सोमवार, 7 जून 2010

आई जस्ट फेल इन लव विद......

मुंबई आने से पहले ,बारिश बस फ़िल्मी परदे पर ही अच्छी लगती थी...खासकर  'लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है...." और "रिमझिम गिरे सावन...." गानों में .जब भी ये गाने सुनती (और ना जाने कितनी बार सुनती )...आँखों के सामने ,दृश्य भी साकार हो उठते .पर यह कभी मेरा प्रिय ऋतु नहीं रहा ...शायद स्कूल में कभी निबंध लिखे हों ,इस विषय पर. इस से ज्यादा बारिश से नाता नहीं था,क्यूंकि बारिश से बस कीचड़, रास्ते पर जमा गन्दा पानी ही याद आता. और याद आती, उसके बाद की उमस.

मुंबई आए कुछ ही दिन हुए थे और वह मेरे बड़े बेटे के स्कूल का पहला दिन था. मैं  छोटे बेटे को गोद में लिए बस स्टॉप पर उसे लेने  को खड़ी थी. मेरे लिए  भी यह पहला अनुभव था. क्यूंकि इसके पहले घर के पास के ही प्ले स्कूल में पढ़ा करता था ,और मैं खुद ही छोड़ने- लेने  जाया करती थी. कुछ महिलायें भी खड़ी थीं. मैं उसके  स्कूल का बस  पहचानती नहीं थी, कोई भी स्कूल बस दिखती तो आगे बढ़ जातीं,उनमे से एक महिला ने कहा, "अरे ,उस स्कूल की बस तो एयरोप्लेन  जैसी है,दूर से ही पहचान में आ जाएगी,क्यूँ परेशान हो रही हो?" नया स्कूल था,नखरे भी थे. धीरे धीरे सारे स्कूल की बस आ गयी और सारी महिलायें अपने बच्चों को लेकर चली गयी. मैं  अकेले एक पेड़ के नीचे खड़ी थी और तभी जोर की आंधी चलनी शुरू हो गयी,छोटा बेटा,डर कर जोर जोर से रोने लगा. उसका यह पहला अनुभव था.और तभी जोरों की बारिश शुरू हो गयी.मौसम की पहली बारिश. मैं वहाँ से हिल भी नहीं सकती थी,कि पता नहीं कब बस आ जाए.वैसे ही जोर की बारिश में भीगती खड़ी रह गयी. खैर बस आई , और दोनों बेटों के साथ  घनघोर बारिश में भीगती...अपनी बिल्डिंग की तरफ बढ़ी.

गेट पर ही जो नज़ारा दिखा क़ि मैं दंग रह गयी ,अब मेरे जीवन का ये पहला अनुभव  था. बिल्डिंग के सारे बच्चे नीचे जमा थे. उस सोसायटी  में लोगों  ने, बच्चों के  खेलने के लिए  बीच में खाली जगह छोड़ रखी थी,कंक्रीट नहीं लगवाई  थी. सारे बच्चे मिटटी,पानी में सने...फूटबाल खेल रहें थे.छोटे बच्चे यूँ ही इधर उधर दौड़ भाग रहें थे. बिल्डिंग क़ि लडकियां भी झुण्ड बनाएं खड़ीं थीं.उनलोगों  ने जैसे ही छोटे बेटे को देखा, उसे  गोद में लेने चली आयीं.वह वैसे भी  उनका दुलारा था, पूरी शाम वे उसे ले घूमती रहतीं. पहली बार देखा, माँ की गोद में रोने वाला बच्चा, उनकी गोद में चहक रहा  था :(...और हाथ उठा कर बारिश के मजे ले रहा था. बड़ा बेटा  तो पहले ही हाथ छुड़ा जूते मोजों समेत...अपने दोस्तों के पास भाग गया था. मैं भी किनारे खड़े हो ये खुशनुमा नज़ारा देखने लगी. देखा जिनके बच्चे डर रहें थे उसके ममी या डैडी उसे गोद में ले जबरदस्ती भीगने जा रहें थे. सातवीं-आठवीं मंजिल से लोग बच्चों को गोद में उठाये भीगने के लिए  आ रहें थे. वो सारा दृश्य जैसे हमेशा  के लिए  मेरी आँखों के आगे ठहर गया और कहा जा सकता है  I just  fell in love with this Musam then n there.

