गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

एक मुख़्तसर सी मुलाकात....'कैलाश सेंगर' के साथ

पिछले कुछ दिन काफी व्यस्तता भरे थे , एक तो बच्चों की छुट्टियाँ,उनकी फरमाईशें और उनमें आकाशवाणी से एक कहानी की फरमाईश भी शामिल .कई मित्र नाराज़ भी होंगे...उनलोगों के इतने शौक और मेहनत से लिखे पोस्ट्स भी नहीं देख पायी. ब्लॉगजगत में भी रेडियो से जुड़े कई लोग हैं उन्हें पता होगा..कि कहानी लिखना कोई मुश्किल कार्य नहीं पर उसे दस मिनट की समय सीमा में समेटना  महा दुष्कर है.कभी कहानी ग्यारह मिनट की हो जाती है तो कभी नौ मिनट  की .खैर राम राम करके निर्धारित समय सीमा में कहानी पूरी हो गयी और कल उसकी रेकॉर्डिंग भी, संपन्न हो गयी.

रेकॉर्डिंग रूम में ही मैंने सुना, प्रोग्राम प्रोड्यूसर अपने असिस्टेंट को निर्देश दे रहें थे कि चार बजे,'कैलाश सेंगर' का इंटरव्यू है, अमुक जन इंटरव्यू लेंगे  ,अमुक रेकॉर्डिंग करेंगे ...सब देख लेना. उन्हें कहीं बाहर जाना था. मुझे नाम जाना -पहचाना सा लगा लेकिन स्पष्ट कुछ याद नहीं आ रहा था. बार बार 'कैलाश खेर ' का नाम ही ध्यान में आ जाता.लेकिन वे  तो गायक हैं और ये लेखक. पर मेरे 'अवचेतन मन' ने काम करना शुरू कर दिया था. और जैसे ही, मैं बाय कह कर निकलने को हुई, 'अवचेतन मन' ने 'चेतन मन ' को नाम के साथ सारी रूप रेखा थमा दी और मुझे याद आ गया कि बरसों पहले मैंने कैलाश सेंगर जी की एक कहानी 'धर्मयुग' में पढ़ी थी. मुझे बहुत पसंद आई थी और पूरी कहानी भी मुझे याद आ गयी. मैंने उलोगों से पूछा ' मैं मिल सकती हूँ,उनसे" और सबने ऐसी नज़रों से मुझे देखा मानो 'कितना बेवकूफी भरा सवाल हो'. पर प्रकट में बस यही कहा..'हाँ हाँ क्यूँ नहीं'

और हम सब ऑफिस में बैठे उनका इंतज़ार करने लगे. दो युवा अनाउंसर भी थे. वे लोग जितना भी कैलाश जी के बारे  में जानते थे,बताने लगे कि कैसे 'धर्मवीर भारती जी' को उनकी कहानियाँ इतनी पसंद आई थीं कि उन्होंने एक ही महीने में उनकी दो कहानियाँ छाप दीं  और उन्हें पत्र लिखा कि आप वहाँ क्या कर रहें हैं, मुंबई आकर 'धर्मयुग' के साथ जुड़ जाइए .और तब से वे यहीं  हैं. एक ने बताया कि अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद काफी दिन तक वे लेखन से दूर रहें. उन्होंने बताया शायद उनकी पत्नी का नाम 'सुमन सरीन' था. मैं फिर से चौंकी 'ओह! तो सुमन सरीन की शादी कैलाश जी से हुई थी'. 'सुमन सरीन 'भी धर्मयुग की एक जानी मानी लेखिका थीं. पर उनके लिए 'थी' शब्द के प्रयोग से मन बहुत आहत भी हुआ. बात 'धर्मयुग' की चली और वे सब मुझसे पूछने लगे आखिर ऐसा क्या था ;धर्मयुग 'में जो पुराने लोग इतना नाम लेते हैं उसका .(अपने लिए ये 'पुराने' शब्द का प्रयोग कितना दंश  दे गया,उन्हें क्या पता :(  पर सच भी तो था,नयी युवा पीढ़ी ने बस नाम भर सुना है ) मैं और ऑफिस में उपस्थित एक और महिला 'धर्मयुग 'का गुणगान करने लगे तो एक युवक ने बताया कि उसने धर्मयुग' पर phd करने की सोची थी. खुद 'पुष्पा भारती' जी ने मुंबई यूनिवर्सिटी के हिंदी विभागाध्यक्ष को यह सलाह दी थी कि किसी छात्र से इस विषय पर phd करवाएं. लेकिन उक्त युवक ने जिसका नाम संतोष था कई जगह धर्मयुग के पुराने अंकों की खोज की पर उसे नहीं मिले. सिर्फ पुष्प भारती जी के पास ही हैं जिसे उन्होंने अमूल्य धरोहर की तरह संभाल कर रखा है. पुष्पा जी ने संतोष को अपने घर आकर जितनी देर मर्ज़ी हो 'धर्मयुग' पढने की इजाज़त दे दी. अपने सुझाव और मदद की भी पेशकश की. पर धर्मयुग के अंक अपने घर ले जाने की अनुमति  नहीं दी.और उनका यह फैसला सही भी था .कोई दूसरा उसका मूल्य नहीं समझ सकता और उतनी हिफाज़त नहीं कर सकता. पर कितने दिन उनकर घर जाकर पढूं...यह सोच संतोष ने phd करने का ख्याल ही छोड़ दिया.

