शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

ब्लॉग जगत एक सम्पूर्ण पत्रिका है या चटपटी ख़बरों वाला अखबार या महज एक सोशल नेटवर्किंग साईट ?


जब पहली बार ब्लॉग जगत से नाता जुड़ा तो ऐसा लगा जैसे पुरानी पत्रिकाओं की दुनिया में आ गयी हूँ.सब कुछ था यहाँ,कविताएं,कहानियां,गंभीर लेख,सामयिक लेख,खेल ,बच्चों और नारी से जुडी बातें. पर कुछ दिन बाद ऐसा लगने लगा..कि यह उच्चकोटि की एक सम्पूर्ण पत्रिका है या चटपटी ख़बरों से भरा बस एक समाचारपत्र??
और उस समाचार पत्र का भी Page 3 ही सबसे ज्यादा पढ़ा जाता है जिसमे ब्लॉग जगत के स्टार लोगों की रचनाएं होती है.

कोई भी विवादस्पद लेख हो या किसी विषय पर विवाद हो तो बहुत लोग पढ़ते हैं.पर कोई सृजनात्मक लेख हो तो उसके पाठक बहुत ही कम हैं.जबकि हमारी कामना है कि ब्लॉग के सहारे हिंदी को अच्छा प्रचार और प्रसार मिले.यहाँ ज्यादा लिखने वाले वही हैं जो लोग अच्छे हिंदी साहित्य का मंथन कर चुके हैं.अगर वे लोग भी स्तरीय लेखन को बढ़ावा नहीं देंगे तो आने वाली वो पीढ़ी जो नेट और ब्लॉग के सहारे हिंदी तक पहुंचेगी,उन्हें हिंदी में उच्चकोटि की सामग्री कैसे उपलब्ध होगी?

एक लेखक मित्र ने सलाह दी 'असली लेखन तो पत्रिकाओं में ही हैं." उनकी बातें सही हो सकती हैं पर हम जैसों का क्या, जिन्हें हिंदी पढने लिखने का मौका बस ब्लॉग जगत में ही मिलता है.हिंदी पत्रिकाएं तो देखने को भी नहीं मिलतीं...उसमे शामिल होने का सपना हम कहाँ से देख सकते हैं? मुंबई में किसी भी स्टॉल पर अंग्रेजी, मराठी,गुजरती,मलयालम की पत्रिकाएं भरी मिलेंगी..पर हिंदी की नहीं..."अहा! ज़िन्दगी" माँगने पर वह गुजराती वाली 'अहा ज़िन्दगी' बढा देता है और' वनिता' मांगने पर मलयालम 'वनिता'.जब मैंने अपने पपेर वाले को धमकी दी कि अगर वह ये दोनों पत्रिकाएं नहीं लाकर देगा तो उसे पैसे नहीं मिलेंगे..तब उसने ये दोनों पत्रिकाएं देना शुरू किया.बीच बीच में भूल ही जाता है.दक्षिण भारत के शहरों में और प्रवासी भारतीयों के लिए तो बस ये ब्लॉग जगत ही हिंदी से जुड़े रहने का माध्यम है. अच्छा स्तरीय पढने को वे भी आतुर रहते हैं पर अच्छे लेखन को प्रोत्साहन ही नहीं मिलता.जब एक दो लेख,कविता या कहानी के बाद भी अच्छी प्रतिक्रियाएँ नहीं मिलेंगी तो लेखक यूँ ही हताश हो जाएगा. और आगे लिखने की इच्छा ही नहीं रहेगी.और क्षति होती है,अच्छा पढने की चाह रखने वालों की.

लोग कहते हैं,बलोग्जगत अभी शैशवकाल में है.पर अंग्रेजी में कहते हैं,ना morning shows the day .इसलिए अभी से ही ब्लॉगजगत में उच्च कोटि के लेखन को प्रोत्साहन देना होगा. अगर स्तरीय लेखन की नींव सुदृढ़ नहीं होगी तो हम ब्लॉग के सहारे हिंदी के उज्जवल भविष्य की कामना कैसे कर सकते हैं.??हिंदी सिर्फ बोलचाल की भाषा बन कर रह जायेगी.और इसके लिए क्या प्रयत्न करना है? हमारा बॉलिवुड और अनगिनत टी.वी.चैनल तो यह काम बखूबी अंजाम दे रहें हैं.

