचलाऊ बोल भी लेते थे...आखिर हताश होकर उसने खीझकर पास ही खड़ी एक लड़की से कहा......".वाई इज ही नॉट लिसनिंग टू मी??" ..उस लड़की ने महिला और गार्ड दोनों के बीच दुभाषिये का काम किया....और उस विदेशी महिला को समझाया कि वो आपका उच्चारण नहीं समझ पा रहा . फिर जैसे ही  उस लड़की ने पूछा..".हाउ इज योर हसबैंड?" वो महिल फूट-फूट कर रो पड़ी...एक अनजान देश...अनजान भाषा...अनजान चेहरे के बीच जिस व्यक्ति के भरोसे आई  थी...वही जीवन और मौत के बीच झूल रहा था..(लेकिन दूसरे दिन जब उस महिला को मुस्कुराते हुए...हाथ में एक पानी की बोतल थामे तेजी से आते देखा...तो लगा...अब उसके पति का स्वास्थ्य जरूर सुधर रहा होगा...)

 माहौल ऐसा ही शांत था...बाहर फैली हल्की मटमैली सी शाम अब गाढे अँधेरे में तब्दील हो रही थी...समुद्र के पानी का रंग  भी किसी काढ़े के रंग सा लगने लगा था...ऐसे में ही पेशेंट को लानेवाली लिफ्ट का दरवाजा खुला...और कुछ लोग भागते हुए एक बेड लेकर आए पर बेड तो खाली नज़र आ रहा था...तभी पास से बेड गुजरा और उस पर एक तीन साल की बच्ची बेसुध पड़ी थी...सबके मुहँ से एक आह निकल गयी...और सबकी दुआओं का रुख उस मासूम  बच्ची की तरफ मुड गया. 
अब तक,वो जरूर अच्छी हो गयी होगी.

इस दरम्यान कुछ अजीबो-गरीब अनुभव भी हुए....अक्सर लोगो से रोजमर्रा की बातें होती है..मौसम..पास-पड़ोस...घर-परिवार की..पर जब कुछ अप्रत्याशित घट जाता है..तो लोगो की सोच अलग सी नज़र आने लगती है. लोगो के फोन आते..."अरे तुम लोगो ने स्थिति संभाल ली...वर्ना अपने बच्चे के लिए कोई कुछ भी कर ले...दूसरे के बच्चे के लिए निर्णय लेना मुश्किल होता है..." अपना या दूसरे का बच्चा!!!....उस वक़्त तो सिर्फ एक बीमार बच्चा सामने दिखता है...और यही कोशिश होती है कि...उसे बेस्ट ट्रीटमेंट दिलवाने की कोशिश में कोई कसर ना रह जाए....कोई सनी का हाल पूछता....और एक पंक्ति के बाद ही शुरू हो जाता..." ये सुनकर तो इतनी घबराहट हुई...मेरे तो हाथ-पाँव कांपने लगे...बुखार चढ़ आया...चक्कर आने लगे" और मैं सनी का हाल बताने की बजाय...उन्हें ही अपना ध्यान रखने की सलाह देने लगती. कोई कहता,'तुम्हारे घर बीमार होकर आया....भगवानका शुक्र है..अच्छा हो गया..." अच्छा है..मैं ज्यादा नहीं सोचती...ये सब कभी दिमाग में आया भी नहीं...और आता भी कैसे..डॉक्टर ने भले ही कह दिया था...तीन-चार घंटे के अंदर किसी तरह बड़े अस्पताल में शिफ्ट कीजिए...cardiac ambulance  की व्यवस्था की  जिसमे एक डॉक्टर मौजूद था, खून और पानी चढाने की व्यवस्था थी... सनी का हिमोग्लोबिन ५% पर आ गया था. पर सनी की चंचलता वैसे ही कायम थी..स्ट्रेचर पर उसे cardiac ambulance  में लाया गया...और उसने एम्बुलेंस  के अंदर से  से चिल्ला कर बोला..."बुआ, मेरी चप्पल वार्ड में ही छूट गयी है...मंगवा  लेना"

दो पंक्तियों में 'लीलावती हॉस्पिटल' के डॉक्टर नर्स का आभार व्यक्त करना भी बहुत आवश्यक  है....वहाँ के डॉक्टर, नर्स को अब स्पेशल ट्रेनिंग दी जाती है...या वे एक दूसरे को देख कर सीखते हैं...पर बहुत ही नम्र...हमेशा होठों पर मुस्कान...बेहद एफिशिएंट और आशावादी......और हर डॉक्टर का व्यवहार  बिलकुल परिवार के एक सदस्य जैसा था...
उनकी कोशिशों से ही सनी इतनी जल्दी घर आ पाया...अब ,उसकी मम्मी भी साथ हैं...सूप...जूस..परहेजी खाना चल रहा है....उसकी तीमारदारी में ही इतने दिनों लगी  हुई थी ..ना कुछ लिखना हुआ...ना किसी के ब्लॉग पर जाना ही हुआ...अब जिंदगी पुरानी रूटीन पर लौट रही है...पर थोड़ी धीमी गति से....