हमारी बातचीत चल ही रही थी कि कैलाश जी आ गए. अक्सर कहानी के नायक से ही, कहानी के लेखक की कल्पना कर ली जाती है. मुझे भी कुछ ऐसा ही लगा था कि दुबले पतले थोड़े निरीह से होंगे पर लम्बे छरहरे काफी प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी थे. पहले तो वे उन लड़कों की तरफ मुखातिब हुए और उनमे से एक ने कहा भी, चार साल पहले आपको एक कवि सम्मलेन में देखा था ,आज रूबरू देख रहा हूँ. फिर मुझसे परिचय करवाया और जब मैंने उन्हें बताया कि आपकी बीस साल पहले पढ़ी कहानी मुझे अब तक याद है तो वे आश्चर्य में डूब गए. कहानी का शीर्षक मुझे नहीं याद था लेकिन कथ्य बताने पर उन्होंने कहा,'जरूर 'रात' कहानी का जिक्र कर रही हैं.फिर उन्होंने पूछा कि इस कहानी पर बहुत अलग अलग प्रतिक्रियाएँ हुई थी. आप अपनी प्रतिक्रिया बताइए."उस कहनी की नायिका 'नीता' ट्रेन से अपनी बेटी के लिए लड़का देखने जा रही है.ट्रेन में ही एक दाढ़ी वाले व्यक्ति को देख,उसे अपने कॉलेज के एक सहपाठी की याद आती है. पर फिर सोचती है वह तो कितना सुदर्शन था यह इतने मरियल से हैं. और उसे कॉलेज के दिन याद आते हैं .उस लड़के का अव्यक्त आकर्षण था उसके प्रति.वह समझती थी.पर पढाई छोड़कर कभी कोई और बात नहीं  हुई उनके बीच. ट्रेन में नायिका के पति की तबियत बहुत खराब हो जाती है और वो व्यक्ति उनकी बहुत सहायता करता है. जब वह अपने स्टेशन पर उतरने लगता है तो नायिका को ध्यान आता है कि उन्होंने तो उन सज्जन का नाम,परिचय  तक नहीं पूछा.पूछने पर  वे कहते हैं,"इसी जनम में दुबारा अपना परिचय देना अच्छा नहीं लगता " कैलाश जी जानना चाहते थे कि क्या पाठक को शुरू में ही पता चल जाता है कि वह दाढ़ीवाला व्यक्ति 'नायक' है? पर मुझे इतना नहीं याद था. मैंने कबूल लिया और साथ में स्टुपिड की तरह यह भी कह दिया कि 'मैंने आपकी कोई दूसरी कहानी नहीं पढ़ी' (सच, स्टुपिडीटी के लिए कोई उम्र तय नहीं है  ) वे ओह! कह कर चुप हो गए पर मैंने उसकी क्षतिपूर्ति यह कह कर कर दी कि वह कहानी अब तक मेरे पास है. ( बचपन की  मेरी आदत थी , जो भी कहानी अच्छी लगती उसके पन्ने अलग कर मैं मम्मी के बड़े से काले बक्से में छुपा देती,ताकि मेरे होस्टल चले जाने के बाद, गुम ना हो जाए. धीरे धीरे मेरा खज़ाना समृद्ध होता गया. उसमे वो कामना चंद्रा (कामना चंद्रा, की बड़ी बेटी,'विधु विनोद चोपड़ा' की पत्नी हैं. तनूजा चन्द्र उनकी छोटी बेटी हैं ) की वो कहानी भी है ,जिसपर चांदनी फिल्म बनी थी...कुछ साल पहले ,माँ ने कहा क्या करना है, ये इतने सारे कटिंग्स का ,कहीं दीमक ना लग जाएँ और मैं वो सब उठा कर यहाँ मुंबई ले आई ) यह सुन तो कैलाश जी को और भी आश्चर्य हुआ.(ख़ुशी भी हुई होगी,पक्का)