यह भी तर्क दिया जाता है, सबकी रुचियाँ अलग होती है...पर अगर अच्छा लेखन परोसा ही नहीं जायेगा तो रुचियाँ विकसित कैसे होंगी?

ब्लॉग जगत एक सोशल नेटवर्किंग साईट जैसा ही लगने लगा है.जिसकी नेटवर्किंग ज्यादा अच्छी है.उसका लिखा,अच्छा-बुरा सब लोग पढ़ते हैं.उसके हर पोस्ट की चर्चा भी होती है और बाकी लोगों को उस पोस्ट के बारे में पता चलता है. अब ये नेटवर्किंग का स्किल सबके पास नहीं होता.सबकी पोस्ट पर कमेन्ट करो सबसे आग्रह करो,अपनी रचनाएं पढने की.और कई लोगों के पास इतना समय भी नहीं होता.कितनी ही अच्छी रचनाएं कहीं किसी कोने में दुबकी पड़ी होती हैं.और किसी की नज़र भी नहीं पड़ती क्यूंकि उनके रचयीताओं के पास इतना वक़्त नहीं होता.

अगर स्तरीय लेखन को हम बढ़ावा नहीं देंगे तो फिर हम लोगों से यह अपेक्षा भी नहीं कर सकते कि ब्लॉग्गिंग को गंभीरता से लिया जाए.

37 टिप्‍पणियां:

  1. RASHMI JI ACHHAA LIKHANAA AAM KE PED LAGAANE JAISAA HAI. AAP LIKHE RAHO AUR PEEDHIYO KO MOOLYANKAN KARNE DO

    AUR MOHALLE MAI SABKEE KAMEEZ GANDEE HAI TO ZAROOREE TO NAHEE KI HAM UNKEE BHEED KA HISSA HO JAAYE. ABHEE YE SAB BAADH KA PAANEE HAI. YE JAB UTAR JAAYEGAA TO NIRANTAR MEETHAA PANEE DENE BAALE KUO PAR HEE PANIHAARIN AAYEGEE.

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  2. रश्मि ! काफी हद्द तक ठीक कहा आपने ,वाकई हम जैसों को हिंदी ,लिखने पढने का मौका ब्लॉग जगत से ही मिलता और बाकी midea की तरह यहाँ भी चटपटी रचनाएँ ही ज्यादा पाठकों को आकर्षित करती हैं और गंभीर लेखन पढने वाले बहुत ही कम होते हैं ,और इसे एक महज सोशल नेटवर्किंग साईट कहकर भी आपने अतिश्योक्ति नहीं की है. परन्तु एक सत्य ये भी है की हम किसी को कुछ पढने के लिए विवश नहीं कर सकते ,हम बाजार से भी वही पत्रिकाएं लाते हैं जो हमारी रूचि के अनुकूल होती हैं और वही पढ़ते हैं जो हमारी पसंद का होता है ,हालाँकि स्टाल पर कृषि से लेकर भूगोल तक की पत्रिकाएं होती हैं , सब तो हम नहीं पढ़ते न ...हाँ हिंदी के विकास के लिए हम अपनी तरफ से प्रयास जरुर कर सकते हैं ( जैसा की आप कर रही हैं.) स्तरीय लेखन उपलब्ध करा कर, जिससे कम से कम उन्हें वो सामग्री पढने के लिए मिल सके जो इसे पढना चाहते हैं....हाँ उसके लिए नेटवर्किंग तो बहुत जरुरी है वर्ना कोई नहीं आएगा पढने .
    हाँ वो पेज ३ वाली बात खूब कही ;) हा हा हा

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  3. lekhn vahi hai jo sarlta se sbhi ko smjh me aaye aur bar bar padha ske .
    aapka aalekh se shmat.