39 टिप्‍पणियां:

  1. रश्मि तुम इतने पास थी और मैं चिन्ता कर रही थी। फोन लग नहीं रहा था। अब समझ आया कि तुम सब तो कितने बड़े संकट से गुजरे हो। सौभाग्य से सनी अब बेहतर है। तुम्हें अपनी मेहनत में सफल होने की बधाई व सनी को शुभकामनाएँ।
    पता नहीं कितने लोगों को अपने जीवन की कठिनतम घड़ियों की याद दिला दी।
    घुघूती बासूती

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  2. जब तक जिंदगी ठीक ठाक चलती रहती है , हमें कुछ अहसास नहीं होता . जब सर पर पड़ती है तब पता चलता है जिंदगी कितनी महँगी चीज़ है .
    यह रोगी का अटेंडेंट बन कर ही जाना जा सकता है .
    बहुत मर्मस्पर्शी तस्वीर दिखाई है अस्पताल की .
    यह अलग बात है , हम तो रोज देखनी पड़ती है .

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  3. पिछले साल इन्ही दिनों एक २२ साल की लड़की.. हमारी सलहज की छोटी बहन, जिसकी शादी अभी अभी हुई थी के दोनों किडनी ख़राब हो गए थे... अचानक की सबकुछ हुआ.. उसके पति बैंगलोर में थे.. पेरेंट्स जबलपुर में.. जब तक सब आते तब तक एस्कोर्ट्स में भरती करना पड़ा... वे दो दिन बहुत बुरे गुज़रे... दुआ.. नियमित डैलेसिस.. आयुर्वेदिक उपचार से वो धीरे धीरे ठीक हो रही है.. आपके पोस्ट को पढ़कर वही दिन याद आ गए... सनी जल्दी ठीक हो यही कामना है...

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  4. और हाँ , बच्चा अब ठीक है , यह जानकर राहत मिली . अपने अपना फ़र्ज़ बखूबी निभाया .

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  5. भतीजे के स्वास्थ्य होने की बधाई और जल्दी ठीक हो कर अपने रोजमर्रा के कामो में लग जाये उसके लिए शुभकामना |

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  6. बच्चा अब ठीक है यह जानकर अच्छा लगा
    अपनी मेहनत सफल हुई ...शुभकामनाये

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  7. में भी टाईफायड के कारण करीब 25 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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  8. आपने तो अस्पताल का ऐसा दृश्य खींचा है कि उस स्थिति से बाहर आकर टिप्पणी बॉक्स तक पहुंचने में ५-७ मिनट लग गए।

    जिस धैर्य और दृढ़ मनोबल का परिचय आपने इस मुसीबत की घड़ी में दिया वह क़ाबिल-ए-तारीफ़ है।

    सनी के शीघ्र से शीघ्र पूरी तरह से ठीक होकर अपना दैनिक काम शुरु करने की कामना ईश्वर से करता हूं।

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  9. कुशलता की कामना, आपके लौटने की गति तेज हो. अपनी ओर से इस बीच की एक पोस्‍ट नायकदेखने का आग्रह आपसे है.

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  10. सनी के स्वस्थ होने की खबर से बहुत राहत मिली...सच है कि ऐसे ही अपने गुज़रे मुश्किल के पल भी याद आ जाते हैं.

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  11. जिन्‍दगी न मिलेगी दोबारा। सचमुच इसी जिन्‍दगी में हमें कितना कुछ देखना और सहना पड़ता है।
    *
    सोच तो हम भी यही रहे थे कि आखिर क्‍या हुआ। रश्मि जी कुशल तो हैं। आप इस अजाब में थीं। शुक्र है कि सब कुछ ठीक होता गया है।
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    पर रश्मि जी दाद इस बात की देनी होगी कि तनाव के इन झणों में भी आपने अंदर के लेखक को जिलाए रखा। वह लगातार सतर्क रहा। तभी तो छोटे छोटे अवलोकन भी आप कर पाईं। बहुत कसा हुआ संस्‍मरण बन पड़ा है।
    *
    सनी जल्‍दी स्‍वास्‍थय लाभ करें,यही कामना है।

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  12. आज अगर आपकी पोस्ट न आती और इस घटना का पता न चलता तो आपको मेल करने ही वाला था, हाल जानने के लिए.. ब्लॉग से और फेसबुक से भी आप गायब थीं..
    हस्पताल का माहौल देखकर जी बैठ जाता है.. परमात्मा सनी के जल्दी स्वस्थ करें!!