                                              
फिर तो, इतने सालों में बहुत लुत्फ़ लिया इस मौसम का...बारिश में वाटर पार्क गए...मरीन ड्राइव पर छत से भी ऊँची लहरें देखीं...नेशनल पार्क में कान्हेरी केव्स जाना भी अच्छा अनुभव रहा. डेढ़ घन्टे तक बारिश में भीग गरबा भी किया. बीच पर भी पिकनिक की बारिश में

और जीवन के सफ़र में अपनी जैसी रूचि रखने वाले लोग भी मिल ही जाते हैं...जब अधिकतर लोग बारिश के दिनों में 'मॉर्निंग वाक' से ब्रेक ले लेते हैं...हम सहेलियां एक दिन भी मिस नहीं करतीं .और कभी कभी सुबह सुबह सड़क के किनारे की ढाबे की चाय भी पी जाती है. यह सिर्फ मुंबई में ही संभव है कि सड़क के किनारे सर से पैर तक भीगी  तीन  महिलाओं को यूँ चाय पीते देख भी कोई पलट कर  नहीं देखता.(मन होता है , किसी R. J. कि तरह जोर से चिल्लाऊं ..I luvvv   uuuu  Mumbaiiii )

मुंबई में भयंकर त्रासदियाँ भी हुईं ,ईश्वर की कृपा से हमारा घर ऐसे इलाके में था कि कोई असर नहीं हुआ.बल्कि उल्टा अपराधबोध हो रहा था कि पूरा शहर इतनी परेशानी में है और हम इतने आराम से हैं. यहाँ तक कि टी.वी.पर कुछ इलाकों में तीन दिन तक बिजली ना होने की खबर देख मेरे छोटे बेटे ने कहा,"कुछ देर को हमारे  यहाँ की बिजली काटकर उन्हें क्यूँ नहीं दे देते?'

इसी दरम्यान हज़ारों दिल छू लेने वाले किस्से भी सुनने को मिले कि कैसे लोगों ने इस कठिन घड़ी में एक-दूसरे की मदद की. ट्रेन रुकी हुई थी और उसमे कॉलेज से लौटने वाली लडकियां थीं. आस-पास के फ़्लैट वाले उन्हें अपने घर में ले गए कि रात में लड़कियों का यूँ अकेले रहना ठीक नहीं. एक बस की छत पर जमा लोगों  को पास की बिल्डिंग वाले  साड़ियों की रस्सी बना,उसके सहारे  प्लास्टिक का बच्चों वाला स्विमिंग पूल उन तक ले गए और बस के एक एक लोगों की जान बचा ली.

एक छोटी सी घटना कुछ अलग सी है. पूरी रात रास्ते  में कार में लोग फंसे हुए  थे. सुबह सुबह पास वाले , लोग चाय-बिस्किट उन कार वालों तक पहुंचा रहें थे.एक महाशय ने कहा,उन्होंने ब्रश नहीं किया और बिना ब्रश किए वे चाय नहीं पे सकते. एक मजदूर जैसा दिखने वाला बूढा आदमी कहीं से ब्रश  टूथपेस्ट और पानी लेकर आया और उन्हें दिया. और फिर चाय पिलाई.

बहुत पहले भी एक बार ऐसे ही रास्तों में पानी भर गया था और बसें जहाँ की तहां रुक गयी थीं. काम से लौटने वाली महिलाओं के बच्चे अकेले घर पर थे या फिर क्रेच में . उन दिनों  मोबाईल फोन आम नहीं हुए थे. पास की लम्बी कारों में चलने वाले बड़े लोग पानी में भीगते हुए अपने मोबाईल फोन बस की इस खिड़की से उस खिड़की में 'पास ऑन' कर रहें थे.





यही ज़ज्बा है जो इस हादसों के शहर को उबरने में मदद करता है. मुंबई को अब ऐसी बातों  की इतनी आदत पड़ गयी है कि उसे संभलने में वक़्त नहीं लगता.जिन लोगों ने वो खौफनाक मंज़र देखा है वे भी...उसे भूल वापस बारिश का स्वागत उसी  उत्साह  से करते  हैं.