अब तक कमरे के और लोग उपेक्षित से महसूस करने लगे थे. एक युवक ने बातचीत में शामिल होने की गरज से जरा जोर  से कहा 'सर आपने सुमन जी  के निधन के बाद लिखना छोड़ ही दिया था'. उन्होंने कहा, 'हाँ ,वे पांच साल बड़े कठिन थे. उन्हें कोई ऐसी बीमारी थी जो करोड़ों में किसी एक को ही होती है'. मेरे यह बताने पर कि सुमन जी तो पटना की थीं और उनका लिखा भी मैंने काफी पढ़ा है फिर से थोड़ा चौंके वो. मैंने कहा जरूर आपलोग धर्मयुग में ही मिले होंगे.उन्होंने बताया कि 'धर्मयुग' में सह संपादक के लिए ढाई हज़ार आवेदन पत्र में से सिर्फ दो लोगों  का चुनाव हुआ था,उनका और सुमन जी का. मैंने सोचा एक 'सुमन जी' का ही हुआ होगा. धर्मवीर भारती जी ने आपको तो पहले ही चुन लिया था. फिर से बात धर्मयुग की तरफ मुड़ती देख, अब असिस्टेंट का पेशेंस खत्म हो चुका था. वह राग अलापने लगा,'सर रेकॉर्डिंग' और बात सही भी थी. वे रेकॉर्डिंग  के लिए ही आए थे,गप्प गोष्ठी के लिए तो नहीं. कैलाश जी ने बार बार कहा,'आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा'

क्यूँ नहीं अच्छा लगेगा...बरसों बाद कोई पाठक आपकी कहानी पात्रों के नाम और मय डायलॉग के याद रखे तो अच्छा तो लगना ही चाहिए.

28 टिप्‍पणियां:

  1. आपने धर्मयुग की यादे ताज़ा की तो अपुन राम भी बचपन की यादो मे खो गये. पूरे सप्ताह दिन गिनते रहते थे. कहानियो, लेखो, कविताओ साहित्य की हर विधा को जगह थी और उस दौर मै विग्यापन बहुत कम होते थे. कैलाश की, शर्मवीर जी, पुष्पा जी. कामना चन्द्रा जी सबको तो याद करा दिया. बहुत सुन्दर सी यादे है. यादो का पिटारा है आपके पास.

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छा !-यह तो बताईये आपने १९८९ में छपी मेरी कहानी एक और क्रौंच वध पढी थी !

    जवाब देंहटाएं
  3. @अरविन्द जी,
    सो सॉरी....नाम कुछ जाना पहचाना तो लग रहा है...पर पूरी तरह याद नहीं..sorry again

    जवाब देंहटाएं
  4. सच में रश्मि जी, कैलाश जी को बहुत खुशी हुई होगी जब उन्होंने आपके मुँह से अपनी कहानी के बारे में सुना होगा. और मुझे इस बात पर आश्चर्य हो रहा है कि कैसे आपने कहानियों को धरोहर की तरह सहेज कर रखा है? धर्मयुग मैंने बहुत छोटे पर देखी थी, तब ये सब पढ़ने लायक नहीं थी. बाद में यह पत्रिका छोटे शहरों में दुर्लभ हो गई थी.