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  4. रश्मि जी की भावनाओं और विचारों से पूरी तरह सहमत। अहा जिंदगी, वनिता इत्‍यादि पत्रिकाओं को नियमित पढ़ने के लिए इसकी सदस्‍यता ले लीजिए। इसे पढ़कर इसकी आवश्‍यकतानुसार अपनी रचनायें भेजिए। अवश्‍य एक दिन आपकी रचनायें भी इसमें प्रकाशित दिखलाई देंगी। आपकी लेखनी में भरपूर दम है और यह मैं यूं ही नहीं कह रहा हूं। आपका लिखा जितना भी पढ़ा है, मुझे रुचा है और उसमें सहजता और प्रवाहता है। मेरी शुभकामनायें।

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  5. हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत एक संपूर्ण पत्रिका हो गयी है .. जिसमें हर प्रकार के समाचार और ज्ञान की सटीकता से लेकर मनोरंजन तक शामिल है .. इसके और विकसित होने के बाद सूचना के लिए और किसी अन्‍य साधन की आवश्‍यकता नहीं दिखती है !!

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  6. अविनाश जी,मैं यहाँ अपनी बात नहीं कर रही...सामान्य तौर पर जैसा मुझे लगा...सचमुच कहीं कहीं बड़ी अच्छी रचनाये देखने को मिल जाती हैं...पर ज्यादा लोगों को इसका पता ही नहीं होता...
    और आपकी शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.

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  7. रश्मि,
    बात तो सही कही है तुमने...लेकिन शिखा की बात से भी सहमत हूँ...किसी को भी बाध्य नहीं किया जा सकता है कुछ भी पढने के लिए...
    गंभीर लेखा हमेशा से ही उपलब्ध रही है और लोगों की पहुँच में भी रही है....बात नहीं बनी है तो सिर्फ ...पसंद पर...
    लोगों को हमेशा ही चटपटी बातें पसंद आती हैं....कितने अच्छे चिट्ठे गुमनाम हो रहे हैं रोज ही....और इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता है....
    और ब्लॉग तो अगाध है...यहाँ सबकी पसंद की सब चीज़ें मौजूद हैं....लोग अपनी पसंद की चीज़ें पढ़ ही लेते हैं....
    यह एक ऐसा माध्यम भी है जहाँ...रिश्ते बन रहे हैं...पल रहे हैं और परवान चढ़ रहे है....इसकी शक्ति का अनुमान लगाना ही कठिन है...बहुत सशक्त माध्यम है यह....
    ज़रुरत है इसे सही तरीके से इस्तेमाल करने की....
    विश्वास है कि सब कुछ सही रास्ते में आजायेगा.....लोगों कि रूचि भी बदलेगी और ....गंभीर लेखन का भविष्य भी.....कुछ समय देना ही पड़ेगा और धीरज धरना ही पड़ेगा...

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  8. नेटवर्किंग की चिंता न करें.
    जैसा दिल करे वैसा लिखें.
    मनपसंद लिखें. पढ़ने वाले बहुत हैं.
    ब्लागजगत प्रिंट मीडिया से कहीं बेहतर है. यहीं छपने/वंचने के लिए किसी को मुंह नहीं ताकना पड़ता.

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  9. काजल कुमार की बात से सहमत हूं। वैसे अच्छे लेखन की भी नेटवर्किंग होती है और वह स्थायी होती है।

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  10. काजल कुमार जी की बात से सहमत हूं।
    ब्लॉग में तो बस लिखते रहे शुरू शुरू में पढने को ब्लोगर्स ही आते है पर जैसे जैसे आपका ब्लॉग गूगल सर्च में आता जायेगा आपको पाठक मिलते जायेंगे | और सही मायने में पाठक आते ही गूगल सर्च करके | गूगल सर्च से आने वाले पाठक चूँकि सम्बंधित विषय को खोजते हुए आते है अत: व आपका लिखा ज्यादा गंभीरता से पढ़ते है |

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  11. मुझे तो खजाना लगता है यह ब्लांग जगत (हिन्दी) पहले तो हमे कोई हिन्दी के पुराने अखवार की कोई कतरन मिल जाती थी तो उसे बहुत सम्भाल कर रखते थे एक एक शब्द पढते थे, ओर अब तो पढना क्या लिखना भी आसान हो गया है, आप के लेख से सहमत है