46 टिप्‍पणियां:

  1. बारिश...कभी रूमानियत, कभी त्रासदी...जैसी जिसके संग बीती...उसको वैसी लगी. अच्छा लिखा. मैंने भी कभी बारिश पर लिखी थी एक पोस्ट...मौका मिले, तो देखिएगा--http://chauraha1.blogspot.com/2008/07/blog-post.html शुक्रिया

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  2. क्या यार ..हम तो शीर्षक देख दौड़े आये ...खैर आकर भी निराशा नहीं हुई बहुत अच्छा वर्णन किया है मुंबई की बारिश का और उसके विभिन्न रंगों का ...वैसे बारिश में भीगते नुक्कड़ की दूकान से चाय ओर पकोडे खाने में जो मजा है वो किसी भी पकवान में नहीं :)

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  3. शीर्षक ने आकर्षित तो किया मगर जो दिखा वह न दीखता तो मन दुखी होता -वर्षा बहार का इधर भी शिद्दत से इंतज़ार है !

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  4. @चंडीदत्त जी,
    शुक्रिया...बड़े दिन बाद आप नमूदार हुए...देखती हूँ..वो लिंक...जल्दी ही..
    @शिखा..
    इतनी जोर से दौड़ कर ना आया करो..बारिश का मौसम है..फिसलन होगी रास्ते पर ...हा हा

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  5. तपती रेत पर ही बूंद गिरने का मजा है। मुम्‍बई में ब‍ारिश के पहले इतनी उमस रहती है कि बारिश की बूंदे सभी को घर से निकलने के लिए मजबूर कर देती है। बहुत अच्‍छा वर्णन किया है, बचपन की याद आ गयी।

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  6. सच कह रहा हूँ..... आप संस्मरण को एकदम जीवंत रूप में लिखती हैं..... ऐसा लगता है कि सब कुछ फिल्म के समान आँखों के सामने चल रहा है..... मतलब इन्सान आपके संस्मरण से ख़ुद को जोड़ लेता है.... काफी डिफरेंट रंग दिखते हैं..... आपके संस्मरण में.... आप अपने ब्लॉग का नाम अब रेनबो कर दीजिये.....

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  7. बारिस का असर होता ही इतना असरदार है कि मन नाचने सा लगता है ।
    आज दिल्ली में भी मौसम खुशगवार है ।
    लेकिन मुंबई की बारिस देखकर तो अचम्भा हो रहा है ।
    कैसे झेलते हैं लोग इस त्रासदी को ।

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  8. @दराल जी,
    हमेशा इतना विकराल रूप नहीं होता...पर साल में एक दिन तो ऐसा जरूर आता है,जब लगातार बारिश की वजह से ट्रेन रूक जाती हैं...बड़े जीवट वाले हैं,यहाँ के लोग...और हिम्मती भी.

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  9. उस 26 जुलाई का तो मैं भी गवाह हूँ रश्मि जी....एकदम भयानक त्रासदी थी वह।

    बारिश में खेलने का मजा ही कुछ और होता है और फिर आजकल तो बच्चे सीधे कह देते हैं - सर्फ एक्सेल हैं न :)

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  10. सही है बारिश के मजे और दुख दोनों के अलग ही रंग होते हैं ... मौसमी पोस्ट सही रही.

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  11. मुम्बई की बरसात का कोई भरोसा है क्या. कल से तो यहा भी मौसम बारिश का है

    ये मौसम भीगा भीगा है
    हवा भी ज्यादा ज्यादा है
    क्यू ना मचलेगा दिल मेरा
    पुराना कलेन्डर फ़डफ़डा रहा है

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  13. मैने देखा तो नही पर सुना था की क्या हाल हुई थी मुंबई की उस बारिश की दौरान पर अब तो ऐसा भी लगता है कि मुंबई वासी बारिश के आदी हो चुके हैं मजबूरी है बरसात में कोई ना कोई दिन तो भयावह सा हो जाता है...बढ़िया संस्मरण धन्यवाद रश्मि जी

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  14. दी, सही कहा मुम्बई में ही ये संभव है कि औरतें सड़क पर खड़े होकर चाय पी सकें. दिल्ली राजधानी है पर यहाँ इतना खुलापन नहीं है और न ही सुरक्षित माहौल ... मेरी दीदी गुजरात में हैं और वहाँ भी औरतों के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित माहौल है...
    मुंबई वाले हर त्यौहार धूमधाम से मनाते हैं और बारिश भी एक त्यौहार ही तो है...