    जवाब देंहटाएं
  5. @ क्या मुक्ति एक बार तो रश्मि दी कह दिया...कितनी ख़ुशी हुई मुझे, कॉलेज के बाद ब्लॉग जगत में ही कुछ लोग रश्मि दी कहते हैं (घर में रीना दी कहते हैं सब )...और तुम वापस 'दी' से 'जी' पर आ गयी :( :(..not fair

    जवाब देंहटाएं
  6. कैलाश सेंगर जी के साथ : एक मुख़्तसर मुलाकात...पढ़ी...मजा आ गया...किसी लेखक की रचना के पात्रों के नाम याद रहने का मतलब रचना में भी दम है.... और लेखक को कितनी ख़ुशी होती है ..इस संवेदना को आम आदमी भला कहाँ समझता है...बहुत अच्छा लगा..बधाई और शुभकामनायें...दीनदयाल शर्मा.
    http://deendayalsharma.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  7. Hi..
    Dharmyug.. Guzre jamane ki Wo patrika thi jo har sahitya premi ke ghar ki shobha badhaya karti thi.. Aapse jab jab es patrika ka jikr sunte hain to swatah hi apna bachpan yaad ho aata hai.. DHARMYUG humare ghar bhi aata tha.. Aur mere Pita ji aur maata ji ese badhe chav se padhte the..

    Par humen aapki tarah na to kahanikar na kahaniyan yaad hain..siwaay Dharmyug ke aakhiri panne par chhape Kartoon 'DABBU JI' ke.. Shayad hamen tab yahi sabse priya raha tha aur esiliye hum to 'DABBU JI' hi rah gaye aur aap apne preeya kahanikaaron, lekhakon ki tarah kahanikar/lekhak banin aur aaj apni pahchaan ek kahanikaar, ek lekhak sa bana payi hain.. Haha..

    Chand saal baad Kailash Sengar ji ki tarah.. Aapka bhi interview jab prasarit hoga tab shayad hum apne blog (jise filhaal humare alawa koi nahi padhta..) par jikr kar rahe honge.. Aur log kahenge.. Ye wo Apni, unki, sabki baaton wali Rashmi ji hain..wo Jo Julia si blogging ke prati man se samarpit hain..

    Tab aap hi shayad apne pathkon se puchhti nazar aayen.. 'Kya Shachi ko Abhishek ke pas laut aana chahiye tha?' (Aapki kahani.. I am still waiting for you Shachi..)' haha..aur mere se pathak kahen.. Aapko Shachi se Abhishek ko milwana hi chahiye tha.. Kam se kam kahani ke patr to pyaar main doori na paayen..

    Barhaal Kailash Sengar se aapke sath humari mulakat avismarneeya rahegi.. Hamesha..

    Sundar aalekh.. Badhai..

    DEEPAK SHUKLA..

    जवाब देंहटाएं
  8. श्री कैलाश सेंगर जी से मुलाक़ात बहुत अच्छी रही शुक्रिया दी. ना जाने क्यों उनका सुमन जी से विछोह बहुत तकलीफ दे गया और नैनों की कोर में ओस भी. धर्मयुग के बारे में कुछ कहूँगा तो दिन-रात पलों की तरह गुज़र जायेंगे और पता भी ना चलेगा इसलिए उसको अभी रहने दीजिये. :)

    जवाब देंहटाएं
  9. और हाँ ये बक्से में छुपा कर रखने वाली मेरी आदत.. आपको भी, या आपकी आदत मुझे भी है अलबत्ता बक्से की जगह अटैची ने ले ली है. :)

    जवाब देंहटाएं
  10. मैं आ गया हूँ..... संस्मरणात्मकली यह पोस्ट अच्छी लगी..... अभी और भी बाकी पोस्ट्स पढनी है..... आज रात में सिर्फ आप ही की पोस्ट पढूंगा...सारी जो छूट गयीं हैं...... बहुत मिस किया ....


    Regards....

    जवाब देंहटाएं
  11. कैलाश सेंगर जी से आपकी मुलाक़ात बहुत बढ़िया रही.....उनके बारे में जानकारी दी ..बहुत बहुत शुक्रिया...

    और हाँ धर्मयुग मेरी भी पसंदीदा पत्रिका रही है..उसका ज़िक्र कर बहुत सी यादें ताज़ा हो गयीं....:):)

    बढ़िया लेख...बधाई

    जवाब देंहटाएं
  12. सेंगर जी की कहानी मिली तो जरूर पढ़ेंगे।

    जवाब देंहटाएं
  13. श्री कैलाश सेंगर जी से मुलाक़ात -बढ़िया..कभी मौका लगा तो जरुर.