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  12. आपकी बात सत्य है ...बहुत अच्छी रचनाएँ पढने से छूट जाती हैं...पर ब्लॉग पर उपलब्ध हैं तो कभी न कभी नज़र पद ही जायेगी...हाँ गंभीर साहित्य लिखना भी चाहिए और पढ़ना भी...ये सब व्यक्तिगत रूचि पर निर्भर होता है.....लेकिन कहीं कहीं ये लगता है कि जो पहले से स्थापित लोग हैं उनके ही ब्लोग्स ज्यादा पढ़े जाते हैं....और ये बात प्राप्त टिप्पणियों से या चिटठा चर्चा से ही अनुभव होती है.....आपसे सहमत हूँ

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  13. मैं आपकी हर बात से सहमत हूँ..... और यह बात तो सही है कि असली लेखन और उसकी महत्ता पत्रिकाओं में ही है..... यहाँ लेखन को सतही तौर पर ही लिया जाता है....

    --
    www.lekhnee.blogspot.com

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  14. ब्लॉग जगत का सबसे बड़ा फायदा मुझे यही लगता है कि यहाँ आपके पास बहुत विकल्प हैं ...आपको जो पसंद है वह चुने ...वही लिखें ....नेटवर्किंग की परवाह बिलकुल नहीं करें ...अच्छे और गंभीर लेखन को अपना स्थान जरुर मिलता है ...धीरे धीरे ही सही ...!!

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  15. "कोई भी विवादस्पद लेख हो या किसी विषय पर विवाद हो तो बहुत लोग पढ़ते हैं.पर कोई सृजनात्मक लेख हो तो उसके पाठक बहुत ही कम हैं."

    आपका यह अवलोकन एकदम सत्य है। इससे हम लोगों की मानसिकता का भी पता चलता है।

    हिन्दी को यदि नेट में आगे बढ़ाना है तो हमें पाठकों को स्तरीय लेखन देना ही होगा। यदि हमारी रुचि विवादास्पद लेखों में बनी रहेगी तो हम स्तरीय लेख कैसे लिख पायेंगे? हमें अपनी रुचि और मानसिकता को बदलना ही होगा।

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  16. जिसको जो पसंद आता है वह उसको पढ़ लेता है ..यहाँ अब हर विषय पर लिखा होता है ...सच्चा और अच्छा लिखा हुआ हमेशा सबको मन भाता है ..

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  17. rashmi ji

    aapne bahut hi sahi lekh likha hai ......sach aam insaan ke liye to blogjagat ek bahut hi uttam platform hai jahan wo apne man ki ha rbaat kah sakta hai aur sari duniya ki khabar isi platform par uplabdh bhi ho jati hai aise mein kisi bhi patrika ko padhne ki itni jaroorat mehsoos nhi hoti jitni pahle hoti thi...........aur ise badhawa dena hum sab ka kartavya hai.

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  18. ब्लॉगजगत एक सम्पूर्ण पत्रिका है । खेल साहित्य मनोरंजन सब कुछ है यहाँ । यहाँ सब लोग अपने आप को अभिव्यक्त करने आते हैं । यहाँ आनेवाले सभी लेखक हैं सिर्फ पाठक इक्का-दुक्का ही हो सकते हैं । जो पाठक हैं वे भी जल्द से जल्द लेखक बन जाना चाहते हैं । जिन लोगों ने पत्रिकाओं से लेखन की शुरुआत की है ( जैसे रश्मि रवीजा ) वे लोग बहुत गम्भीरता से इस माध्यम को लेते हैं और इसके प्रति अपनी चिन्ता व्यक्त करते हैं । इसलिये कि वे जानते हैं लेखन और प्रकाशन के बीच एक सम्पादक नाम का व्यक्ति होता है जो आपकी रचना का स्तर तय करता है (हाँलाकि इसमें भी विवाद हो सकता है ) लेकिन इसके लिये लेखक को खुद ही आलोचक और सम्पादक बनना होता है और यह काम बहुत निर्ममता से करना होता है । ब्लॉग्स में अच्छे लेखन की उम्मीद ऐसे ही की जा सकती है अन्यथा आप की मर्ज़ी जो आप लिखना चाहें किसने रोका है?
    दूसरा मुद्दा लोकप्रियता का है और इसके लिये आपने जो कुछ कहा है वह भी कुछ हद तक सही है । आजकल साहित्य जगत मे भी यही हो रहा है कि लोग लिख कम रहे है और चर्चित ज़्यादा हो रहे है । इसके लिये ज़्यादा चिंचित होने की ज़रूरत नही किसी कवि ने कहा है " जो रचेगा वही बचेगा " इसलिये अच्छा लेखन ज़ारी रखे । समय खुद आपका मूल्यंकन करेगा ।