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  15. बेहतरीन संस्मरण
    इसी का नाम तो जिन्दगी है

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  16. वर्षा की फुहारें उन्मुक्त कर देती हैं ।

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  17. अरे ! इस बात पर तो एक गाना भी है ..बम्बई कि बरसात का क्या है एतबार ...!!
    जीवन में तो ये सब चलता ही रहता है...मुझे याद है एक बार दिल्ली में मैं और संतोष साथ साथ घर लौट रहे थे...बहुत तेज़ बारिश होने लगी...मैं कहीं छुपना चाहती थी लेकिन संतोष ने कहा नहीं आज भीगते हैं...पता नहीं कितना लम्बा रास्ता हमने भीगते हुए ही तय किया....घर आकर जब मैंने अपनी शक्ल देखि तो मैं खुद ही दांग रह गयी...उतनी खूबसूरत मैं फिर कभी नहीं लगी.....:)
    बहुत ही अच्छा लगा तुम्हें पढना...

    पिछली पोस्ट में तुमने जो कुछ भी कहा मेरे लिए उसके लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ...तुम जैसे दोस्त हों तो फिर किस बात का दर है...हाँ नहीं तो...!

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  18. संस्मरण लिखती हो की चलचित्र दिखाती हो......बहुत अच्छा वर्णन पहली बारिश का....और बहुत अच्छा लगा मुंबई वालों की हिम्मत के जज्बे को जान कर.....बढ़िया लेख के लिए बधाई .

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  19. मुंबई की बारिश का समाचार टी वी में अक्‍सर देखने को मिलता है .. साल में एकाध बार लोगों की परेशानियां बढ ही जाती हैं .. संस्‍मरण लाजबाब है !!

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  20. अरे हाँ, ये कहना तो भूल ही गयी थी कि मुंबई के लोगों के जज्बे को "मुंबई मेरी जान" फिल्म में बहुत खूबसूरती से दिखाया गया है... ये वो शहर है, जो रुकता नहीं...थकता नहीं ...सिर्फ एक बार गयी हूं वहाँ, पर दो-तीन दिन के उस प्रवास ने ही उस शहर के बारे में बहुत कुछ बता दिया.

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  21. dinon bad aapko padhna hua. lekin jitni apekshayen aapke lekhan se hain , aashvast hua.yahi aashvasti yathavat rahe yahi dua hai.

    shahroz

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  22. HI Rashmi.....us 26 july ki raat meine bhi aankhon mein kaati thi mere pati poori raat Goregaon ke flyover par attake huey the....fir bhi barkhaa rani badhi suhaani...bahut kutch yaad dilaa diya

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  23. chalo accha hua ji jo aapne aakhir me aapne mera naam nahi likha , nai to mujhe logo ko javab dete nahi banta ki kya kahu... ;)
    yhaku thaku....baki sab thik hai...

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  26. आपके शहर से तो हमें भी पहली बार मे ही प्यार हो गया था..पहली बार बेटे के साथ वहाँ आए थे और पहली बार मिलने वाले लोगो को एक बार भी जी नही चाहा कि अजनबी कहें...बोम्बे हॉस्पिटल कहाँ दक्षिण में और अनितादी दूसरे कोने में... ड्राइव करके आ पहुँची थी मिलने..एक नहीं दो-दो बार...बारिश का खूबसूरत वर्णन पढना अच्छा लगा..

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  27. बॉम्बे की पहली बारिश का जिक्र काई जगह पढ़ा और देखा (फिल्मों में ) भी है ...पहली बारिश में भीगना एक रस्म सा है ...संस्मरण को बहुत ही खूबसूरती से लिखा है ...कभी ख़ुशी कभी ग़म की तर्ज़ पर ...ये अच्छा है कि तुम्हारा घर ऐसी जगह है जहाँ इतनी परेशानी नहीं हुई ...