    जवाब देंहटाएं
  14. धर्मयुग की बात करते ही उसके बीच के पन्ने पर छपने वाली विशिष्ट हस्तियाँ याद आ जाती हैं ...लता मंगेशकर और प्रकाश पादुकोण के जीत कर आने पर उज्ज्वला (नाम सही याद है क्या ..?) के साथ उनकी तस्वीर आज भी आँखों के सामने ज्यों की त्यों है ...मैं कही विषय से भटक तो नहीं गयी ...

    इसी तरह अस्पष्ट स्मृतियों में कैलाश सेंगर जी का नाम भी सुना हुआ लगा ...इस विशिष्ट मुलाकात को सबसे साझा करने के लिए बहुत आभार ....

    जवाब देंहटाएं
  15. @वाणी
    बिलकुल सही याद है तुम्हे....मुझे तो पूरा नाम याद है..उज्जला करकल (उज्ज्वला था या उज्जला,ये sure नहीं हूँ ) ..प्रकाश पादुकोण के हाथों में बड़ी सी ट्रॉफी और पत्रकारों के आग्रह पर उज्जला का माथा चूमते हुए मुखपृष्ठ पर छपे उस चित्र ने बड़ी धूम मचाई थी. उज्जला के खिले मुस्कान और चमकते दांत भी याद हैं..(दीपिका को माँ से ही मिली है ये मोतियों से दांत की सौगात )....इसीलिए उनकी बेटी भी इतनी अपनी सी लगती है...और मेरी फेवरेट

    जवाब देंहटाएं
  16. इतनी बढ़िया और मनपसंद पोस्ट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. क्या 'धर्मयुग' का नाम लेकर मुझे भी वही पहुंचा दिया. उन दिनों धर्मयुग और साप्ताहिक हिंदुस्तान दो ही पत्रिकाएं ऐसी थीं जिनमें सब कुछ मिल जाता था. दोनों उस समय में मुझे भी बहुत प्रिय थे.
    जो कथा या साहित्य मन को छू लेता है, उसका सब कुछ याद रहता है. सुमन सरीन की भी याद दिला दी.

    जवाब देंहटाएं
  17. रश्मिजी,
    आपने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया है। कैलाश मेरे बरसों पुराने या कहें विस्मृत मित्र हैं, हम लोगों ने दामोदर खडसे के साथ कई दिन मस्ती में गुज़ारे हैं। उनकी वाकपटुता से जितनी भी देर कोई साथ रहे वह खुश रहता है। मैंने भी धर्मयुग में कई साल लगातार 'रंग और व्यंग' स्तम्भ में लिखा है और इस कारण देश भर के लेखकों के सम्मान या कहें ईर्षा का पात्र रहा हूं। मेरे पास अभी भी कई सालों के धर्मयुग संकलित हैं जिन्हें मैंने लगातार हिंदुस्तान भर में हुये ट्रांसफर में ढोया है किंतु अभी भी उनका मोह नहीं छूटा। कैलाश की पत्नी के निधन की जानकारी भी मुझे नहीं थी। मैं सचमुच बहुत भावुक हो रहा हूं......आपको धन्यवाद्

    जवाब देंहटाएं
  18. मन के साथ

    आंखें भी भर

    आई हैं पढ़

    पूरा किस्‍सा
    स्‍वर्णिम हिस्‍सा

    जिंदगी का।

    जवाब देंहटाएं
  19. rashmi

    sach kai baar zindagi mein aise lamhat aate hain aur kitne apne se lagte hain kaha nahi ja sakta..........mere khyal se ye aapke jeevan ka ek sahejne yogya kshan hai.

    जवाब देंहटाएं
  20. सॉरी...........उठक-बैठक लगाऊं क्या?
    जानती हो रश्मि, मेरे साथ भी हमेशा ऐसा होता है. मेरी कहानियों की लम्बाई हमेशा आठ या नौ मिनट की हो जाती है. बाद में बेचारे एनाउन्सर को फ़िलर लगाना पड़ता है:) कैलाश जी के साथ मुलाकात में तो बड़ा मज़ा आया होगा. और धर्मयुग!! जैसे दुखती रग हो कोई!! पूरे हफ़्ते इन्तज़ार और फिर सबसे पहले हाथ में लेने की कवायद. धर्मयुग के तो बहुत सारे अंक तो मैने भी सहेजे हैं. बहुत सुन्दर पोस्ट.