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  13. समय प्राथमिकता में ही दिया जाये। सनी का स्वास्थ्य अच्छा रहे।

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  14. आपके अन्दर की मानवता को नमन है रश्मि जी ......
    वर्ना ऐसी स्थिति में हर कोई मानवता भूल अपना बजट टटोलने लगता है ......

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  15. शुभकामनाएँ सनी को, स्वास्थ्य लाभ के लिए, और आपकी लेखनी को बधाइयाँ कि आप विषम स्थितियों में भी सब जीवंत रख पायीं, लिख पायीं।

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  16. रश्मि जी, मुश्किल समय आता है, और गुज़र जाता है...यही जीवन है...अल्लाह सबको स्वस्थ रखे.

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  17. ओह!! टायफाईड इतना बिगड़ सकता है..आशा है सन्नी के स्वास्थय में लगातार सुधार हो रहा होगा.उसके शीघ्र स्वास्थय लाभ के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं.

    लीलावती के स्टाफ के बारे में जानकर सुखद लगा वरना तो अब तक अन्य अस्पतालों के बारे में कभी बहुत अच्छा नहीं सुना....

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  18. अस्पताल जैसी जगहों पर जाना बिलकुल अलग अनुभव होता है. मैं नहीं रुक पाता ज्यादा देर तक !

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  19. एक अलग सा अनुभव, अलग सी पोस्ट। शुक्र है अब सब ठीक है।

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  20. sanni ka swasthy jald achcha ho aur wo punh apne kaam me lag jaye yahi dua hai...aap to hai hi himmat wali...tc di

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  21. गाडी पटरी पर लौट आये4ए है ये बहुत अच्छी बात है दुख सुख ज़िन्दगी के साथ चलते रहते हैं मै भी आज 15 दिन बाद आयी हूँ नेट पर। शुभकामनायें।

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  22. Rashmi ji aapne bahut sateek khaka kheencha hai ..us vakt ka ..samvednaon ka ...Sunny ko svasathy laabh ke liye shubhkaamneyen ..

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  23. @समीर जी,
    सचमुच... टायफाईड भी इतना भयानक रूप ले सकता है....सोचना मुश्किल....वर्ना हज़ारों लोग बाहर खाना खाते हैं....हज़ारों लोग टायफाईड से ग्रसित होते हैं और ठीक हो जाते हैं...डॉक्टर ने भी बताया ऐसे complications .05% लोगों में ही होता है.पर अब इसे ही होना था. ये rare case था.इलाज़ के दौरान इसे 23 बॉटल ब्लड चढ़ा ...भगवान का लाख-लाख शुक्र कि स्वस्थ हो गया.

    लीलावती का स्टाफ तो सचमुच इतना अच्छा है कि उनपर एक अलग से पोस्ट लिखने का मन हो रहा था...ICU में एक पैर पर नर्स खड़ी रहती थीं... पेशेंट की एक पुकार पर उसकी जरूरत पूरी करती थीं...पेशेंट के रिश्तेदारों से भी बड़े प्यार और नम्रता से बातें करती थीं....और छोटी-छोटी लडकियाँ इतनी एफिशिएंट...लगातार कभी ड्रिप में कुछ इंजेक्ट कर रही हैं...कभी किसी ट्यूब में...कभी पल्स चेक करके लिख रही हैं..तो कभी मॉनिटर से कुछ नोट कर रही हैं.

    डॉक्टर भी मरीज़ की हालत विस्तार से बताते..और वे क्या करने जा रहे हैं...पूरा डायग्राम बना कर समझाते... इस गर्मजोशी से हाथ मिलाते और हलो कहते जैसे किसी गेस्ट को वेलकम कर रहे हों...अभी एक हफ्ते बाद 'सनी' को चेकअप के लिए जाना है...वो उनसे मिलने को इतना उत्साहित है कि एक बड़ा सा Thank You कार्ड मंगवाया है...और उन्हें एक लम्बा सा लेटर लिखा है.