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  19. दीदी ,
    ऐसी हीं कुछ भावनाएं मेरे मन में भी जन्म लेती रही हें मगर हिंदी
    अपनी मिठास चाहे कोई पत्रिका हो ब्लॉग हो या कोई और माध्यम हमारे जीवन में घोलती हीं रही है .
    लेखक लिखेंगे तो पाठक पढेंगे हीं और लेखकों को पढना पड़ता है इससे किसी को इंकार कहाँ और लिखना हो या अनेक रंगों को पढना ब्लॉग से बेहतर क्या है.
    ब्लॉग जगत कुछ भी हो मगर मेरे कंप्यूटर पर ये तो पूरा एक संसार लगता है आँख कबतक बंद करेंगे हम.

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  20. रश्मि,

    बहुत सही लिखा है तुमने, जिस ब्लॉग में मिर्च मसाला दूसरों पर कमेन्ट या आलोचना आ रही हो, लोग बड़े चाव से पढ़ते हैं और कीचड़ उछलने में भी बहुत सक्रीय होते हैं. एक अच्छे और सार्थक लेखन को तभी पाठक हासिल होते हैं या फिर लोग पढने में रूचि रखते हैं, जहाँ पर उन्हें चर्चित लोग नजर आते हैं. वैसे इससे चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है. आप लिख रहे हैं अपने विचारों और अभिव्यक्ति को साकार कर रहे हैं. हताश होने की जरूरत नहीं. सृजन होता रहे . हिंदी को आगे बढ़ने के लिए अच्छे विषयों का चुनाव और लेखन होना ही हमारे उद्देश्य को पूरा कर सकता है.
    बस उसमें ही लगे रहो. तुम्हारा यह लेख बहुत सार्थक है.

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  21. अच्छा और सार्थक लेखन कहीं भी छुपा नहीं रह सकता ज्यादा दिनों तक...चाहे वो पत्रिका में हो या ब्लौग पे।

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  22. रश्मि जी अपने अपने विचार है --------, हिदी ब्लोगिंग जरूर अपने शैशव अवस्था में है----- मगर ऐसा नहीं है की स्तरीय लेखन का अभाव है----------- स्तरीय लेखन हो रहा है और पढ़ा भी जा रहा है ---------जहां तक नेट्वर्किंग का का सबाल है वो दोनों ही जगह है , ----------अच्छा पढने बालो का भी नेट्बर्क बन ही जाता है -----------स्तरीय पाठ्य कही भी छुपा नहीं रहता ,, ------------जहा तक स्तरीय लेखन की उपलब्धता की बात है हम यही कर सकते है -----------किसी को भी पढने के लिए बाध्य नहीं कर सकते
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  23. 'ब्लॉग जगत एक सोशल नेटवर्किंग साईट जैसा ही लगने लगा है.जिसकी नेटवर्किंग ज्यादा अच्छी है.-'
    'कितनी ही अच्छी रचनाएं कहीं किसी कोने में दुबकी पड़ी होती हैं.और किसी की नज़र भी नहीं पड़ती.....'
    दोनों हाथ में लड्डू -फिर ब्लॉग जगत को क्यों न अपनाएँ ?

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  24. मतलब पहले सोशल नेटवर्किंग फिर राईटिंग ....