    बारिश में भीगना और सड़क किनारे चाय पीना ...क्यों ललचा रही हो ...बस तुरंत भाग कर आने का मन कर रहा है ..ये बात सच है कि मुंबई लड़कियों के लिए आम हिन्दुस्तानी शहरों के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित है ...मजाक में मूड में कहू तो ये कहा जाता रहा है कि मुंबई की बारिश और छोकरियों का कोई भरोसा नहीं ..
    बारिश तो हमारे यहाँ भी हो चुकी है ...पूरे बरसाती मौसम में 3-4 बार भीगने का प्रोग्राम बन ही जाता है ...यहाँ बारिश होती ही इतनी है ...
    बहुत अच्छा लगा यह संस्मरण ...

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  28. अच्छा लगा पढ़कर। आदमी या तो तब नहीं बोलता - जब कुछ कहने को न बचा हो, या इतना ज़्यादा हो कि कहाँ से शुरू करें - समझ न आ रहा हो।
    बहरहाल - मैं अब चुप।

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  29. @सतीश जी एवं अनीता जी,कैसे भूल सकते हैं वे, वह मंज़र , जिन्होंने इतने करीब से महसूस किया था वह सब. उस दिन शायद ही मुंबई की कोई आँख रात भर सोई हो...किसी ना किसी का कोई अपना,पडोसी,दोस्त...उस भयावह रात को अपने आशियाने से दूर थे...और उनके लिए होठों पर प्रार्थन थी और हाथ दुआओं में उठे हुए थे.

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  30. @संजीत,
    यानि कि अब तक आपको इंतज़ार ही हैं ,वहाँ अपना नाम लिखे जाने का :)
    अब तक तो बोल्ड अक्षरों में लिखा,' नो वेकेंसी' का बोर्ड टंगा होना चाहिए था....या आपने खबर ही नहीं रखी, किसी ने कहीं तो आपका नाम लिख ही रखा होगा...बस नज़र खुली रखिये :)

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  31. @मीनाक्षी जी,
    अनीता जी तो खैर बहुत ही प्यारी शख्सियत हैं....पर मुंबई के बाकी लोगों में भी आडम्बर नहीं है, यह मैने बहुत करीब से महसूस किया है.
    @ मुक्ति ,
    सही कहा,ये शहर कभी रुकता नहीं थकता नहीं और सोता भी नहीं..एक चक्कर और लगाओ,यहाँ का..
    सोच रखा है...एक सिरीज़ लिखूंगी, इस शहर के साथ अपने अनुभवों पर ...देखो,कब मौका मिलता है...

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  32. मेरे पास तुम्हारे आलेख बहुत देर से पहुँचते हैं क्योंकि मुंबई से कानपुर बहुत दूर है. बारिश तो ऐसी चीज हैं किसका मन न करता होगा उसमें भीगने का पर सड़क पर भीगना और भी मजा आता है. वैसे अब बरखा रानी इस दिशा से रूठ ही गयी हैं आती ही नहीं है. तुम्हारा वर्णन पढ़ कर मुमबई कि बारिश का मजा ले लिया. बहुत बढ़िया वर्णनकिया.

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  33. रश्मि
    आज बारिश मे भीगने का मन्ज़र याद दिला दिया………।मेरा तो शुरु से ही प्रिय मौसम रहा है……………अपने पुराने दिन याद आ गये बल्कि अब बारिश क खुद लुत्फ़ नही उठाती मगर जब बच्चे एंजाय करते हैं तो अच्छा लगता है…।

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  34. wah di, pahli barish me nahai sunadr sawach jawa mumbai ka kya sundar chitran kiya aapne,padha kar maza aa gya...haali ki 26 july ki trasdi maine bhi jheli thi, khar se goregaon kamar tak pani me chalna pada tha...barish ke is bhayank roop ka wo mera pahla anubhav tha...lekin fir bhi mumbai ki is barish aur nukkad ke cuting se to pyar sa hi ho gya hai...shayad hi koi barish jati ho jab mai aur meri beti bhigte na ho :)

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  35. मज़ा आया पढ़ कर .. पर आप वो गाना कैसे भूल गयीं???? ''आज रपट जाएँ तो....'' :)

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  36. मुंबई और उसकी बारिश के बारे में बहुत खूब लिखा है आपने...मुंबई से भी तेज़ बारिश खोपोली में होती है और खंडाला लोनावला में तो लोग सारा सारा दिन रात भीगते रहते हैं...बारिश में अगर आपने भूशी डैम की सीढियों पर बैठ कर गरमा गरम चाय और पाव नहीं खाया तो समझिये कुछ नहीं किया...हमारे घर से ये स्वर्ग महज़ पन्द्रह मिनट की दूरी पर ही है...
    नीरज

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  37. @वाह नीरज जी,बड़े खुशनसीब हैं आप.. फिर तो इस बार चाय आपके घर की पक्की :)....हर बार बारिश में एक बार जाना होता ही है...