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  24. आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद आप की शुभ कामनाओं के लिए ...
    मेरी बुआ ने मेरी काफी देख भाल की है कुछ भी खाने को नहीं देती है कहती है अभी ५ दिन रुक जाओ उस के बाद खाना ...
    बीमार होने के बाद ज़िन्दगी कुछ थम गयी सी लगती है,पर अभी सब सही होने की वजह से सब अच्छा लगता है...


    "Sunny"

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  25. सनी शीघ्र ही पूर्ण रूप से स्वस्थ हों यही कामना है ! इतने दिनों तक आपकी अपने ब्लॉग से भी हुई दूरी इस बात का संकेत तो कर रही थी कि कुछ अप्रत्याशित अवश्य ही घटा है वरना आप इतने दिनों तक अनुपस्थित नहीं हो सकतीं ! आज आपको वापिस आया देख कर बहुत खुशी मिली है ! आप सभी लोग बहुत थके होंगे इतनी भागदौड के बाद ! आराम भी करिये और शांत चित्त से मन को भी विश्राम दीजिए ! वैसे लिखने के लिये आप जब भी कलम उठाती हैं कमाल ही कर जाती हैं !

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  26. अस्‍पताल में मरीज की तीमारदारी करना भी बड़ा जीवट का काम है। लेकिन अंत भला तो सब भला।

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  27. मुझे लगा था दीदी, की आप इसी कारण नहीं आ रही हैं फेसबुक पे या ब्लॉग पे..याद है, आपने बताया भी था मुझे जब मैंने मुंबई ब्लास्ट के बाद आपको कॉल किया था..

    सनी के अच्छे होने की खबर सुन कर सच में राहत मिली...

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  28. लेखक की निगाह से अस्पताल!

    आपसे बात हुई तो पता चला था कि 'लीलावती' में हैं।

    'सनी' के उत्तरोत्तर स्वास्थ्य लाभ की कामना

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  29. बहुत मुश्किल समय होता है वो, जब हम अपने किसी को मौत के इतने नज़दीक खड़ा पाते हैं. ऐसे में बस संयम बनाये रखने की ज़रूरत होती है. हॉस्पिटल वो जगह ही है जहां ज़िंदगी और मौत से हम पल-पल रूबरू होते रहते हैं.
    तुमने और तुम्हारे परिवार ने जिस धैर्य और सेवाभाव से सनी की देख-रेख की उसकी क्या तारीफ़ करूं? वरना अब कौन सोचता है कि सम्बन्धित के घर वालों पर क्या बीतेगी?

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  30. रश्मि जी, ये जानकर अच्छा लग रहा है कि आपका भतीजा अब स्वस्थ है, वाकई अस्पताल और उन स्थितियों से जूझना हर किसी के बस की बात नहीं

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  31. ऐसे हालात से ना जाने कितनी बार गुजरना हुआ है बस तभी तो ये निकलता है भगवान अस्पताल का मूँह किसी को ना दिखाये……………बस सब ठीक हो गया यही काफ़ी है…………भगवान सनी को हमेशा खुशहाल रखे।

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  32. ये वक़्त भी कमबख्त ...तब हम सोचकर रह गये कि आपको हमारी फ़िक्र ना हुई जबकि एन उसी वक़्त हमें आपके लिए फिक्रमंद होना चाहिए था !

    सनी के लिए हजारों हज़ार दुआएं,शुभेच्छायें ,आशीष !

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  33. ऐसे अहसासों से न जाने कितने बार गुजरना हुआ है आजतक....बहुत सारे याद हो आये...

    महसूस किया जा सकता है कैसा अनुभव होता रहा होगा...

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  34. सनी का पूरा ख़याल रखिये
    शुभकामनाएं !

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  35. आपके अथक प्रयास से सनी की हालात में सुधार हुवा ... ये एक अच्छी खबर है ... ये सच है की अगर अंदर से मन प्रसन्न हो तभी सब कुछ अच्छा लगता है नहीं तो इंसान कुछ भी करने की स्थिति में नहीं रहता ...

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  36. बेहतरीन वर्णनं किया है आपने !हार्दिक शुभकामनायें

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  37. ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है, सब ठीक है अब। मैं भी एक बार टेंशन में था और फोन मिलाने वाला था आपको। सब एक दूसरे के दुख-सुख में ऐसे ही साथ दें तो कितना कुछ बदल सकता है।

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  38. सच कुछ परिस्थितियां ऐसी आ ही जाती हैं की जीवन थम सा जाता है.... शुभकामनाएं

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