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  25. आपके ब्लॉग पर गया था वहां पूरा धारावाहिक देख कर पसीना छूट गया और यहाँ आगया ! बहुत अच्छा विषय उठाया हैं , ब्लॉग बेहद रुचिकर होने के साथ साथ सोशल नेटवर्किंग साईट ही है, कुछ ही दिनों में परिवार सा लगने लगता है, हाँ इस परिवार में अच्छे, बुरे, कडवे और गंदे हर तरह के अनुभव मिलते हैं जो स्वाभाविक ही है ! शुभकामनायें !

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  26. आपने जिन मुद्दे को केंद्र में रख कर संवाद करने की कोशिश की है,सराहना करता हूँ.
    मैं ब्लॉग लेखन को दोयम दर्जे का हरगिज़ नहीं कह सकता.हाँ ये सही है कि यहाँ हिंदी-जगत की वही बुराइयां घर कर गयी हैं कि तुम मुझे हाजी कहो और मैं तुम्हें हाजी कहूं!!
    ढेर सारे लोग हैं जो अच्छे और सार्थक विषय पर लिख रहे हैं, हैं कुछ ऐसे भी जो अभी तिफ्ले-मकतब है.लेकिन ये अभ्यास ही उनका मार्ग-प्रशस्त करेगा.
    इतना तो कडुआ सच है कि उल-जलूल चीज़ों पर शतक-दर-शतक टिप्पणियाँ कर दी जाती हैं.और कभी तो कोफ़्त की हद जब होती है,कि बिना पढ़े ही लोग कमेन्ट कर ने लगते हैं.

    आज जब आम लोगों की पहुँच से संचार-माध्यम काफी दूर हो चुके हैं, ब्लॉग उनके लिए अभिव्यक्ति का उचित माध्यम है.यहाँ कई ऐसी ख़बरें और सूचनाएं पढने को नसीब हो जाती हैं, जो अनछुई रहती हैं, कथित मुख्यधारा की पत्रकारिता में.

    जब एमेर्जेसी थी और पत्र-पत्रिकाओं पर पहरे थे.फिर दना-दन कई पत्रिकाएं बंद होने लगीं तो देश में लघु-पत्रिकाओं का दौर आया. आज जितने अच्छे लेखक-कवि हैं अधिकाँश उसी आन्दोलन की देन हैं.सीमित प्रसार-संख्या के बावजूद इन पत्रिकाओं ने खूब शोहरत बटोरी.बाढ़ सी आ गयी.ऐसी पत्रिकाओं की.लेकिन जिनमें गुणवत्ता थी आज तक टिकी हैं.
    इसे आज के ब्लॉग-लखन के सन्दर्भ में रखा जा सकता है.
    ब्लॉग में भी वही टिकेगा जहां सच होगा, जहां भाषा होगी, जहां लहजा होगा.जहां खालिस विचार न होंगे, ज़िन्दगी की तपती रेत भी होगी!

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  27. एक शानदार लेख के लिए बधाई हो।
    ऐसे लोगों को ब्लॉग जगत की जरूरत है। महाराष्ट्र की स्थिति जानकार बहुत हैरानी हुई। आह जिन्दगी जैसी पत्रिका भी वहां नहीं आती।

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  28. ब्लोग्गिंग में आने से पहले प्रिंट में एक स्वतंत्र लेखक के रूप में बहुत सक्रिय हो चुका था , प्रारंभिक समस्याओं ..बल्कि कहूं कि कुछ जानकारियों के अभाव के बाद जब लेखन ने रफ़्तार पकडी तो सब कुछ वैसा ही मिला , प्यार स्नेह ,और ब्लोग्गिंग से अलग नकद नारायण भी ।मगर जब ब्लोग्गिंग का चस्का लगा तो अब ये कहने में कोई संदेह नहीं कि प्रिंट के लिए बेवफ़ाई कर बैठा । मगर निश्चित रूप से दोनों का मिजाज़ और अंदाज़ बहुत ही अलग है । मैं दोनों ही नहीं छोड सकता था और छोडना भी नहीं चाहता था इसीलिए उपाय निकाला कि ब्लोग अपने लेखन और उनके वर्ग के हिसाब से बना लूं। फ़िर चाहे उनके पाठक अलग अलग हों /उन ्पर टिप्पणियों का समीकरण अलग हो । और उसी अनुरूप आगे बढ रहा हूं ...मगर अब सोचता हूं कि बेवफ़ाई भी थोडी कम तो की ही जाए ,
    अजय कुमार झा