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  38. .
    @दीपक...बिलकुल याद था वो गाना ,पर मुझे नहीं पसंद. स्मिता पाटिल की बस वही एक फिल्म मुझे बिलकुल नहीं अच्छी लगी थी.

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  39. बारिश और वो भी मुम्बई की बारिश.. ज्यादा न बोलते हुये मै आशा भोसले जी का ये विडियो चेपता हू जो उन्होने कल ही अपनी फ़ेसबुक प्रोफ़ाईल पर डाला है-
    http://www.facebook.com/video/video.php?v=443834408744&ref=mf

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  40. @पंकज ,
    कभी ये गाना मेरी कॉलर ट्यून हुआ करता था....One of my fav.

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  41. *पहली बार मुम्बई की बारिश का दीवाना तो उस दिन से हुआ जिस दिन से राजकपूर और नर्गिस को एक छतरी के नीचू मे " प्यार हुआ इकरार हुआ " गाते देखा ।
    * फिर दूसरी बार इस बारिश से इश्क़ तब हुआ जब हैंगिंग गार्डन और फीरोज़शाह मेहता गार्डन के बीच वाली जगह पर एक पेड़ के नीचे खड़े रहकर काँच के गिलास में गर्मागरम चाय पी जो ऊपर पत्तों से टपकते पानी में डायल्यूट होती रही और साथ साथ अपुन भी ...
    * तीसरी बार ... यह भी कोई कहने की बात है .. बेशक आपकी यह पोस्ट पढ़कर ..।

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  42. हां, इस जज्बे का बहुत सुना-पढ़ा है। यह शहर किसी त्रासदी से बहुत जल्दी उबरता है।
    मुझे बम्बई की महानगरीय ट्रेनों में ढोल मजीरे पर कीर्तन करने वाले भी याद आते हैं। उनकी जिन्दगी में सबर्ब से आने जाने में बहुत समय लगता है। और वे अपना मानसिक संतुलन कितनी अच्छी तरह बनाये रखते हैं।
    बहुत कुछ है जो इस महानगर से सीखा जा सकता है। बस, इस शहर में जाने-रहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया मैं, समय पर! :-(

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  43. ये संस्मरण है या कोई चलचित्र था समझ नही आया जब समझ आया तब तक मै पूरी इस बारिश मे जैसे भीग चुकी थी वाह शुभकामनायें

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  44. हम तो कहीं खो गए थे इस बारिश में..
    कसम से.. :)
    हमारे साथ भी एक छोटा सा किस्सा हुआ है बारिश का, पटना की बारिश का, शायद ब्लॉग में पोस्ट करूँ १-२ दिन बाद :)
    अभी के लिए तो यहाँ से बस एक खुशनुमा एहसास लिए वापस जा रहे हैं... :)
    कुछ ज्यादा ही अच्छा लग गयी हमें ये बारिश :)

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  45. बचपन में मेरा एक सहपाठी बड़ी मीठी आवाज़ में गाता था- ''पानी वफादार है तो पानी गद्दार है.. पानी है ज़िंदगी तो पानी तलवार है..'' फिर याद आ गया.. असल में बाद का कुछ पार्ट रह गया था पहले..इसलिए फिर आना पड़ा दी..

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  46. पता नहीं कैसे ये पोस्ट छूट गए!!! अब जबकि मुम्बई बार्श से सराबोर है, मुझे ये संस्मरण पढने में बड़ा मज़ा आ रहा है. कितने अलग अलग रंग समेटे है तुम्हारी पोस्ट. वैसे बारिश में भीगना और पानी में कागज़ की नाव चलाना मुझे अभी भी अच्छा लगता है. और चाय की दुकान पर चाय पीना वो भी भीगते हुए..... बहुत सुन्दर जीवंत पोस्ट.

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