    जवाब देंहटाएं
  21. @वंदना
    हम बड़े दिल वाले हैं...चलो माफ़ किया...क्या याद करोगी तुम भी...मैडम मेरी कहानी ९ मिनट ४६ सेकेण्ड में पूरी हो गयी,इस बार...लेकिन एक कन्फेशन है..हर बार नहीं होती :(

    जवाब देंहटाएं
  22. बहुत ही रोमांचक लिखा आपने ...बस एक ही सांस में सारा पढ़ गयी .....इतनी बड़ी पोस्ट में टंकण की भी कोई गलती नहीं ....क्या बात है आप तो माहिर हो गयी .....बहुत ही प्रभावशाली लेखन .....!!

    जवाब देंहटाएं
  23. वाकई धर्मयुग याद आ गया यह कहानी मैंने भी पढ़ी थी "इसी जनम में दुबारा अपना परिचय देना अच्छा नहीं लगता " इसी पंक्ति से याद आई वह ..शुक्रिया इस खूबसूरत पोस्ट को पढवाने का ..

    जवाब देंहटाएं
  24. कैलाश सेंगर जी के साथ : एक मुख़्तसर मुलाकात..धर्मयुग से जुड़ी भूली बिसरी यादें ...
    सब कुछ पढ़ना बहुत सुखद लगा ...

    जवाब देंहटाएं
  25. कफी समय तक धर्मयुग का साथ रहा। मेरी बिटिया छोटी थी और उसे धर्मुग कहती थी।
    फिर धर्मुग बन्द हो गया! :(

    जवाब देंहटाएं
  26. इस मुलाकात का वर्णन पढ़ कर अच्छा लगा । और इतनी सारी बातें मन में उमड रही हैं कि यहाँ लिख नहीं पाउंगा ।आपका यह लेख पता है किन किन लोगों को अच्छा लगा होगा ..
    *सबसे पहले रेडियो में कविता कहानी पढ़ने वाले मित्रगण .. 9 मिनट , 12 मिनट ,13 मिनट .. ज़रा जल्दी पढ़िये , ज़रा धीरे पढ़िये , रिपीट कीजिये , यह लाइने हटा दीजिये । हम लोग तो अब इतने एक्सपर्ट हो गये है कि घर से ही प्रेक्टिस करके जाते हैं एक बार मे ओके ।
    * कैलाश जी को जानने वाले ,या वे भी जिन्होने उनका नाम सुना होगा । पता नहीं यह वक़्त लोगों के साथ कैसा सलूक करता है ।
    * और वे लोग जिनकी आदतें भी कुछ कुछ ऐसी ही रही हैं । होस्टेल जाते हुए बक्से में सब कुछ बन्द करके जाना और जाने क्या क्या इकठ्ठा करते रहना । दुष्यंत जी की एक लाइन याद आ रही है .." आज सन्दूक से वे खत तो निकालो यारों >>
    फिलहाल इतना ही ...

    जवाब देंहटाएं
  27. पढ़ कर इतना तो निश्चित ही समझ में आ जाता है कि अच्छे लेख या कहानी
    का क़द्र आप बहुत करती है , और यह वही कर सकता है जो खुद भी अच्छा हो ,
    ऐसे महान हस्तियों को आपने सही सम्मान दिया , एक बात मुझे रोचक लगी
    " पुराने लोग " हा हा हा हा अब तो पुराने में ही गिनती होगी ना , लेकिन
    इस बात का भी उल्लेख रश्मि जी के अतिरिक्त कोई दूसरा कर दे शायद नहीं .
    आपकी विद्वता , आपकी प्रस्तुति का मै स्वयं कायल हूँ .

    जवाब देंहटाएं

फिल्म The Wife और महिला लेखन पर बंदिश की कोशिशें

यह संयोग है कि मैंने कल फ़िल्म " The Wife " देखी और उसके बाद ही स्त्री दर्पण पर कार्यक्रम की रेकॉर्डिंग सुनी ,जिसमें सुधा अरोड़ा, मध...