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  29. अच्छा लिखा हुआ सदैव ही प्रतिष्ठित होता है । ब्लॉग की संवाद प्रक्रिया इसे विशिष्ट बनाती है, इसलिये ये ज्यादा रुचता है ।

    शरद जी की टिप्पणी मूल्यवान है ।
    प्रविष्टि का आभार ।

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  30. पिछली टिप्पणी के समय हिन्दी मे लिखने की सुविधा नही थी फिर से आया हू और बहुत ही सार्थक बहस हो रही है.
    सभी ने एक बात को माना है कि अच्छा लेखन ही बचेगा. भाई महफ़ूज ने बहुत गम्भीरता से टिप्पणी की लेकिन मेरी असहमति दर्ज करे. ब्लोग पर आपको वो सब मिल जायेगा जिससे एक पाठक की पठन भूख सान्त होती है लेकिन ये है कि उसके लिये समय देखर ढूढना पडता है. उनका ये कहना कि असली लेखन तो पत्रिकाओ मे ही है मेरे गले नही उतरता.

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  31. जहाँ तक हमारे जैसे पाठको का सवाल है जो ब्लॉग लेखन से नहीं जुड़े है(और मै लिख भीनहीं सकता क्योकि उपरवाले ने लेखनी शक्ति ही नहीं दी).उनकेलिए ब्लॉग एक माध्यम है स्तरीयलेखको को पढ़ने का. मै
    तो ब्लॉग पर इसीलिए आता हूँ की स्तरीय मटेरिअल पढने को प्राप्त हो .

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  32. Blog Jagat to ek poora sansar(Jagat) hai, use kisi ek nishchit daayre mein rakhna theek nahin hoga. Yeh Patrika bhi hai, akhbar bhi aur social networking site bhi. Hum ya to woh blogs padhte hain jinmein hamari ruchi hoti hai ya unki, jinhein hum jaanete hain aur jinki baat padhna chahte hain. Lekh chahe kitana bhi sarthak ho, agar logon ne padha nahin toh kya faayda. Jo dikhta hai wohi bikta hai. Isliye blog ka mahahoor hona bhi zaroori hai, aur mashahoor tab hoga jab aapka dayra bada hoga, isliye networking bhi zaroori hai.
    Sabki lekhani alag hoti hai, koi gambheer vishay bhi asani se kah dalta hai toh koi aasaani se kahne wali baat bhi gambheerta mein ulajh kar penchida bana dalta hai. Hum sab bas apna kaam karte rahein, log likhate rahein, hum tippani karte rahein, jiska kaam usi ko saajhe. Aap log Lekhika/lekhak... ek udyamee ki tarah hain jise shuru ke nafe ya nuksaan se zyada apne udyam ke safal hone ki chinta rahti hai, aur yeh safalta ya asafalta aane wala samay hi bata sakta hai..abhi to hum sab Yuddh mein hai, apni Hindi ke prachar aur prasar mein..kabhi khud se ladte hain, kabhi doosron se..par haan hum sab apna kartavya poora karein..aisi hi kaamana hai..shubha kaamnaaon sahit..

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  33. अभी बस इतना कि आप साहित्यिक पत्रिकायें मेंबरशिप भेज के मंगवा लें। ब्लाग पर सक्रिय रहें पर उन महत्वपूर्ण पत्रिकाओं को ज़रूर पढ़ें।

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  34. यहाँ आने के बाद एक सुखद अनुभव का अहसास हुआ... चुपके से भी निरंतर आकर पढता रहूँगा... धन्यवाद

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  35. इतना सारगर्भित आलेख पढ़वाने के लिए आदरणीय विभा दीदी का बहुत-बहुत आभार । इस लेख से तो बहुत कुछ जानने सीखने का मौका मिला । इसके अलावा उस पर की गई सार्थक टिप्पणियों ने बहुत कुछ सिखाया । आदरणीय दीदी को मेरा नमन और वंदन ।

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